Monday, April 20, 2015

मेरे मन का साँई

मेरे मन का साईं अक्सर चुप रहता है ,कुछ बोलता नही
बस साक्षी बना सब देखता है
     लेकिन आज मेरे मन का साईं दुखी है.......बहुत दुखी
आज मेरे मन के साई के भीतर अश्रु का झरना फुट पडा है

मैंने पुछा कि साई क्या कारण है इसका तो मेरे मन का साई दुखी स्वर में बोला कि:-
मेरी बसायी इस प्यारी बगिया को न जाने क्या हो गया है, पुष्प की जगह अब कांटे उग आये है, एक पुष्प जरा खिला नही की उसे अभिमान हो गया कि उस जैसा कोई नही इस बगिया में,
एक फूल और सुगन्धित एवम् सुंदर फूल को तुच्छ समझने लगा जबकि साई की बगिया में तो सब फूल एक समान है कोई सुंदर है तो कोई सुगन्धित तो कोई पुष्प इतना विनीत की सदा झुक कर रहता है तो कोई तुरन्त खिल जाता है
सब पुष्प के अपने अपने गुण है
पर न जाने बगिया को क्या हुआ कि न अब यहाँ सींचने के लिए प्रेम रुपी जल है
और न ही अब बगिया ही है
बगिया ही छिन्न भिन्न है
ये बगिया नही एक व्यापार सा हो गया
हर पुष्प कहता है कि मैं साई का खास हूँ मैं ही उनके मस्तक पर चढ़ उनकी शोभा बढ़ाऊंगा
इस बात को लेकर पुष्पो में वाक् युद्ध छिड़ा है
पर कोई पुष्प यह नही कह रहा की मैं साई चरणों में अर्पित होऊँगा ताकि मैं विनम्र विनीत बनु मेरा अहंकार मिट जाये

आज सच मेरे मन का साई दुखी है
अगर मेरी भावनाये आप समझोगे तो आपके मन का साई भी दुखी होगा बहुत दुखी

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