Friday, September 11, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 22

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 22

साँई चरणों में ध्यान लगा
यह अध्याय करें हम पठन
साँई जी की लीला हो जाये
सुखी हो जाये हमारा जीवन ।।1।।

श्री साँई, सर्वशक्तिमान हैं
साँई की प्रकृति हैं अगाध
वर्णन करने में असमर्थ हैं
वेद व सहस्त्रमुखी शेषनाग ।।2।।

आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।3।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।4।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।5।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।6।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।7।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।8।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।9।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।10।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।11।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।12।।

साँई बाबा के वास से ही
तीर्थ बन जाये शिर्डी गाँव
भक्तगण शिर्डी आने लगे
पाते साँई कृपा रूपी छाँव ।।13।।

साँई प्रेम,साँई ज्ञान अपार हैं
वर्णन को शब्द न मिल पाये
बड़े धन्य हैं वे बाबा के भक्त
जो यह सब अनुभव कर पाये ।।14।।

कभी ब्रह्म में मगन रह
साँई दीर्घ मौन धारण करे
कभी आनन्द की मूर्ति बन
साँई रहे अपने भक्तो से घिरे ।।15।।

साँई जी कभी दृष्टांत देते
कभी वे विनोद किये जाय
वे कभी घण्टो प्रवचन देते
तो कभी सार रूप समझाय ।।16।।

साँई का मुखमंडल देखें
व साँई लीला सुनते जाय
भक्तगण फूले नही समाते
लीला श्रवण में आनंद आय ।।17।।

जलवृष्टि कण गिन सके
वायु भी संचित की जाय
किंतु साँई की लीला ऐसी
साँई लीला का अंत न पाय ।।18।।

साँई की लीलाएं अनेकों हैं
एक लीला पठन की जाये
कि कैसे रक्षा करते हैं साँई
व भक्तों को संकट से बचाये ।।19।।

बालासाहेब मिरीकर जी
एक समय चितली जाये
मार्ग में शिर्डी गाँव पधार
वे साँई दर्शन करने आये ।।20।।

साँई कहने लगे मिरीकर से
क्या तुम जानते द्वारकामाई
मिरीकर अर्थ समझ न सकें
तब उन्हें समझाने लगे साँई ।।21।।

जहाँ तुम बैठे हुए हो
वही तो हैं द्वारकामाई
जो उसकी गोद में बैठे
दूर होते दुख व कठिनाई ।।22।।

द्वारकामाई हैं अति दयालु
करे भक्तो के सभी कष्ट दूर
जो उसकी छत्रछाया में आये
आनन्द और सुख मिले भरपूर ।।23।।

मिरीकर को बाबा उदी दे
रखे उनके सिर पर वे हाथ
मिरीकर से बाबा कहने लगे
देकर उन्हें अपना आशीर्वाद ।।24।।

बायीं मुट्ठी बंद कर साँई
वे ले गए दायीं कुहनी पास
सर्प कुछ भी न कर पायेगा
रखो द्वारकामाई पर विश्वास ।।25।।

मिरीकर को ऐसा कह साँई
शामा को अपने पास बुलाये
साँई की आज्ञा हुई शामा को
वे मिरीकर संग चितली जाये ।।26।।

वे चितली को पहुंच कर
मारुति मंदिर में ठहर जाय
मिरीकर समीप एक सर्प था
किसी का ध्यान उधर न जाय ।।27।।

सर्प आवाज कर रेंगने लगे
चपरासी दौड़ लालटेन लाये
सर्प को देख वह चिल्लाने लगे
बालासाहेब भी भयभीत हो जाये ।।28।।

सब लोगो ने लाठी ली
सर्प का प्राणांत हो जाये
साँई ने जो संकट कहा था
पल में वह संकट टल जाये ।।29।।

साँई शब्द याद करे मिरीकर
साँई में उनकी निष्ठा बढ़ जाये
साँई कैसे भक्तो की रक्षा करते
भक्तो को संकट से साँई बचाये ।।30।।

नाना डेंगले ज्योतिषी एक
बापूसाहेब बूटी को बतलाये
आज तुम्हारे जीवन को भय हैं
यह सुनकर बापूसाहेब घबराये ।।31।।

बूटी साँई दर्शन को गए
तब साँई उन्हें समझाये
नाना जो तुमसे कह रहे
मेरे होते क्यो तुम घबराये ।।32।।

नाना से कह दो तुम कि
कुछ भी नही करेगा काल
अपनी चिंता को त्यागो तुम
तुम्हारा साँई देगा संकट टाल ।।33।।

जब बूटी गये शौच गृह
एक सर्प दिखाई दे जाय
उनका नौकर सर्प को देख
मारने को एक पत्थर उठाये ।।34।।

रेंग रेंगकर वह सर्प दूर हो
आंखों से ओझल हो जाय
साँई वचन का स्मरण करके
बूटी जी का मन बड़ा हर्षाय ।।35।।

कोरले वासी अमीर शक्कर
गठिया रोग से बड़ा कष्ट पाय
काम धंधा वह सारा छोड़कर
साँई शरण में वह शिर्डी आय ।।36।।

उसे बाबा ने आज्ञा दी
चावडी में करो निवास
उसकी पीड़ा दूर हो गई
अमीर रहा वहाँ नौ मास ।।37।।

एक रात वह बतलाये बिना
चावडी छोड़ कोपरगाँव जाय
अपनी भूल का अहसास हुआ
वापस लौटकर वह चावडी आय ।।38।।

एक रात को साँई बाबा
अब्दुल को पुकारे जाय
बत्ती लाओ यहाँ अब्दुल
कोई दुष्ट बिस्तर चढ़ जाय ।।39।।

साँई संगति में रह शक्कर
शब्दो का अर्थ समझ जाये
वहाँ एक साँप था बैठा हुआ
कुंडली मारे और फन फैलाये ।।40।।

साँप के प्राणों का अंत हुआ
अमीर के प्राण बचाये साँई
साँई का सानिध्य मिला उन्हें
थे साँई शक्कर के लिये सहाई ।।41।।

एक समय की बात हैं
हो रहा रामायण पठन
श्रोताओं में शामिल हो
पंतजी भी कर रहे श्रवण ।।42।।

रामायण पाठ के श्रवण में
श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाये
बिच्छु आ बैठे पंत दायें कंधे
पंत को पता भी ना चल पाये ।।43।।

श्रोता की रक्षा करे ईश्वर
पंत की दृष्टि कंधे पर जाये
कंधे पर बैठे बिच्छु को पंत
कथा श्रवण में तल्लीन पाये ।।44।।

श्रोताओं में विघ्न डाले बिना
पंत धोती के सिरे लिये जोड़
उसमे लपेट कर वे बिच्छु को 
बगीचे में ले जाकर दिए छोड़ ।।45।।

एक समय काकाजी बैठे हुए
साँप खिड़की से भीतर आये
लोग छड़ी ले उसे मारने दौड़े
साँप छिद्र में अदृश्य हो जाय ।।46।।

अच्छा हुआ, बच गया जीव
मुक्ताराम कहने लगे यह बात
पंतजी ने उनकी अवहेलना की
हुआ इस विषय पर वाद विवाद ।।47।।

दो अलग अलग मत थे
निष्कर्ष न निकल पाये
साँई समक्ष प्रश्न आया
तब साँई उन्हें समझाये ।।48।।

समस्त विश्व ईश्वर अधीन
सबमें ईश्वर का वास होय
चाहे साँप हो या हो बिच्छु
या फिर प्राणी जीव कोय ।।49।।

सभी प्राणियों से करो
दया व स्नेह का व्यवहार
वैमनस्य का त्याग करो व
रखो सदा ही उचित विचार ।।50।।

साँई तव चरणों में रहना चाहे
बना रहे 'गौरव' आपका दास
आपका स्मरण सदा करता रहे
न ले आपकी सेवा से अवकाश ।।51।।

पूर्ण भाव से पठन हुआ
सम्पूर्ण हुआ यह अध्याय
साँई से हम आशीष मांगें
सब पर साँई कृपा हो जाय ।।52।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Monday, September 7, 2020

श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान

*श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान*

बाबा के अनन्य भक्त , श्री हेमाडपंत जी ने श्री साँई सच्चरित्र महा ग्रन्थ रचा । श्री साँई सच्चरित्र के अध्याय 22 में हेमाडपंत जी , बाबा की भक्ति व ध्यान का एक अति सरल मार्ग बतलाते हैं वह यह हैं कि-
जिस प्रकार शुक्ल पक्ष के आरम्भ होने पर हम चन्द्र का दर्शन करना चाहते हैं तो हम वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य से चन्द्र दर्शन करते हैं व चन्द्र दर्शन करके प्रसन्न होते हैं , उसी तरह हमे बाबा के स्वरूप के दर्शन करने चाहिए । जिस स्वरूप में बाबा अपना दायाँ पैर मोड़ कर बैठे हैं तथा दायाँ पैर, बाएं घुटने पर हैं व बाएं हाथ की अंगुलियाँ दाएं पैर पर फैली हुई हैं ।  बाबा की मध्यमा व तर्जनी अंगुली के मध्य से हमें बाबा के अँगूठे का ध्यान करना चाहिए । अगर हम अभिमान त्याग कर, विनम्र होकर बाबा के अंगूठे का ध्यान करेंगे तो हमें बाबा के सत्य स्वरूप के दर्शन होंगे । 


बाबा की आज्ञा व उनकी कृपा से इसी प्रसंग को काव्य रूप में लिखने का प्रयास किया हैं, जिसे बाबा ने स्वयं लिखवाया हैं, उसे यहाँ साझा कर रहा हूँ:-



आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।

Wednesday, September 2, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 21

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 21

श्री साँई का ध्यान कर
पठन करे यह अध्याय
साँई की शिक्षाये अपना
हम भक्त साँईमय हो जाय ।।1।।

गत जन्मों के शुभ कर्म से
संतो का सानिध्य मिल पाय
शुभ कर्मों के फलस्वरूप ही
संतो की कृपा प्राप्त हो जाय ।।2।।।

बांद्रा के न्यायाधीश रहे
अनेक वर्षों तक श्रीहेमाड
शिर्डी जा बाबा के भक्त हुये
वे ऐसी साँई कृपा पाये अगाध ।।3।।

भाग्य के बिना कैसे भला
संतसमागम प्राप्त हो पाय
सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें
संत दर्शन प्राप्त हो जाय ।।4।।

लोकशिक्षा का कार्य संत
अनेक समय से करते आय
वे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतू
भिन्न स्थानो पर प्रगट हो जाय ।।5।।

कार्यस्थल भले ही भिन्न हो
परन्तु सब संत हैं एक समान
ईश्वर की एक लहर में कार्य करे
उन्हें रहता कार्य का परस्पर ज्ञान ।।6।।

एक समय व्ही.एच.ठाकुर 
कार्य से बेलगाँव समीप जाय
वडगाँव नामक ग्राम में वे पहुँचे
कानडी संत अप्पा के दर्शन पाय ।।7।।

वेदान्त के विषय में हैं
विचार सागर नामक ग्रंथ
ग्रंथ का भावार्थ समझा रहे
वहाँ भक्तो को वे कानडी संत ।।8।।

श्री ठाकुर से वे कहने लगे
करो इस ग्रंथ का अध्ययन
उत्तर दिशा में जब जाओगे
पाओगे महान संत के दर्शन ।।9।।

जब स्थानांतरण जुन्नर हुआ
जाते थे वे करके नाणेघाट पार
यह घाट अधिक गहरा व कठिन
घाट पार करते भैंसे पर हो सवार ।।10।।

स्थानांतरण जब कल्याण हुआ
श्री ठाकुर हुए उच्च पद आसीन
वहाँ नानासाहेब से परिचय हुआ
जो रहते बाबा की भक्ति में लीन ।।11।।

नानासाहेब से श्री ठाकुर को
साँईबाबा के बारे में हुआ ज्ञात
साँईदर्शन की उन्हें उत्कंठा हुई
नाना कहे चलिये आप मेरे साथ ।।12।।

किसी कार्य के चलते ठाकुर
नाना संग शिर्डी ना जा पाय
अकेले ही प्रस्थान किये नाना
ठाकुर का कार्य आगे बढ़ जाय ।।13।।

तब मित्रों संग श्री ठाकुर
साँई दर्शन को शिर्डी जाय
साँई के चरणों मे गिरे ठाकुर
बह रही आंखों से अश्रुधाराएं ।।14।।

त्रिकालदर्शी बाबा कहने लगे उनसे
इस स्थान का मार्ग इतना न आसान
जितनी नाणेघाट पर भैंसे की सवारी
या फिर कानडी संत अप्पा का ज्ञान ।।15।।

आध्यात्मिक पथ अति कठिन हैं
इस हेतू घोर परिश्रम किया जाये
बाबा के ये वचन सुने जब ठाकुर
कानडी संत के वचन याद आये ।।16।।

वे दोनों हाथों को जोड़कर
बाबा के चरणों मे गिर जाय
मुझे शीतलछाया में स्थान दो
साँई से वे प्रार्थना किये जाय ।।17।।

तब बाबा कहने लगें उनसे कि
सत्य कहे थे कानडी अप्पा संत
अपने आचरण में भी तुम लाओ
जो पठन किये विचारसागर ग्रंथ ।।18।।

जो कुछ भी पठन करते हो
उसे आचरण में लाया जाये
अन्यथा पठन का लाभ क्या
साँईबाबा यह बात समझाये ।।19।।

अंनतराव पाटणकर भक्त एक
साँई दर्शन को जब शिर्डी आये
साँई दर्शन पाकर नेत्र शीतल हुए
पाटणकर जी अति प्रसन्न हुए जाये ।।20।।

दर्शन कर कहने लगें बाबा से
पढ़ें मैंने वेद उपनिषद व पुराण
फिर भी मुझे शांति मिल न सकी
आया शिर्डी सुन आपका गुणगान ।।21।।

आपके वचनों व दृष्टि मात्र से
सबके मन को शांति मिल जाय
साँईजी से आशीर्वाद वे माँग रहे
तब साँई उन्हें एक कथा सुनाय ।।22।।

एक समय एक सौदागर
जब यहाँ शिर्डी वह आय
घोड़ी की लीद के नौ गोले
सौदागर एकत्र किए जाय ।।23।।

नौ गोले पाकर सौदागर
अपने चित्त को शांति पाय
जब यह कथा सुने पाटणकर
उन्हें कुछ अर्थ समझ में न आय ।।24।।

वे दादा केलकर से प्रार्थना करें
कथा का अर्थ उन्हें समझा दो
केलकर कहे घोड़ी ईश कृपा हैं
व नवविधा भक्ति हैं वह गोले नौ ।।25।।

नौ प्रकार की भक्ति हैं जैसे
श्रवण, कीर्तन, नाम स्मरण
पाद सेवन, वन्दन, सख्यता
अर्चन, दास्य, आत्मनिवेदन ।।26।।

इन नौ प्रकार की भक्ति में से
एक को भी कार्य में लाया जाये
तब भगवान अति प्रसन्न होकर
अपने भक्त के घर प्रगट हो जाये ।।27।।

जप, तप, योगाभ्यास, वेद पठन
अगर भक्ति भाव से न किये जाये
भक्तिभाव बिना यह सभी शुष्क हैं
पूर्ण भक्ति से सार्थक हैं ये साधनाये ।।28।।

दूसरे दिन पाटणकर जब
गए बाबा को प्रणाम करने
तब बाबा उनसे पूछने लगे
क्या नौ गोले पा लिये तुमने ।।29।।

साँई आपकी कृपा बिना
कैसे गोले एकत्र हो पाये
आपकी कृपा होनी जरूरी
ऐसा पाटणकर जी बतलाये ।।30।।

सुख व शांति मिल जायेगी
दिए साँई उन्हें यह आशीर्वाद
पाटणकर यह सुन प्रसन्न हुए
मिल गयी साँई से उन्हें सौगात ।।31।।

साँईजी से कुछ नही छुपा
वे सबके मन की जान जाये
भक्तो के दोष वे दूर कर देते
और उन्हें उचित राह दिखाये ।।32।।

पंढरपुर से एक वकील
एक समय शिर्डी को आये
साँई दर्शन कर, दक्षिणा दे
कोने में वे जाकर बैठ जाय ।।33।।

कुछ लोग कितने धूर्त हैं
उनको देख ऐसा कहे साँई
यहाँ आकर वे चरणों में गिरते
और पीठ पीछे करते हैं वे बुराई ।।34।।

साँई के कहे ये शब्द
वहाँ कोई समझ न पाये
वकील साहब सब सुन रहे
शब्दों का अर्थ वे समझ जाये ।।35।।

वकीलसाहब वाड़े को लौट
काकाजी को बताने लगे बात
साँईजी ने जो कहा सब सत्य हैं
निंदा करने में दिया था मैंने साथ ।।36।।

पंढरपुर से शिर्डी आकर ठहरे
एक समय श्रीनूलकर साँई दास
बाररूम में उनकी चर्चा हो रही
उनका व साँई का किया उपहास ।।37।।

साँई ने जो भी वचन कहे
किया साँई ने मुझपे उपकार
मुझे इस बात की शिक्षा मिली
न करूँ कभी निंदा का व्यवहार ।।38।।

शिर्डी व पंढरपुर मीलों दूर
फिर भी साँई को सब ज्ञात
कोई दूर रहे या रहे वे समीप
साँई जाने सबके मन की बात ।।39।।

जैसे सागर का अंत नही
वैसे ही साँई लीला अनन्त
साँई लीलाये हमें ज्ञात होये
जब पढ़े साँई सच्चरित्र ग्रंथ ।।40।।

'गौरव' करें अरदास साँई से
करते हुए साँई नाम स्मरण
कि साँई सभी पर कृपा करें
व साँई कृपा से रहे सब प्रसन्न ।।41।।

हम भक्तो को हैं विश्वास 
कि साँई सदा हमारे साथ हैं
साँई पूरी करते सब अरदास
वो साँई हम भक्तो के नाथ हैं ।।42।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।