Saturday, April 18, 2015

साई सुप्रभातम्

साई अपनी आभा बरसाते बनके रवि
साई किरणों में पाप कट जाते है सभी
जिस पल बसा ली मन मन्दिर में साई छवि
मन का कोना कोना दिव्यमान हो जाता तभी
साई का तो गुण है गाते ये आसमा जमी
साई सबको है अपनाते न देखे कोई कमी
भूल के राग द्वेष बन जाओ साई प्रेमी
जिसका मन निर्मल हो साई रहते है वही
श्रद्धा सबूरी रखने वाला ही है साई पथगामी
जिसने साई महिमा पुरे  दिल से है बखानी
साई माफ़ करता उसकी गलती उसकी नादानी
जिसने अपने मन में बैठे साई को पहचानी
साई उसकी जिव्हा में बसते बनके मधुर वाणी

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