Sunday, April 5, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

//////::वैदिक ज्ञान::\\\\

बचपन में एक शेर का बच्चा खो जाता है। कुछ समय बाद वह एक भेड़ों के झुण्ड में मिल जाता है। तो भेड़ों के बच्चों की ही तरह उसके क्रिया कलाप हो जाते हैं तो जब वह बड़ा हो जाता है तो वह भी ऐसे ही करता है। उसको यह नहीं पता होता की मैं भी एक शेर का बच्चा हूं। वह अपने आप को भेड़ का ही बच्चा समझता है।

एक दिन जंगल में उसको दूसरा शेर मिलता है और उसको बताता है की तू भेड़ का बच्चा नहीं शेर का बच्चा है लेकिन वह नहीं मानता जो शेर होता है वो उसे तालाब पर ले जाता है और उसे उसकी परछाई दिखाता है और कहता है देख तेरी और मेरी शक्ल एक है फिर वो दहाड़ लगाता है और कहता है जैसे मैं दहाड़ लगाता हूं वैसे तू भी दहाड़ लगा। शेर का बच्चा भी दहाड़ता है। तब उसे ज्ञात होता है कि अरे मैं तो शेर का बच्चा हूं। मैं भेड़ का बच्चा नहीं हूं।

इस प्रकार ज्ञानी गुरु ही हमको वास्तविक रूप दिखाते हैं की तू तो उस परम पिता का अंश है। तू अपने को पहचान तू अपने को जान। तू अपने जीवन को संसारिक भोगों से व्यर्थ न गंवा बल्कि परमपिता से मिलन कर यह बड़ी खुशी की बात है की इस कलिकाल में जहां इतना अराजकता फैली हुी है भ्रष्टाचार फैला हुआ है ऐसे समय में आप को गुरू की कृपा से बेश कीमती आत्म ज्ञान की प्राप्ती होती है।

गुरु की कृपा से उस सच्चे प्रेम को उस सुखद एहसास को अनुभव करना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सांसारिक कर्तव्यों को निभाते हुए संभव है। सच्चा सुखद एहसास तो वर्तमान में है, स्वयं अपने आप में विद्यमान है। अपने मन व इंद्रियों के वशीभूत होकर मनुष्य इतना बहिर्मुख हो जाता है कि, वह अपने हृदय की पुकार नहीं सुन पाता, उसे यह आभास तक नहीं हो पाता कि वह इस संसार में आखिर क्यों हैं?

एक सच्चे गुरू के अलावा कौन ऐसा है जो सिर्फ देता है, देता है और देता है तथा बदले में केवल इतना ही मांगता है कि हमें अपनी खराब आदतों को छोड़ देना चाहिए।
http://drgauravsai.blogspot.com/

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