Friday, April 29, 2016

श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश- अध्याय 22

:: ।।श्री साँई सच्चरित्र अमृतोपदेश ।।::

बाबा के चित्र की ओर देखो । अहा, कितना सुन्दर है । वे पैर मोड़ कर बैठे है और दाहिना पैर बायें घुटने पर रखा गया है । बांये हाथ की अँगुलियाँ दाहिने चरण पर फैली हुई है । दाहिने पैर के अँगूठे पर तर्जनी और मध्यमा अँगुलियाँ फैली हुई है । इस आकृति से बाबा समझा रहे है कि यदि तुम्हें मेरे आध्यात्मिक दर्शन करने की इच्छा हो तो अभिमानशून्य और विनम्र होकर उक्त दो अँगुलियों के बीच से मेरे चरण के अँगूठे का ध्यान करो । तब कहीं तुम उस सत्य स्वरुप का दर्शन करने में सफल हो सकोगे । भक्ति प्राप्त करने का यह सब से सुगम पंथ है ।
( श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 22 )

श्री साँई अमृततुल्य सुवचन

:: ll श्री साँई अमृततुल्य सुवचन ll :

" मुझे प्रवेश करने के लिए किसी विशेष द्घार की आवश्यकता नहीं है । न मेरा कोई रुप ही है और न कोई अन्त ही । मैं सदैव सर्वभूतों में व्याप्त हूँ । जो मुझ पर विश्वास रखकर सतत मेरा ही चिन्तन करता है, उसके सब कार्य मैं स्वयं ही करता हूँ और अन्त में उसे श्रेण्ठ गति देता हूँ "- Baba Sai .

(श्री साँई सच्चरित्र से उद्धृत)

Tuesday, April 26, 2016

जो मस्जिद(द्वारकामाई)में आया, सुखी हो गया

::।। बाबा साँई की अद्भुत लीलाएं ।।::

# जो मस्जिद(द्वारकामाई) में आया,सुखी हो गया #

भीमा जी पाटिल पूना जिले के गांव जुन्नर के रहनेवाले थे| वह धनवान होने के साथ उदार और दरियादिल भी थे| सन् 1909 में उन्हें बलगम के साथ क्षयरोग (टी.बी.) की बीमारी हो गयी| जिस कारण उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा| घरवालों ने इलाज कराने में किसी तरह की कोई कोर-कसर न छोड़ी| लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ| वह हर ओर से पूरी तरह से निराश हो गये और भगवान् से अपने लिए मौत मांगने लगे|

फिर ऐसे में अचानक पाटिल को नाना सोहब चाँदोरकर की याद आयी| उन्होंने उन्हें लाइलाज बीमारी के बारे में विस्तार से वर्णन करते हुए पत्र लिखा| चूंकि नाना साहब भीमा पाटिल के पुराने मित्र थे, सो पत्र पढ़कर बेचैन हो उठे| जवाब में उन्होंने शिरडी और साईं बाबा का महत्व बताते हुए उनकी शरण लेने को कहा, कि अब इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है|

नाना साहब का पत्र पाकर, उनके वचनों पर विश्वास करते हुए उन्हें आशा की किरण दिखाई दी| उन्होंने शिरडी जाने की तैयारी की| साथ में घरवाले भी थे| उन्होंने उन्हें शिरडी में लाकर मस्जिद में बाबा के सामने लिटा दिया| उस समय वहां पर नाना साहब और माधवराव (शामा) तथा अन्य भक्त भी उपस्थित थे|

भीमा की हालत देखकर बाबा बोले - "ये सब तो पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का फल है, मैं कोई मुसीबत मोल लेना नहीं चाहता|" साईं बाबा का जवाब सुनकर भीमा ने बाबा के चरण छूकर, गिड़गिड़ाते हुए अपने प्राण बचाने की विनती की, तो बाबा के मन में करुणा पैदा हो गयी| बाबा पाटिल से बोले - "ऐ भीमा ! घबरा मत| जिस समय तू शिरडी में दाखिल हुआ, उसी क्षण तेरा बदनसीब दूर हुआ| मस्जिद का फकीर बड़ा दयालु है| वह रोग भी दूर करता है और प्यार से परवरिश भी करता है| जो भी व्यक्ति श्रद्धा के साथ इस मस्जिद की सीढ़ी पर कदम रखता है, वह सुखी हो जाता है|" यह सुनते ही भीमा बेफिक्र हो गया|

भीमा बाबा के पास लगभग एक घंटा बैठा होगा, पर सबसे आश्चर्यजनक बात यह थी कि भीमा को हर पांच मिनट में खूनी उल्टियां हुआ करती थीं| पर बाबा के सामने रहने पर उसे एक बार भी उल्टी नहीं हुई| रोग तो तभी समाप्त हो गया था जब बाबा ने भीमा को दयालुता-भरे वचन कहे थे| बाद में बाबा ने भीमा जी को भीमाबाई के घर ठहरने के लिए कहा|
बाबा के कहने पर भीमा पाटिल भीमाबाई के घर रुक गया और थोड़े ही दिनों में उसका रोग पूरी तरह से ठीक हो गया| वह बाबा का गुणगान करता हुआ अपने घर लौट गया और बाबा के दर्शन करने के लिए आने लगा| भीमा की साईं बाबा ने निष्ठा बढ़ गई|

बोलिये साँई नाथ महाराज की जय ।
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Monday, April 25, 2016

Think Positive

आप सभी श्री साँई चरण प्यारों को, भक्त जन न्यारो को मेरा सादर प्रणाम ।

आज का यह लेख बहुत महत्त्वपूर्ण है,आप सभी अवश्य पढ़िये ।

इससे पहले कि मैं मूल बात पर आऊँ, उससे पहले एक बात करना चाह रहा हूँ कि- आखिर में ख़ुशी क्या है !!
हम कोई काम करते है, पैसा कमाते है , इन सबका अंतिम उद्देश्य ख़ुशी ही तो होता है, जैसे मैंने कोई लेख लिखा,आप लोग पढ़े मुझे अच्छा लगा तो मुझे ख़ुशी हुई । एक इंसान ने बिजनेस किया बहुत पैसा कमाया , क्यों !!! , कि लाइफ में सब चीज पा सके , सब चीज पाने से क्या होगा ? - ख़ुशी मिलेगी ।
तो हम जो कुछ भी करते है सब ख़ुशी पाने के लिये ही तो करते है ।

अब हम कुछ कर रहे है और वो करने के बाद भी ख़ुशी नही मिले, आत्म सन्तुष्टि नही मिले तो फिर उस काम का फायदा ही क्या !!

हम सोचते है कि मैं ये कर लूंगा तो ऐसा हो जायेगा और मुझे ख़ुशी मिलेगी ।
परन्तु हम ख़ुशी को पाने के लिये जो कार्य करते है वो कार्य होने पर भी ख़ुशी नही मिलती , आखिर क्यों !!

क्योकि हम ख़ुशी को उच्च स्तर पर आंक लेते है और उस उच्च स्तर को पाने के लिये प्रयास करते है और प्रयास सफल हो जाता है तब भी हमे ख़ुशी नही मिलती, क्योकि खुशियाँ कहि नही वो तो हमारे इर्द गिर्द ही है हमारे स्वयम् में है।
एक बहुत अमीर इंसान बहुत पैसे कमाकर भी रात को चैन की नींद सो नही पाता और एक मजदूर दिन भर काम कर रात को पत्थर पर ही सुकून से सो जाता है - तो खुशियाँ तो हमारे अंदर है बस हमे उनको ढूँढना है । हमारे जीवन में परेशानियाँ आती है और हम घबरा जाते है तो इस कारण जो ख़ुशी के पल उन्हें दरकिनार कर देते है ।
आप जो कार्य करना चाह रहे है उसमे सफल नही हो रहे तो क्या गारण्टी है कि उस कार्य में सफल होने पर आपको ख़ुशी मिल ही जायेगी !
तो ख़ुशी का कोई पैमाना नही है ,वो तो हमारे अंदर ही छुपी हुई है ,तो हमे हर पल खुश रहना सीखना चाहिये, चाहे जीवन में कितना भी मुश्किल समय आये ।

अब आते है मूल बात पर-
" कई बार ऐसा होता है कि हम बाबा में या अपने इष्ट देव में पूर्ण श्रद्धा रखते है एवम् सब्र (धैर्य) भी करते है परन्तु फिर भी हम जो चाहते है वो हमे मिल नही पाता है  ,हम मुसीबतों से बाहर निकल नही पाते है, हमे हमारे प्रश्नो के उत्तर मिल नही पाते है ,
और तब एक और प्रश्न सामने आ खड़ा होता है कि - "" आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? ""
               तो आइये, इसी सन्दर्भ में चर्चा करते है कि आखिर ऐसा क्यों होता है........

1)- पहली बात - हम जिस चीज के पीछे भाग रहे हो क्या पता वो हमारी मंजिल नही हो !! हमारी श्रद्धा व् सबूरी देख बाबा ने हमे उस चीज से बेहतर चीज देने का सोच रखा हो !, मतलब कि जो चीज हम पाना चाह रहे हो ,बाबा ने हमे उस चीज से बेहतर चीज देने के लिये योजना बना रखी हो, क्या पता !!
उदाहरण के लिये- आदरणीय स्वर्गीय डॉ कलाम सर पहले पायलट बनना चाहते थे, पर पायलट की एग्जाम में फ़ैल हो गए तब उनको लगा कि ये उनकी मंजिल नही है तब वो विज्ञान के क्षेत्र में आये और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिक बने और फिर राष्ट्रपति भी और हम सबके रोल मॉडल भी, तो अगर वो उस दिन पायलट बन गए होते तो यहाँ भला मैं कैसे उनका उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट कर रहा होता ?

2)- बाबा में या अपने इष्ट भगवान में पूरी श्रद्धा व् सब्र रखने पर भी हमारी मुसीबत कम नही होती तब हमे लगता कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, तो एक पहलू ये भी है कि पूर्व जन्म के कार्य ।
श्रीमद्भगवगीता में भी पूर्व जन्म के कर्मो के बारे में बताया गया है कि हमे कर्मो का हिसाब तो करना ही होता है ।

कई बार हम देखते है कि कोई इंसान बुरा है फिर भी वो खुश है उसके पास सब कुछ है और एक इंसान नेक काम करता है मेहनती है और भक्ति भी करता है वो बहुत ही दुःखी है और आये दिन नयी मुसीबतों का सामना करता रहता है तो इन सबके लिये कहि न कहि हमारे पूर्व जन्म के कार्य भी जिम्मेदार होते है ।
इसी से जुडी एक कहानी याद आ रही है जो मैंने कहि किसी धार्मिक पुस्तक में पढ़ी थी कि एक बार एक भक्ति करने वाला, सच्चा, मेहनती लड़का व् एक बुरा,भगवान को गाली देने वाला लड़का,वो दोनों साथ में एक जंगल से गुजर रहे होते है तो जो अच्छा लड़का होता है वो ठोकर खाकर गिर जाता है वही दूसरी ओर बुरे लड़के को रास्ते में सोने की अंगूठी मिलती है तो अच्छा लड़का जब बहुत समय बाद दुनिया छोड़ता है तब भगवान से पूछता कि ऐसा क्यों ! तो भगवान कहते है कि पूर्व जन्म में तू दुष्ट इंसान था और वो बुरा लड़का एक सन्त था , परन्तु तूने इस जन्म में अच्छे कार्य किये इसलिये तेरे पाप कटे , अतः तेरे को सिर्फ मामूली ठोकर ही लगी नही तो तेरे आगे गहरी खाई थी परन्तु इस जन्म में अच्छे कर्म की वजह से तुझे केवल मामूली ठोकर लग कर रही गयी
और जो बुरा लड़का है वो पिछले जन्म में सन्त था तो उसे सोने का घड़ा मिलने वाला था परन्तु इस जन्म में उसके कर्म बुरे है इसलिए उसे केवल अंगूठी मिल कर रह गयी ।

तो ये है कर्मो का महत्त्व , अर्थात अगर हम बुरे कर्म करेंगे तो हमें भुगतने तो पड़ेंगे ही और उस जन्म में नही तो अगले जन्म में परन्तु हाँ हम अच्छे कर्मो द्वारा बुरे कर्मो का हिसाब कम भुगतना पड़ता है ।
अब इसी क्रम में हम आगे बढ़ते है -

3)- हमारे जीवन में भाग्य और हमारे कर्म का बहुत बड़ा रोल होता है ।
आपकी बाबा प्रति भक्ति भी कर्म ही है, धैर्य रखे रहना भी कर्म ही है।

तो भाग्य और कर्म मिलाकर मिलती है सफलता ,
अर्थात भाग्य+कर्म= 100% (सफलता)

अब किसी इंसान के जीवन में भाग्य का हिस्सा ज्यादा होता है तो किसी के जीवन में कर्म का
जैसे कि उदाहरण के लिये , एक इंसान है उसके लिये भगवान ने तय किया हुआ है कि अगर ये 10% कर्म करे और इसका भाग्य 90% है तो मिलाकर 100% होगा ,तो भाग्य तो फिक्स होता है अब कर्म हमारे हाथो में है तो अगर वो इंसान 10% से कम कर्म करता है तो वो सफल नही हो पायेगा ।

उसी तरह किसी इंसान का भाग्य 10% ही है और कर्म का हिस्सा है 90% तो भाग्य तो फिक्स है परन्तु कर्म अगर उसने 90% किया तो वो सफल है

ये % तो यूही है, % के माध्यम से भाग्य व् कर्म के सम्बन्ध में समझाने का प्रयास किया है मैंने ।

अब हमारे जीवन में भाग्य कितने प्रतिशत है ये तो हमे ज्ञात नही तो हमे बिन रूके कर्म करते रहना है और साँई प्रति श्रद्धा भी कर्म ही है , और हम जीवन में कर्म करते रहते है बिन रूके तब भी सफल नही हो पा रहे है तो क्या पता हमने कर्म उतना किया ही नही हो जितनी जरूरत हो !!

अब सफल होने के लिये कर्म किसी को ज्यादा किसी को कम क्यों करना पड़ता है !!?
क्योंकि ये सब निर्भर करता है पूर्व जन्म में किये हमारे कर्मो पर कि कर्म हमारे कैसे थे अच्छे या बुरे !!?

4)- हम बाबा में अटूट श्रद्धा रखते है व् सब्र करते है व जीवन में नेक काम करते है लोगो की मदद करते है तो यकीनन हम बाबा के और करीब आ जाते है ।
तो एक बात सोचिये कि घर में पिता जी है और घर में कोई मेहमान आया हुआ है तो आपके पिता जी कोई भी कार्य के लिये आपको कहेंगे या मेहमान को ?
घर में वो मेहमान कुछ दिन रूके , और एक दिन खाने में स्वीट्स मंगवाई गयी बाहर से और वो कम पड़ जाये तो पिता जी आपको ही तो कहेंगे ना कि बेटा ये मिठाई मेहमान को खिला देते है, तू बिन खाये रह ले ।

उसी तरह बाबा से हमारा सम्बन्ध है , बाबा के हम करीब आ गए तो कोई भी परेशानी वाला कार्य होगा वो काम बाबा हम पर ही डालेंगे क्योकि हम उनके अपने है ,और दुनिया में सुख+दुःख मिलाकर संतुलन में रहते है तो बाबा किसी इंसान के हिस्से में सुख देने के लिये उसके हिस्से का दुःख उस इंसान को देते है जो उनके सबसे करीब है,जैसा कि ऊपर पिता, पुत्र व् मिठाई के सम्बन्ध में है ।
क्योंकि बाबा जानते है कि हम मन से काफी स्ट्रांग है, हर मुश्किल का सामना कर सकते है इसलिये बाबा ने हमे किसी इंसान को सुख देने के लिये उसके हिस्से के दुःख हमे दे दिए है क्योकि बाबा को हम पर भरोसा है कि हम दुःखो को हंसते हंसते झेल लेंगे और बाबा से शिकायत नही करेंगे ।।

और अगर हम बाबा से रूठ भी जाये तो बाबा स्वयम् हमे मनाता है, जैसे कि घर में पिता ने हमे सारा काम करने को बोल दिया, पिता ने हमे डाँट दिया, तो हम पिता से नाराज होकर बैठ जाते है तब पिता हमे स्वयम् मनाने आते है एवम् प्यार से बात करते है लाड करते है और हमारे मानते ही हमे फिर जिम्मेदारी देकर कहते है कि ये कार्य भी करने है तुमको ।
उसी तरह बाबा जो कि हमारे पिता तुल्य है, उनसे अगर हम रूठ जाये तो हमे विभिन्न संकेतो से मनाने का प्रयास करते है जैसे कि हम रूठ जायेंगे तो बाबा शिर्डी में किसी आरती समय हमारा पसंदीदा कलर के वस्त्र धारण कर लेंगे या हमारा छोटा मोटा कार्य पूर्ण कर देंगे या हमे अपनी लीला दिखा देंगे और जैसे ही हमारा रूठना खत्म हुआ तो बाबा हमे फिर से नई जिम्मेदारी दे देंगे ।।

तो अगर आप बाबा में पूर्ण श्रद्धा रखे हुए है एवम् सब्र किये हुए है व् फिर भी जीवन में मुसीबतों का सामना कर रहे है तो अपनी श्रद्धा व् सब्र का क्रम नही टूटने दीजिये एवम् सोचिये कि बाबा में श्रद्धा है तभी मुसीबत कम है नही तो मुसीबत इससे भी ज्यादा हो सकती थी , और साथ में ये भी सोचिये कि बाबा मुझे अपने करीब समझते है इसलिए ही बाबा ने मुझे मुसीबत देकर मेरे हिस्से की ख़ुशी किसी जरूरतमन्द को दे दी ताकि उसको खुशियाँ मिले और बाबा को लगता होगा कि मैं तो स्ट्रांग हूँ इन मुसीबतों का सामना कर ही लूँगा ।

अगर आप ऐसा सोचकर मुश्किल समय में भी सकारात्मक बनते हुए बाबा के प्रति विश्वास को डगमगाने नही देंगे तो यकीनन आपका बाबा से रिश्ता और मजबूत होगा एवम् आपमें आपके मुश्किल समय से लड़ने का जज्बा कायम होगा ।

तो बस साँई प्रति अपनी आस्था मत डगमगाने दो और धैर्य रखो रहो, सब अच्छा होगा ।

ॐ श्री साँई राम जी।

Saturday, April 23, 2016

साँई - सानिध्य

यहाँ भला कौन साथ है निभाता
मरने पर अपने ही हमे जला देते है
तो भूल कर अबसे सब रिश्तों को
आओ साँई नाम में जिंदगी बिताते है

बाबा साँई बूढ़ा फकीर जरूर है ,
पर नही है वो सिर्फ अस्थियो का ढाँचा
वो तो एक आकार है अपार स्नेह का
जिसने हममें माँ तुल्य प्यार है बांटा ।।

कोई पूछे बाबा साँई क्या है !
साँई है स्त्रोत बरसती कृपा का
जरा साँई में सच्चा मन तो लगाओ
फिर कहोगे- " अब गम बचा ही कहाँ "

बाबा साँई तू है चंदन समान
मन में फैला रहा तेरे नाम की गंध
तेरा सानिध्य जबसे मुझको है मिला
मानो मेरा जीवन बन गया खिलता बसंत

डॉक्टर को बाबा में भगवान श्री राम् के दर्शन

::।। बाबा साँई की अद्भुत लीलाएं ।।::

# डॉक्टर को बाबा में श्रीराम के दर्शन #

"" एक बार एक तहसीलदार साईं बाबा के दर्शन करने के लिए शिरडी आये थे| उनके साथ एक डॉक्टर जो उनके मित्र थे, वे भी आये थे| डॉक्टर रामभक्त और जाति से ब्राह्मण थे| वे राम के अतिरिक्त और किसी को न मानते और पूजते थे|
वे अपने तहसीलदार दोस्त के साथ इस शर्त पर शिरडी आये थे कि वे न तो बाबा के चरण छुएंगे और न ही उनके आगे सिर झुकायेंगे, न ही वे उन्हें इस बात के लिए मजबूर करें, क्योंकि बाबा यवन (मुसलमान) हैं और वे श्रीराम के अलावा किसी के आगे सिर नहीं झुकाते|

शिरडी पहुंचकर जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के लिए मस्जिद गये, तो तहसीलदार से पहले उनके डॉक्टर मित्र आगे गये और बाबा के चरणों में गिरकर वंदना करने लगे| यह देखकर तहसीलदार को बड़ा आश्चर्य हुआ| अन्य सब उपस्थित लोग भी अचरज में डूब गये|

कुछ देर बाद जब उन्होंने डॉक्टर से इस बारे में पूछा कि आपने अपना इरादा कैसे बदल लिया ?
तब डॉक्टर ने उन्हें बताया कि बाबा के स्थान पर उन्हें उनके इष्ट श्रीराम जी खड़े दिखाई दिये और उनकी मोहिनी सूरत देखकर मैं तुरंत उनके चरणों में गिर पड़ा| जब वह ऐसा कह रहे थे तो उस समय साईं बाबा खड़े मुस्करा रहे थे| साईं बाबा को खड़े देख डॉक्टर को बहुत आश्चर्य हुआ कि कहीं वह कोई स्वप्न तो नहीं देख रहे हैं ? उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और वे बोले कि साईं बाबा को मुसलमान कहना मेरी बहुत बड़ी भूल थी| बाबा तो पूर्ण योगावतार हैं|

अगले दिन से उन्होंने उपवास करना शुरू कर दिया और प्रण किया कि जब तक बाबा स्वयं मस्जिद बुलाकर आशीर्वाद नहीं देंगे, तब तक मस्जिद नहीं जाऊंगा| उन्हें प्रण किए तीन दिन बीत गए| चौथे दिन उनका खान देश में रहनेवाला मित्र आया| मित्र से कई वर्षों के बाद मिलने पर वह बहुत खुश हुए| अपने मित्र के साथ डॉक्टर मस्जिद गए| जब डॉक्टर बाबा की चरण वंदना करने के लिए झुके, तो बाबा ने कहा - "तुम तो मस्जिद नहीं आने वाले थे, फिर आज कैसे आये ?" बाबा के वचनों को सुनकर डॉक्टर को अपना प्रण याद आया| उनका हृदय द्रवित हो उठा और आँखों में आँसू भर आये|

उसी रात को साईं बाबा ने डॉक्टर पर अपनी कृपादृष्टि की तो उन्हें सोते हुए ही परमानंद की अनुभूति हुई और वे 15 दिनों तक उसी आनंद में डूबे रहे| उसके बाद वे साईं बाबा की भक्ति के रंग में रंग गये| ""
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कर्म भोग न छूटे भाई

ll:: बाबा साँई की अद्भुत लीलाएं ::ll

# "" कर्म भोग न छूटे भाई "".....#

पूना के रहनेवाले गोपाल नारायण अंबेडकर बाबा के अनन्य भक्त थे| वे सरकारी कर्मचारी थे| शुरू में वे जिला ठाणे में नौकरी पर थे, बाद में तरक्की हो जाने पर उनका तबादला ज्वाहर गांव में हो गया| लगभग 10 वर्ष नौकरी करने के बाद उन्हें किसी कारणवश त्यागपत्र देना पड़ा| फिर उन्होंने दूसरी नौकरी के लिए अनथक प्रयास किये, परंतु सफलता नहीं मिली|
नौकरी न मिलने के कारण माली हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गयी और घर-बार चलाना उनके लिए मुसीबत बन गया| ऐसी स्थिति सात वर्ष तक चली, परन्तु ऐसी स्थिति होने के बावजूद भी प्रत्येक वर्ष शिरडी जाते और बाबा को अपनी फरियाद सुनाकर वापस आ जाते|

आगे चलकर उनकी हालत इतनी बदत्तर हो गयी कि अब उनके सामने आत्महत्या करने के अलावा और कोई रास्ता न बचा था| तब वे शिरडी जाकर आत्महत्या करने का निर्णय कर परिवार सहित शिरडी आये और दो महीने तक दीक्षित के घर में रहे|

एक रात के समय दीक्षित बाड़े के सामने बैलगाड़ी पर बैठे-बैठे उन्होंने कुएं में कूदकर आत्महत्या करने का विचार किया, लेकिन बाबा ने उन्हें आत्महत्या करने से रोकने का निश्चय कर लिया था| यह देखकर कि अब कोई देखने वाला नहीं है, यह सोचकर वे कुएं के पास आये| वहां पास ही सगुण सरायवाले का घर था और उसने वहीं से पुकारा और पूछा - "गोपालराव, क्या आपने अक्कलकोट महाराज स्वामी की जीवनी पढ़ी है क्या?" गोपालराव ने कहा - "नहीं| पर जरा दिखाओ तो सही|" सगुण ने वह किताब उन्हें थमा दी| किताब के पन्ने उलटते-पलटते वे एक जगह पर रुके और वहां से पढ़ने लगे|

वह एक ऐसी घटना थी कि श्री स्वामी महाराज का एक भक्त अपनी बीमारी से तंग आ चुका था| बीमारी से मुक्ति पाने के लिए उसने स्वामी जी की जी-जान से सेवा भी की, पर कोई फायदा न होते देख उसने आत्महत्या करने की सोची| रात के अंधेरे का लाभ उठाकर वह एक कुएं में कूद गया| उसी क्षण स्वामी जी वहां प्रकट हुए और उसे कुएं में से बाहर निकाल लिया|

फिर उसे समझाते हुए बोले - "ऐसा करने से क्या होने वाला है? तुम्हें अपने पूर्व जन्म के शुभ-अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना चाहिए| यदि इन भोगों को नहीं भोगोगे तो फिर से किसी निकृष्ट योनि में जन्म लेना पड़ेगा - और कर्म-भोग तुम्हें ही भोगने पड़ेंगे| इसलिए जो भी अपना कर्मफल है, उसे यहीं इसी जन्म में भोगकर तुम सदैव के लिए मुक्त हो जाओ|"

इन वचनों को सुनकर भक्त को अपनी गलती का अहसास हो गया| फिर उसने विचार किया कि जब स्वामी जी जैसे मेरे रखवाले हों तो मैं कर्मफल से क्यों डरूं?
यह कहानी पढ़कर गोपालराव के विचार भी बदल गये और उसने आत्महत्या करने का विचार त्याग दिया| उसे इस बात का अनुभव हो गया कि साईं बाबा ने मुझे सगुण के द्वारा आज बचाया है| यदि सगुण न बुलाता तो आज मैं गलत रास्ते पर चल दिया होता और मेरा परिवार अनाथ हो जाता| फिर उसने मन-ही-मन बाबा की चरणवंदना की और लौट गया| बाबा के आशीर्वाद से उसका भाग्य चमक गया| आगे चलकर उसे बाबा की कृपा से ज्योतिष विद्या की प्राप्ति हुई और उस विद्या के बल पर उसने धनोपार्जन कर अपना कर्ज उतार दिया और शेष जीवन सुख-शांति से बिताया । ""
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Wednesday, April 20, 2016

साँई गुणगान करते चलो

:: ll साँई गुणगान करते चलो ll ::

श्री साँई तुम गुरूवर हो
तुम हो सर्व गुणों की खान
तेरे रंग में हम खुद को रंग ले
करते रहे हम तेरा ही बखान ।

बाबा साँई तुम चन्दन समान
तेरी सुगन्ध फ़ैल रही चहुँ ओर
इस सुगन्ध को मन में रमा ले
ताकि मिले तव चरणो में ठौर ।

बाबा साँई तुम राम सरीखे
अति विनम्र अति धैर्यवान
तुम्हारी शिर्डी है राम- राज्य
जहाँ मिलता सबको जीवनदान ।

एक वार ही तुझको क्यों पूजे
सप्ताह के सातो वार है तेरे
तू ही भोले, तू ही गजानन
हनु बन तू ही दूर करे अँधेरे ।

बाबा चौखट पर तेरी रखते जो कदम
ग़मो का अंत होता, ख़ुशी रहती हरदम ।

तेरा नाम जग में सबसे पावन
"सा" से साक्षात् , 'ई" से ईश्वर
जब हमे ईश्वर ही है मिल गया
तो भला क्यों मांगें तुझसे हम वर ।।
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