Saturday, August 6, 2016

Happy Friendship Day BABA SAI

*आज मैंने मित्र दिवस पर इन भावों के जरिये बाबा को मित्र दिवस की शुभकामनाएं दी* :-

सखा रूप में हमे अपना लो
जैसे तुम्हारे सखा थे भक्त शामा
साँई तुम बन जाओ आज श्रीकृष्ण
और हमे बना लो अपना मित्र सुदामा

साँई हमे गुणों की खान बना दो
हम खुद को तेरा सखा कह ले
चाहे एक दिन के लिए ही सही
संग में तेरे मित्र रूप में रह ले ।।

*तो लगा कि जैसे बाबा साँई शुभकामनाये स्वीकार करते हुए प्रत्युत्तर में मुझे यह बोलना चाह रहे है कि*....

"" मित्र रूप में हूँ मैं संग तुम्हारे
इस बात को तुम जानो निश्चित
तुम्हारी हर साँस पर मेरा वास हैं
मेरी लीलाओ से तुम हो अपरिचित ""
:- *_Baba Sai_* .

Tuesday, July 12, 2016

साँई का साथ- सबसे प्यारा

:: ।। *साँई का साथ-सबसे प्यारा* ।। ::

साँई से माँग लो तुम चाहे हाथ पसार
बाबा साँई तो झोली भी भर देंगे बेशुमार

बेशुमार दौलत भरी हो चाहे जेब में
पर सारी दौलत चली जायेगी बेकार
मन की शांति तो प्रेम से ही मिलेगी
साँई प्रेम ही है सुखी जीवन का सार

साँई से प्रेम करके तो देख जरा
माँ के आँचल सा होगा अहसास
जीवन में कभी तू अकेला न होगा
बाबा साँई बस जाएंगे तेरी हर साँस

साँस लेना जब हो जाये कठिन
और मुश्किल ले तुझको गर घेर
तब हर साँस में साँई साँई पुकारना
साँई न करेंगे आने में इक पल भी देर

देर न कर जन्म बीता जा रहा
ये मानव जन्म है बड़ा अनमोल
इस जन्म को साँई सुमिरन में लगा
साँई तेरे जीवन में देंगे खुशियाँ घोल

घोल साँई के कहे शब्दों को तू अपने मन में
ताकि विनम्रता और संस्कार आये जीवन में

जीवन में मित्र की कमी थी मुझ नन्हे को
तब साँई तुम मुझे मित्र रूप में मिल गए
तुमने गुरू बन भी मुझको शिक्षा दी अनेक
तब से मुझ अभागी के सोये भाग खुल गए

बरसो से मेरी बंद किस्मत पल में खुल गयी
और कहने लगी- "गौरव तू अबसे भाग्यवान है"
क्योकि अब तेरे हर शब्द में बाबा साँई है बसते
बाबा साँई के नाम से जग में अब तेरी पहचान है
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Friday, May 6, 2016

How do we see Baba Sai ?

बाबा को हम सभी का देखने का नजरिया अलग अलग है.......

कोई बाबा को मूर्ति रूप में देखता है,
तो कोई बाबा को अपने सपनो में बाबा को देखता है एवम् बाबा को खुद के साथ महसूस करता है,
कोई मन्दिर जाकर आरती में बाबा को महसूस करता है,
तो कोई भजन सुनते समय बाबा को महसूस करता है,
तो कोई श्री साँई सच्चरित्र में बाबा को देखता है कि जिसने उस वक्त कितने लोगो में प्रेम बांटा कितने लोगो का भला किया ,
तो कुछ भक्त ऐसे भी है जो खुद के साथ बाबा की अद्भुत लीलाओ के माध्यम से बाबा को महसूस करते है,
और कुछ लोग वो भी है जो अपने कार्यो में बाबा को पाते है ।

सबका अपना अपना नजरिया है बाबा को देखने का और बाबा की मौजूदगी महसूस करने का ......
परन्तु-
The luckiest are the ones who identify their own actions as the outcome of inner motivations generated by Baba.
The best devotees are those who in every motivation and action find the play of His Divine play-लीला .

श्री साँई अमृततुल्य सुवचन- कर्मचक्र

:: ll श्री साँई अमृततुल्य सुवचन ll ::

:- कर्मचक्र-

" कर्म देह प्रारम्भ (वर्तमान भाग्य), पिछले कर्मो का फल अवश्य भोगना पड़ेगा, गुरु इन कष्टों को सहकर सहना सिखाता है, गुरु सृष्टि नहीं दृष्टि बदलता है ।"- Baba Sai.

श्री साँई चरण ही हमारी शरण

हे हम सबके आराध्य बाबा साँई ,

                   हम सभी का मन-मधुप आपके चरण कमल में ध्यान लगाने और भजन सुनने व् आपकी कृतियों को पढ़ने में लगा रहे । आपके अतिरिक्त भी अन्य कोई ईश्वर है, इसका हमें ज्ञान नहीं । हम पर आप सदा दया और स्नेह करें और अपने चरणों के दीन हम दासों की रक्षा कर हम सभी का कल्याण करें ।
आपके भवभयनाशक चरणों का स्मरण करते हुये हमारा जीवन आनन्द से व्यतीत हो जाये, ऐसी मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है ।

हे श्री साँई, तव श्री चरणों में हमारा साष्टांग प्रणाम ।

श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश-अध्याय 6

:: ll श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश ll ::

श्री साईबाबा के मनोहर रुप के दर्शन कर कंठ प्रफुल्लता से रुँध जाता है, आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगती है और जब हृदय भावनाओं से भर जाता है, तब सोडहं भाव की जागृति होकर आत्मानुभव के आननन्द का आभास होने लगता है । मैं और तू का भेद (दैृतभाव) नष्ट हो जाता है और तत्क्षण ही ब्रहृा के साथ अभिन्नता प्राप्त हो जाती है ।

(श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 6)

Thursday, May 5, 2016

साँई ही हमारा संसार

बाबा साँई में होगी कुछ ख़ास बात
तभी साँई को पूजता है सारा संसार
जो बाबा साँई की शरण में आ गया
उसके मन में साँई नाम की है झंकार
जिसने सब्र रख साँई में श्रद्धा कर ली
वो जीवन में सीख लेता है सद्व्यवहार
जो हर जन में साँई का दर्शन करे,
उस पर साँई कृपा बरसती है बेशुमार
शौहरत की चाह छोड़ जो साँई में डूबे
उसके जीवन में लगता है खुशियों का भण्डार
जिसका सब अपनों ने छोड़ दिया हो साथ
उसका तब बाबा साँई बनता है मददगार
बीच मंझधार में फ़ंसती जब जीवन नैया
तब बाबा साँई लगा देता है नैया को पार
बाबा भक्तो पर अपार रहमतें है लुटाता
कोई इसे उसकी लीला कहता कोई कहे चमत्कार
बाबा की शरण में इक बार आकर तो देखो
जीवन से हट जायेगा तुम्हारे पापो का भार
कर्म सदा नेक कर सत्य की राहो पर चलना ,तो
लोगो के लिए प्रशंसनीय होगा तुम्हारा जीवन सार
जब जीवन में चहुँ ओर दिखे अँधियारा
तो बाबा साँई को बना लेना जीवन आधार
मैल तुम्हारी युगों की धुल तबियत निखरेगी
और बाबा साँई जोड़ेंगे तुमसे दिल के तार
ग़मो की धूप से जो मन संकीर्ण हुआ था
साँई कृपा पा खुशियों से मन का होगा विस्तार
साँई तेरे संग रहेंगे जीवन के हर क्षण में
बस तू साँई को समझना अपना घरबार
साँई ने बाँटी शिक्षा " श्रद्धा और सबूरी" की
ये " श्रद्धा और सबूरी " है सर्वोत्तम सुविचार
जो जन इसको अपने जीवन में अपना ले
उसके मन से निकले साँई नाम बारम्बार
साँई चरणों को समझे जो अपना आशियाना
उसके जीवन को पल में देते है बाबा संवार
जिनका जीवन में कोई नही होता अपना
उनको बाबा देते है मातृ पितृ सम दुलार
दुनिया की सुध छोड़ साँई में ऐसे डुबो
कि तन मन पर छड़ जाये साँई नाम का खुमार
हर रोज हर पल साँई साँई रटते चलो
फिर चाहे जीवन में दिन बचे हो चार
साँई नाम से वो चार दिन भी पावन बनेंगे
और बाबा साँई की रहमत बरसेगी अपरम्पार
साँई ने हमे ये मानव देह दी और अपना बनाया
इसके लिये साँई का तहे दिल से करते हम आभार

श्री साँई अमृततुल्य सुवचन- "आत्मचिंतन"


::ll श्री साँई अमृततुल्य सुवचन ll::
आत्मचिंतन-
" अपने आपकी पहचान करो, कि मेरा जन्म क्यों हुआ? मैं कौन हूँ? आत्म-चिंतन व्यक्ति को ज्ञान की ओर ले जाता है| "- Baba Sai .

Wednesday, May 4, 2016

बाबा के अनन्य भक्त- भाई महाराज कुम्भकार

:: ll बाबा के अनन्य भक्त- भाऊ महाराज कुम्भकार ll ::

चैत्र मास की कृष्णपक्ष तृतीया को भाऊ महाराज की पुण्यतिथि होती है । भाऊ महाराज रहने वाले नीमगाँव के थे एवम् जाति से कुम्भकार थे, ये नीमगाँव छोड़ शिर्डी में आ गए थे एवम् जीवनपर्यन्त शिर्डी में रहे , शिर्डी में जहाँ नानावली की समाधि है वही उसके पास ही इन भाऊ महाराज की समाधि है- आप में से अधिकांश लोगो ने इनकी समाधि के दर्शन भी किये होंगे ।
ये जब नीमगाँव से शिर्डी में आकर बस गए तो शनि मन्दिर के पास रहते थे एक बरगद के वृक्ष के नीचे, इनकी बाबा के प्रति भक्ति निस्वार्थ थी, ये भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करते थे,
इनके पास एक कंबल था जिसे सदा अपने पास रखते थे एवम् अगर इन्हें कोई धनाढ्य व्यक्ति वस्त्र वस्तु भेंट देता था तो ये उन वस्तुओ वस्त्रो को जरूरतमन्द लोगो में बाँट देते थे ।
ये रोज सुबह से लेकर दोपहर तक शिर्डी की गलियो की सफाई करते थे और अपने कम्बल से ही शिर्डी की सारी गलियो की सफाई किया करते थे , चाहे बारिश हो या तेज धूप इनका सफाई का नियम कभी नही टुटा ,

सुबह जल्दी उठकर बाबा के दर्शनों के ये जाते थे, एवम् बाबा से अकेले में जो वार्ता होती थी वो ये किसी को नही बताते थे । एक बार किसी ने इनसे पुछा तो बहुत प्रयत्न करने पर इन्होंने बताया कि- "बाबा मुझे अपनी भाकरी में से 1/4 हिस्सा देते है और अच्छी प्रेरणादायक कहानियाँ सुनाते है" ।

जब बाबा ने महासमाधि ले ली थी, उसके पश्चात ये भाऊ महाराज दिन में कई बार बाबा के दर्शनों के लिये बाबा के समाधि मन्दिर जाया करते थे और ये बात किसी को पता नही होती थी- सोचिये बाबा से इनका रिश्ता कितना घनिष्ट होगा तभी तो किसी को पता भी नही होता था और ये बाबा की महासमाधि के दर्शनों को जाते थे तो जरूर ये अकेले में बाबा से पहले की तरह बाते करते होंगे जैसे कि जब बाबा देह में थे तब किया करते थे ।

जब भाऊ महाराज ने अपनी देह त्यागी थी तो उससे 1 सप्ताह पहले से कुछ भी खाना पीना छोड़ दिया था एवम् जब इन्होंने देह त्यागी तब शिर्डी में सब लोग उपस्थित हो गए एवम् गम में डूब गए , और लोगो ने निश्चय कर 12 वे दिन इनके सम्मान में शिर्डी में विशाल भंडारे का आयोजन किया ।

तब से शिर्डी साँई संस्थान हर वर्ष चैत्र मास की तृतीया को इनकी पुण्यतिथि के रूप में मनाता है एवम् इस दिन हर साल विशाल भंडारे का आयोजन होता है ।
आज भी कई औरते जब इनकी समाधि के दर्शन करती है तो इनकी समाधि से धूल लेकर अपने बच्चों के मस्तक पर लगाती है कि बड़ा होकर हमारा बच्चा भी इनकी तरह ही बनें - सच्चा एवम् निस्वार्थ बाबा का अनन्य भक्त ।

आज भाऊ महाराज की पुण्यतिथि है, भाऊ महाराज को शत् शत् नमन् ।

ॐ श्री साँई राम जी ।

Sunday, May 1, 2016

साई दर्श

:: ll साँई - दर्श ll ::

जो निस्वार्थ नेकी करे
उन्हें साँई मिल जाय
भक्ति की क्या जरूरत
गरीबो में साँई दर्श पा जाय l

दर्श साँई के करने की
मन में जगी इक अभिलाषा
गुजराती मेघा की जीवनी पढ़ी
समझ में आई भक्ति की परिभाषा l

बाबा साँई दर्श देते नही आसानी से
सुना है करनी पड़ती है बड़ी तपस्या
किसी बेसहारे का तुम सहारा बन जाओ
साँई दर्श होंगे उनमे,दूर होगी सब समस्या l

फलयुक्त वृक्ष भाँति विनम्र बन
और छोड़ दे बंदे तू अभिमान
साँई दर्श तुझको हो जायेंगे
बन जायेगा तू गुणों की खान l

लोग कहते है साँई दर्श हो तो
वो हमेशा अच्छे बनकर रहेंगे
गर अच्छे बन कर ही रह लो
तो बाबा साँई तुम्हे जरूर मिलेंगे l

बाबा साँई के दर्श हो जाये गर,
लगे ज्यों अमृत का प्याला पीना
और बाबा साँई गर हुए मुझसे दूर,
लगे ज्यो तिल तिल हर दिन मरना

Friday, April 29, 2016

श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश- अध्याय 22

:: ।।श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश ।।::

बाबा के चित्र की ओर देखो । अहा, कितना सुन्दर है । वे पैर मोड़ कर बैठे है और दाहिना पैर बायें घुटने पर रखा गया है । बांये हाथ की अँगुलियाँ दाहिने चरण पर फैली हुई है । दाहिने पैर के अँगूठे पर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियाँ फैली हुई है । इस आकृति से बाबा समझा रहे है कि यदि तुम्हें मेरे आध्यात्मिक दर्शन करने की इच्छा हो तो अभिमानशून्य और विनम्र होकर उक्त दो अँगुलियों के बीच से मेरे चरण के अँगूठे का ध्यान करो । तब कहीं तुम उस सत्य स्वरुप का दर्शन करने में सफल हो सकोगे । भक्ति प्राप्त करने का यह सब से सुगम पंथ है ।
( श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 22 )

श्री साँई अमृततुल्य सुवचन

:: ll श्री साँई अमृततुल्य सुवचन ll :

" मुझे प्रवेश करने के लिए किसी विशेष द्घार की आवश्यकता नहीं है । न मेरा कोई रुप ही है और न कोई अन्त ही । मैं सदैव सर्वभूतों में व्याप्त हूँ । जो मुझ पर विश्वास रखकर सतत मेरा ही चिन्तन करता है, उसके सब कार्य मैं स्वयं ही करता हूँ और अन्त में उसे श्रेण्ठ गति देता हूँ "- Baba Sai .

(श्री साँई सच्चरित्र से उद्धृत)

Tuesday, April 26, 2016

जो मस्जिद(द्वारकामाई)में आया, सुखी हो गया

::।। बाबा साँई की अद्भुत लीलाएं ।।::

# जो मस्जिद(द्वारकामाई) में आया,सुखी हो गया #

भीमा जी पाटिल पूना जिले के गांव जुन्नर के रहनेवाले थे| वह धनवान होने के साथ उदार और दरियादिल भी थे| सन् 1909 में उन्हें बलगम के साथ क्षयरोग (टी.बी.) की बीमारी हो गयी| जिस कारण उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा| घरवालों ने इलाज कराने में किसी तरह की कोई कोर-कसर न छोड़ी| लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ| वह हर ओर से पूरी तरह से निराश हो गये और भगवान् से अपने लिए मौत मांगने लगे|

फिर ऐसे में अचानक पाटिल को नाना सोहब चाँदोरकर की याद आयी| उन्होंने उन्हें लाइलाज बीमारी के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए पत्र लिखा| चूंकि नाना साहब भीमा पाटिल के पुराने मित्र थे, सो पत्र पढ़कर बेचैन हो उठे| जवाब में उन्होंने शिरडी और साईं बाबा का महत्व बताते हुए उनकी शरण लेने को कहा, कि अब इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है|

नाना साहब का पत्र पाकर, उनके वचनों पर विश्वास करते हुए उन्हें आशा की किरण दिखाई दी| उन्होंने शिरडी जाने की तैयारी की| साथ में घरवाले भी थे| उन्होंने उन्हें शिरडी में लाकर मस्जिद में बाबा के सामने लिटा दिया| उस समय वहां पर नाना साहब और माधवराव (शामा) तथा अन्य भक्त भी उपस्थित थे|

भीमा की हालत देखकर बाबा बोले - "ये सब तो पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का फल है, मैं कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता|" साईं बाबा का जवाब सुनकर भीमा ने बाबा के चरण छूकर, गिड़गिड़ाते हुए अपने प्राण बचाने की विनती की, तो बाबा के मन में करुणा पैदा हो गयी| बाबा पाटिल से बोले - "ऐ भीमा ! घबरा मत| जिस समय तू शिरडी में दाखिल हुआ, उसी क्षण तेरा बदनसीब दूर हुआ| मस्जिद का फकीर बड़ा दयालु है| वह रोग भी दूर करता है और प्यार से परवरिश भी करता है| जो भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ इस मस्जिद की सीढ़ी पर कदम रखता है, वह सुखी हो जाता है|" यह सुनते ही भीमा बेफिक्र हो गया|

भीमा बाबा के पास लगभग एक घंटा बैठा होगा, पर सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि भीमा को हर पांच मिनट में खूनी उल्टियां हुआ करती थीं| पर बाबा के सामने रहने पर उसे एक बार भी उल्टी नहीं हुई| रोग तो तभी समाप्त हो गया था जब बाबा ने भीमा को दयालुता-भरे वचन कहे थे| बाद में बाबा ने भीमा जी को भीमाबाई के घर ठहरने के लिए कहा|
बाबा के कहने पर भीमा पाटिल भीमाबाई के घर रुक गया और थोड़े ही दिनों में उसका रोग पूरी तरह से ठीक हो गया| वह बाबा का गुणगान करता हुआ अपने घर लौट गया और बाबा के दर्शन करने के लिए आने लगा| भीमा की साईं बाबा ने निष्ठा बढ़ गई|

बोलिये साँई नाथ महाराज की जय ।
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Monday, April 25, 2016

Think Positive

आप सभी श्री साँई चरण प्यारों को, भक्त जन न्यारो को मेरा सादर प्रणाम ।

आज का यह लेख बहुत महत्त्वपूर्ण है,आप सभी अवश्य पढ़िये ।

इससे पहले कि मैं मूल बात पर आऊँ, उससे पहले एक बात करना चाह रहा हूँ कि- आखिर में ख़ुशी क्या है !!
हम कोई काम करते है, पैसा कमाते है , इन सबका अंतिम उद्देश्य ख़ुशी ही तो होता है, जैसे मैंने कोई लेख लिखा,आप लोग पढ़े मुझे अच्छा लगा तो मुझे ख़ुशी हुई । एक इंसान ने बिजनेस किया बहुत पैसा कमाया , क्यों !!! , कि लाइफ में सब चीज पा सके , सब चीज पाने से क्या होगा ? - ख़ुशी मिलेगी ।
तो हम जो कुछ भी करते है सब ख़ुशी पाने के लिये ही तो करते है ।

अब हम कुछ कर रहे है और वो करने के बाद भी ख़ुशी नही मिले, आत्म सन्तुष्टि नही मिले तो फिर उस काम का फायदा ही क्या !!

हम सोचते है कि मैं ये कर लूंगा तो ऐसा हो जायेगा और मुझे ख़ुशी मिलेगी ।
परन्तु हम ख़ुशी को पाने के लिये जो कार्य करते है वो कार्य होने पर भी ख़ुशी नही मिलती , आखिर क्यों !!

क्योकि हम ख़ुशी को उच्च स्तर पर आंक लेते है और उस उच्च स्तर को पाने के लिये प्रयास करते है और प्रयास सफल हो जाता है तब भी हमे ख़ुशी नही मिलती, क्योकि खुशियाँ कहि नही वो तो हमारे इर्द गिर्द ही है हमारे स्वयम् में है।
एक बहुत अमीर इंसान बहुत पैसे कमाकर भी रात को चैन की नींद सो नही पाता और एक मजदूर दिन भर काम कर रात को पत्थर पर ही सुकून से सो जाता है - तो खुशियाँ तो हमारे अंदर है बस हमे उनको ढूँढना है । हमारे जीवन में परेशानियाँ आती है और हम घबरा जाते है तो इस कारण जो ख़ुशी के पल उन्हें दरकिनार कर देते है ।
आप जो कार्य करना चाह रहे है उसमे सफल नही हो रहे तो क्या गारण्टी है कि उस कार्य में सफल होने पर आपको ख़ुशी मिल ही जायेगी !
तो ख़ुशी का कोई पैमाना नही है ,वो तो हमारे अंदर ही छुपी हुई है ,तो हमे हर पल खुश रहना सीखना चाहिये, चाहे जीवन में कितना भी मुश्किल समय आये ।

अब आते है मूल बात पर-
" कई बार ऐसा होता है कि हम बाबा में या अपने इष्ट देव में पूर्ण श्रद्धा रखते है एवम् सब्र (धैर्य) भी करते है परन्तु फिर भी हम जो चाहते है वो हमे मिल नही पाता है  ,हम मुसीबतों से बाहर निकल नही पाते है, हमे हमारे प्रश्नो के उत्तर मिल नही पाते है ,
और तब एक और प्रश्न सामने आ खड़ा होता है कि - "" आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? ""
               तो आइये, इसी सन्दर्भ में चर्चा करते है कि आखिर ऐसा क्यों होता है........

1)- पहली बात - हम जिस चीज के पीछे भाग रहे हो क्या पता वो हमारी मंजिल नही हो !! हमारी श्रद्धा व् सबूरी देख बाबा ने हमे उस चीज से बेहतर चीज देने का सोच रखा हो !, मतलब कि जो चीज हम पाना चाह रहे हो ,बाबा ने हमे उस चीज से बेहतर चीज देने के लिये योजना बना रखी हो, क्या पता !!
उदाहरण के लिये- आदरणीय स्वर्गीय डॉ कलाम सर पहले पायलट बनना चाहते थे, पर पायलट की एग्जाम में फ़ैल हो गए तब उनको लगा कि ये उनकी मंजिल नही है तब वो विज्ञान के क्षेत्र में आये और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिक बने और फिर राष्ट्रपति भी और हम सबके रोल मॉडल भी, तो अगर वो उस दिन पायलट बन गए होते तो यहाँ भला मैं कैसे उनका उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट कर रहा होता ?

2)- बाबा में या अपने इष्ट भगवान में पूरी श्रद्धा व् सब्र रखने पर भी हमारी मुसीबत कम नही होती तब हमे लगता कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, तो एक पहलू ये भी है कि पूर्व जन्म के कार्य ।
श्रीमद्भगवगीता में भी पूर्व जन्म के कर्मो के बारे में बताया गया है कि हमे कर्मो का हिसाब तो करना ही होता है ।

कई बार हम देखते है कि कोई इंसान बुरा है फिर भी वो खुश है उसके पास सब कुछ है और एक इंसान नेक काम करता है मेहनती है और भक्ति भी करता है वो बहुत ही दुःखी है और आये दिन नयी मुसीबतों का सामना करता रहता है तो इन सबके लिये कहि न कहि हमारे पूर्व जन्म के कार्य भी जिम्मेदार होते है ।
इसी से जुडी एक कहानी याद आ रही है जो मैंने कहि किसी धार्मिक पुस्तक में पढ़ी थी कि एक बार एक भक्ति करने वाला, सच्चा, मेहनती लड़का व् एक बुरा,भगवान को गाली देने वाला लड़का,वो दोनों साथ में एक जंगल से गुजर रहे होते है तो जो अच्छा लड़का होता है वो ठोकर खाकर गिर जाता है वही दूसरी ओर बुरे लड़के को रास्ते में सोने की अंगूठी मिलती है तो अच्छा लड़का जब बहुत समय बाद दुनिया छोड़ता है तब भगवान से पूछता कि ऐसा क्यों ! तो भगवान कहते है कि पूर्व जन्म में तू दुष्ट इंसान था और वो बुरा लड़का एक सन्त था , परन्तु तूने इस जन्म में अच्छे कार्य किये इसलिये तेरे पाप कटे , अतः तेरे को सिर्फ मामूली ठोकर ही लगी नही तो तेरे आगे गहरी खाई थी परन्तु इस जन्म में अच्छे कर्म की वजह से तुझे केवल मामूली ठोकर लग कर रही गयी
और जो बुरा लड़का है वो पिछले जन्म में सन्त था तो उसे सोने का घड़ा मिलने वाला था परन्तु इस जन्म में उसके कर्म बुरे है इसलिए उसे केवल अंगूठी मिल कर रह गयी ।

तो ये है कर्मो का महत्त्व , अर्थात अगर हम बुरे कर्म करेंगे तो हमें भुगतने तो पड़ेंगे ही और उस जन्म में नही तो अगले जन्म में परन्तु हाँ हम अच्छे कर्मो द्वारा बुरे कर्मो का हिसाब कम भुगतना पड़ता है ।
अब इसी क्रम में हम आगे बढ़ते है -

3)- हमारे जीवन में भाग्य और हमारे कर्म का बहुत बड़ा रोल होता है ।
आपकी बाबा प्रति भक्ति भी कर्म ही है, धैर्य रखे रहना भी कर्म ही है।

तो भाग्य और कर्म मिलाकर मिलती है सफलता ,
अर्थात भाग्य+कर्म= 100% (सफलता)

अब किसी इंसान के जीवन में भाग्य का हिस्सा ज्यादा होता है तो किसी के जीवन में कर्म का
जैसे कि उदाहरण के लिये , एक इंसान है उसके लिये भगवान ने तय किया हुआ है कि अगर ये 10% कर्म करे और इसका भाग्य 90% है तो मिलाकर 100% होगा ,तो भाग्य तो फिक्स होता है अब कर्म हमारे हाथो में है तो अगर वो इंसान 10% से कम कर्म करता है तो वो सफल नही हो पायेगा ।

उसी तरह किसी इंसान का भाग्य 10% ही है और कर्म का हिस्सा है 90% तो भाग्य तो फिक्स है परन्तु कर्म अगर उसने 90% किया तो वो सफल है

ये % तो यूही है, % के माध्यम से भाग्य व् कर्म के सम्बन्ध में समझाने का प्रयास किया है मैंने ।

अब हमारे जीवन में भाग्य कितने प्रतिशत है ये तो हमे ज्ञात नही तो हमे बिन रूके कर्म करते रहना है और साँई प्रति श्रद्धा भी कर्म ही है , और हम जीवन में कर्म करते रहते है बिन रूके तब भी सफल नही हो पा रहे है तो क्या पता हमने कर्म उतना किया ही नही हो जितनी जरूरत हो !!

अब सफल होने के लिये कर्म किसी को ज्यादा किसी को कम क्यों करना पड़ता है !!?
क्योंकि ये सब निर्भर करता है पूर्व जन्म में किये हमारे कर्मो पर कि कर्म हमारे कैसे थे अच्छे या बुरे !!?

4)- हम बाबा में अटूट श्रद्धा रखते है व् सब्र करते है व जीवन में नेक काम करते है लोगो की मदद करते है तो यकीनन हम बाबा के और करीब आ जाते है ।
तो एक बात सोचिये कि घर में पिता जी है और घर में कोई मेहमान आया हुआ है तो आपके पिता जी कोई भी कार्य के लिये आपको कहेंगे या मेहमान को ?
घर में वो मेहमान कुछ दिन रूके , और एक दिन खाने में स्वीट्स मंगवाई गयी बाहर से और वो कम पड़ जाये तो पिता जी आपको ही तो कहेंगे ना कि बेटा ये मिठाई मेहमान को खिला देते है, तू बिन खाये रह ले ।

उसी तरह बाबा से हमारा सम्बन्ध है , बाबा के हम करीब आ गए तो कोई भी परेशानी वाला कार्य होगा वो काम बाबा हम पर ही डालेंगे क्योकि हम उनके अपने है ,और दुनिया में सुख+दुःख मिलाकर संतुलन में रहते है तो बाबा किसी इंसान के हिस्से में सुख देने के लिये उसके हिस्से का दुःख उस इंसान को देते है जो उनके सबसे करीब है,जैसा कि ऊपर पिता, पुत्र व् मिठाई के सम्बन्ध में है ।
क्योंकि बाबा जानते है कि हम मन से काफी स्ट्रांग है, हर मुश्किल का सामना कर सकते है इसलिये बाबा ने हमे किसी इंसान को सुख देने के लिये उसके हिस्से के दुःख हमे दे दिए है क्योकि बाबा को हम पर भरोसा है कि हम दुःखो को हंसते हंसते झेल लेंगे और बाबा से शिकायत नही करेंगे ।।

और अगर हम बाबा से रूठ भी जाये तो बाबा स्वयम् हमे मनाता है, जैसे कि घर में पिता ने हमे सारा काम करने को बोल दिया, पिता ने हमे डाँट दिया, तो हम पिता से नाराज होकर बैठ जाते है तब पिता हमे स्वयम् मनाने आते है एवम् प्यार से बात करते है लाड करते है और हमारे मानते ही हमे फिर जिम्मेदारी देकर कहते है कि ये कार्य भी करने है तुमको ।
उसी तरह बाबा जो कि हमारे पिता तुल्य है, उनसे अगर हम रूठ जाये तो हमे विभिन्न संकेतो से मनाने का प्रयास करते है जैसे कि हम रूठ जायेंगे तो बाबा शिर्डी में किसी आरती समय हमारा पसंदीदा कलर के वस्त्र धारण कर लेंगे या हमारा छोटा मोटा कार्य पूर्ण कर देंगे या हमे अपनी लीला दिखा देंगे और जैसे ही हमारा रूठना खत्म हुआ तो बाबा हमे फिर से नई जिम्मेदारी दे देंगे ।।

तो अगर आप बाबा में पूर्ण श्रद्धा रखे हुए है एवम् सब्र किये हुए है व् फिर भी जीवन में मुसीबतों का सामना कर रहे है तो अपनी श्रद्धा व् सब्र का क्रम नही टूटने दीजिये एवम् सोचिये कि बाबा में श्रद्धा है तभी मुसीबत कम है नही तो मुसीबत इससे भी ज्यादा हो सकती थी , और साथ में ये भी सोचिये कि बाबा मुझे अपने करीब समझते है इसलिए ही बाबा ने मुझे मुसीबत देकर मेरे हिस्से की ख़ुशी किसी जरूरतमन्द को दे दी ताकि उसको खुशियाँ मिले और बाबा को लगता होगा कि मैं तो स्ट्रांग हूँ इन मुसीबतों का सामना कर ही लूँगा ।

अगर आप ऐसा सोचकर मुश्किल समय में भी सकारात्मक बनते हुए बाबा के प्रति विश्वास को डगमगाने नही देंगे तो यकीनन आपका बाबा से रिश्ता और मजबूत होगा एवम् आपमें आपके मुश्किल समय से लड़ने का जज्बा कायम होगा ।

तो बस साँई प्रति अपनी आस्था मत डगमगाने दो और धैर्य रखो रहो, सब अच्छा होगा ।

ॐ श्री साँई राम जी।