Tuesday, March 31, 2015

श्री साई तुम ही हो श्रीगणेश

मंगलमूर्ति सिद्धिविनायक है श्रीगणेश
सर्वप्रथम पूज्य है वो है विघ्नेश
आओ हम उन्हें नमन करे आज
गजानन बनाएंगे हम सबके काज

कृपा करो हे साई तुम
आज बनके श्री गणेश
नेकी का शुभारम्भ करूँ मैं
बनाके तुम्हे अपना प्रथमेश

आज है आया वार है बुध
साई ही अल्लाह साई ही बुद्ध
साई ही राम साई ही है गणेश
करेंगे सबके दुःख दूर बनके विघ्नेश

साई तू दिखता है.....

सुबह उठ मैं हाथो की लकीरे देखूँ
तो उनमे भी साई तू नजर आता है
अब मैं कैसे कह दू कि मेरा दिन अच्छा नही बीता
सुबह हो शाम हर पल तेरा नाम संग चलता है

मैं जो भी गीत कागज पर उकेरू,
साईं तू आके वहाँ तेरा नाम लिखता है ।
मैं लिखना किस तरह छोड़ सकता हूँ ,
ये आइना है ,तू जिसमे दिखता है ।।

लोग कहते है तुझको किसी ने नही देखा , कोई
रोता हुआ इन्सान मुस्कुराये तो मुझे तू ही दिखता है ।
तेरा दो लम्हों का साथ मिला तो सब मिल गया ,
अब क्यों पूछे 'गौरव' कि ये किस्मत कौन लिखता है।

आज का वैदिक ज्ञान

:::::::::--वैदिक ज्ञान--::::::::::
मंगलवार,एकादशी,31/3/15

एकादशी में चावल वर्जित क्यो ?

एकादशी के दिन चावल न खाने के संदर्भ में यह
जानना आवश्यक है कि चावल और अन्य अन्नों की
खेती में क्या अंतर है. यह सर्वविदित है कि चावल की
खेती के लिए सर्वाधिक जल की आवश्यकता होती
है. एकादशी का व्रत इंद्रियों सहित मन के निग्रह के
लिए किया जाता है. ऎसे में यह आवश्यक है कि उस
वस्तु का कम से कम या बिल्कुल नहीं उपयोग किया
जाए जिसमें जलीय तत्व की मात्रा अधिक होती है.
कारण- चंद्र का संबंध जल से है. वह जल को अपनी ओर
आकषित करता है. यदि व्रती चावल का भोजन करे
तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को
तरंगित करेंगी. परिणामत: मन में विक्षेप और संशय का
जागरण होगा. इस कारण व्रती अपने व्रत से गिर
जाएगा या जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-
स्तुति पाठ, जप, श्रवण एवं मननादि करने थे, उन्हें सही
प्रकार से नहीं कर पाएगा. ज्ञातव्य हो कि औषधि
के साथ पथ्य का भी ध्यान रखना आवश्यक होता है.

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Monday, March 30, 2015

साईमय.....साईमय

साई धुन जब से मैं गाने लगा
साई का दीवाना मैं कहलाने लगा
साई सागर में गोते मैं खाने लगा
श्रद्घा सबूरी का मोती मैं पाने लगा
साई का नित नित दर्शन मैं करने लगा
तब से साई रहमत की बरखा में नहाने लगा
साई साई जब से मैं अपने काव्य में जोड़ने लगा
सम्पूर्ण जीवन मेरा साईमय साईमय होने लगा

राजस्थान दिवस

आँखों के दरमियान मैं
गुलिस्तां दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मैं आपको राजस्थान
दिखाता हुँ|
खेजड़ी के साखो पर लटके फूलो की कीमत
बताता हुँ,
मै साम्भर की झील से देखना कैसे नमक
उठाता हुँ|
मै शेखावाटी के रंगो से
पनपी चित्रकला दिखाता हुँ,
महाराणा प्रताप के शौर्य
की गाथा सुनाता हुँ|
पद्मावती और हाड़ी रानी का जोहर
बताता हुँ,
पग गुँघरु बाँध मीरा का मनोहर
दिखाता हुँ|
सोने सी माटी मे पानी का अरमान
बताता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान
दिखाता हुँ|
हिरन की पुतली मे चाँद के दर्शन कराता हुँ,
चंदरबरदाई के
शब्दों की वयाख्या सुनाता हुँ|
मीठी बोली, मीठे पानी मे जोधपुर की सैर
करता हुँ,
कोटा, बूंदी, बीकानेर और हाड़ोती की मै
मल्हार गाता हुँ|
पुष्कर तीरथ कर के मै चिश्ती को चाद्दर
चढ़ाता हुँ,
जयपुर के हवामहल मै, गीत मोहबत के गाता हुँ|
जीते सी इस धरती पर स्वर्ग का मैं वरदान
दिखाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान
दिखाता हुँ||
कोठिया दिखाता हुँ, राज
हवेली दिखाता हुँ,
नज़्ज़रे ठहर न जाए कही मै आपको कुम्भलगढ़
दिखाता हुँ|
घूंघट में जीती मर्यादा और गंगानगर
का मतलब समझाता हुँ,
तनोट माता के मंदिर से मै विश्व
शांति की बात सुनाता हुँ|
राजिया के दोहो से लेके, जाम्भोजी के
उसूल पढ़ाता हुँ,
होठो पे मुस्कान लिए, मुछो पे ताव देते
राजपूत की परिभाषा बताता हुँ|
सिक्खो की बस्ती मे, पूजा के बाद अज़ान
सुनाता हुँ,
आना कभी मेरे देश मै आपको राजस्थान
दिखाता हुँ||

जय जय राजस्थान
राजस्थान दिवस की आप सभी को हार्दिक
शुभकामनाए

Sunday, March 29, 2015

मेरे मन का साई

:-बाबा के मन्दिर के पत्थरों की दास्तान-:

कल मेरे मन के सांई मुझसे बोले कि तुम्हे मेरी शिरडी समाधि मन्दिर वाली मूर्ती कैसी लगती है मैने ज़वाब मे उत्तर दिया:-
'बाबा ये भी कोई पूछने की बात हुई।
ऐसी मनमोहक मूर्ती तो आज तक के किसी भी सांई मन्दिर की ना रही होगी।"

इस पर बाबा बोले सुनना चाहोगे मेरी इस मूर्ति के बनने की दास्तान। मै बोला बेशक बाबा बताओ ना।
इस पर बाबा ने मुझे यह कहानी सुनाई जिस पर अगर आप
सब भी गौर करे तो यह हम सब पर बखूब लागू होती है।
              जानते हो जब यह समाधि मन्दिर भूटी महाशय बनवा रहे थे तो रोज की तरह जब रात को जब महलसपति
महाराज मन्दिर का द्वार बंद करके घर चले जाते तों आधी रात को पत्थर आपस में बात किया करते थे। वह पत्थर जो फर्श पर थे, मेरी मूर्तिवाले पत्थर से अक्सर बोला करते थे, 'तुम्हारी भी क्या किस्मत है लोग हमें अपने पैरों से रौंदते हुए, जूते -चप्पलो से कुचलते हुए तुम्हारे पास आयेगें और तुम्हारे आगे श्रद्धा से हाथ जोड़ खड़े होंगे। तुमको फूल-मालाये चढ़ायेंगे।
     काश हम भी तुम्हारी जगह होते, पर हम तों यंहा फर्श पर लेटे-लेटे दर्द से कराहते रहते है। वाह!
किस्मत हो तों तुम्हारे जैसी।
      यह सुनकर मेरी मुर्तिवाला पत्थर बोला, 'भाई बात तों तुम
ठीक कह रहे हो पर याद करो वो दिन जिस दिन मुझ पर छेनी और हथौड़ों से मुझे तराशा जा रहा था, मैं उस चोट को बर्दाश्त करता रहता था, तुम सब मुझपर हँस रहे होते थे, तरस खा रहे होते थे। अगर तुमने भी वैसी चोटे अगर अपने जिंदगी में खाई होती, तों आज तुम भी यहाँ होते जहाँ मैं हूँ।
    
          अंत में बाबा ने कहा कि बच्चे ध्यान लायक बात यह है कि जिंदगी में कामयाबी बिना संघर्ष और बिना तकलीफों के किसी को नही मिलती, जो लोग इसे झेलते है सफलता उन्ही को मिलती है, किस्मत पर कुछ भी नही छोडा जा सकता।
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।। आज का वैदिक ज्ञान ।।

::::::::।। वैदिक ज्ञान ।।:::::::::::
सोमवार, 30-3-15

~भगवान शिव का जल से अभिषेक क्यों किया जाता है ?

:- शिव जी के मस्तक पर जल अर्पण करने की परंपरा चली आ रही है
पर बहुत से भक्तो को ये नहीं मालूम है की ऐसा क्यों किया किया जाता है...समुद्रमंथन के दौरान निकले हलाहल विष को श्रृष्टि को विनाश से बचाने भगवान भोलेनाथ ने पिया था और इस विष को पेट में जाने से बचाने के लिए पार्वती जी ने उनका गला दबाया...
इसके
कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया और
वे
शिवजी नीलकंठ महादेव कहलाये...
और
जिस स्थान पर उन्होंने ये विष पिया वो जगह नीलकंठ
कहलाया....

विषपान से शिवजी का माथा गर्म हो चूका था ,तब देवताओ ने शिव जी के मस्तक पर जलाभिषेक किया...तभी से शिव जी के मस्तक पर जलाभिषेक की परंपरा चली आ रही है...

            गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है।
नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में
से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी
स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था।
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आइये हम अच्छे बन जाये....:)

आइये हम अच्छे बन जाए ...
क्यों न कुछ अच्छा कर जाए
सप्ताह में एक दिन वृद्धाश्रम घूम आये ,
वृद्धो के अनुभव को सुन आये ,
उनके संग कुछ पल बिताये
आये हम अच्छे बन जाए ।

किसी रोते हुए को हँसाए
उसे जीवन जीना सीखा आये
क्यों न हम कुछ अच्छा कर जाए ।
रक्तदान कर किसी का जीवन बचाए ,
उसे उसकी खुशियाँ लौटाए ,
आइये हम अच्छे बन जाए ।

माँ पिता की सेवा करे ,
उनके ख्वाबो को पूरा करे ,
परिवार के संग जिन्दगी बिताये
आइये हम अच्छे बन जाए ।

जीवन में कभी किसी का दिल न दुखाये ,
किसी के दुखो का साथी बन जाए ,
क्यों न कुछ अच्छा कर जाये ।
अपनी सेलरी पॉकेट मनी का कुछ हिस्सा गरीबो में बाँट आये ,
उनकी गरीबी दूर करने का चंद प्रयत्न कर आये
आइये हम अच्छे बन जाए ।

असहाय बेसहारा का सहारा बन जाए ,
उनकी मदद कर आये ,
आइये हम अच्छा बन जाये ।
राह से भटके हुए का हाथ थामे उसको मंजिल पहुँचा आये ,
आइये हम अच्छा बन जाए ।

नारी को सम्मान दे ,
भ्रूण हत्या को रोक कर बेटियों से घर में खुशियाँ लाये ,
आइये हम अच्छा बन जाए ।

जीवन में किसी से ना द्वेष रखे ,
टूटे रिश्ते फिर से जोड़ आये ,
अटूट रिश्ता बनाये
आइये हम अच्छा बन जाये
अपने जीवन को सार्थक कर जाए

नेकी के काम कर खुद पर "गौरव" कर जाये ,
दुनिया से अंधकार मिटाए
आइये हम अच्छा बन जाए
क्यों न जीवन में कुछ अच्छा कर जाए ।।

शिर्डी यात्रा ;-रामनवमी के शुभ अवसर पर

पालकी के कांधा लगा के
बोलो जय जय साईनाथ
साई नाथ रख दो आज हम सबके
मस्तक पर आपके हज़ारो हाथ

हाँ मैंने आज जन्नत देखी है
शान से निकली राजाधिराज
की रथयात्रा देखी है

साई बैठे है शिर्डी गाँव में
साई बैठे है नीम की छाँव में
करते भक्तो का कल्याण
बाँटते भक्तो को श्रद्धा सबूरी का ज्ञान

आज देखा भक्तो का ताँता
साई की पावन चौखट पर
श्रद्धा का सैलाब उमड़ पड़ा कि मानो
सबने साई नाम की अमिट स्याह से साई लिख दिया अपने दिल के खत पर

आँखों में नींद है चेहरे पर थकान है
पर मन में साई मिलन की ऐसी प्यास है
कि आज पूरी रात करना साई गुणगान है
साई की शिर्डी स्वर्ग है साई बाबा महान है

साई शरण में जब से मैं आया
दुःख मुझे जरा भी छू न पाया
मेरे चहुँ ओर है बस साई का साया
मैंने साई अनमोल रतन धन है पाया

मन के मेरे विचार है अत्यंत मैले
साई दरबार की जब से छु चौखट
विचार सदविचार बन रहे है हौले हौले
सदगुरु साई ही बन गए मेरे शिव भोले

शिर्डी यात्रा

27-3-15

finally reached at
पुनीत पावन शिर्डी नगरिया
जहाँ बैठे है हम सब के खिवैया

आँखे खुली आज और
देखी शिर्डी में सुनहरी भोर
रोम रोम प्रफुल्लित हुआ
मिल गयी बाबा के चरणों में ठौर

शिर्डी की पावन भूमि पर
आज रखते ही कदम
पाप समूल नष्ट हुए और
हो गया सदगुरु साई से संगम

साई दर पर आज उमड़ पड़ा श्रद्धा का सैलाब
सब भक्तो पर आज करुणा बरसा रहे हो आप
आप ही हो इस समस्त भव के माँ बाप
जो दर्श करे आपके सच्चे मन से काटो उसके पाप

आँखे खुली आज और
देखी शिर्डी में सुनहरी भोर
रोम रोम प्रफुल्लित हुआ
मिल गयी बाबा के चरणों में ठौर

शिर्डी की पावन भूमि पर
आज रखते ही कदम
पाप समूल नष्ट हुए और
हो गया सदगुरु साई से संगम

आज नजर आ रहा था हर कोई
बड़ा ही व्याकुल पाने को बाबा के दर्शन
जैसे नन्हा सा बालक होता
अपनी माँ को अपने संग पाके प्रसन्न

साई मन्दिर का आज अनोखा नजारा था
हर कोई साई दर्श पाने को दिल हारा था
कोई जय जय कार लगा रहा
तो कोई साई प्रेम में अश्रु बहा रहा था
ऐसी ही है मेरे साई की लीला कि
हर जन साई आनन्द की लहरो में
सुध बुध खो गोते खा रहा था

शुकराना श्री साई का हर पल

मुसीबत समय साई बन परमात्मा
दिखाए मुझ अज्ञानी को सही राह
कैसे शुक्र अदा करूँ मैं उन गुरुवर का
बस करता मैं उनको आज नमो नम: