Monday, August 17, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 20

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 20

श्री साँई चरणों का ध्यान कर
आरम्भ करते अब यह अध्याय
साँईजी से करते हैं हम ये प्रार्थना
साँई सभी पर अपनी कृपा बरसाय ।।1।।

हम भक्तो के आराध्य
बाबा साँई हैं निराकार
भक्तो के प्रेमवश ही
प्रगटे वे रूप साकार ।।2।।

यह विश्व नाट्यशाला
साँई ने किया अभिनय
हम साँई लीला याद कर
आइये हो जाये साँईमय ।।3।।

बाबा का ध्यान करे और
मन को शिर्डी में पहुंचाये
साँई मध्यान्ह आरती का
हम सभी स्मरण किये जाये ।।4।।

पूर्ण हुई जब मध्यान्ह आरती
द्वारकामाई से साँई बाहर आये
एक किनारे खड़े हो बाबा साँई
भक्तो को प्रेम से उदी देते जाय ।।5।।

भक्तगण साँई के श्री चरण छूते
साँई दोनो हाथ से उदी देते जाय
मस्तक पर उदी का टीका लगा
साँई उन्हें अपने घर को लौटाय ।।6।।

कितना अच्छा दृश्य था यह
जब भक्त साँई के दर्शन पाय
गर भक्तगण कल्पना करें तो
वही आनन्द अनुभव कर पाय ।।7।।

वैदिक संहिता के मंत्रों का
ईशोपनिषद में हैं समावेश
इसके श्लोकों में निहित हैं
आत्मतत्ववर्णन के संदेश ।।8।।

टीका लिखे दासगणु जी
सारतत्त्व ग्रहण न कर पाये
कई विद्वानों से परामर्श किये
परन्तु दासगणु संतोष न पाय ।।9।।

इसका अर्थ तो वही कर सके
जिसे हो चुका आत्मसाक्षात्कार
ऐसा विचार कर के दासगणु जी
जाये साँई दर्शन को साँई के द्वार ।।10।।

साँई की चरण वंदना कर
दासगणु प्रार्थना किये जाय
साँई आशीष दे दासगणु को
कठिनाइयों का हल बताय ।।11।।

बाबा कहे गणु जब तुम लौटोगे
विलेपार्ला में काका के घर जाओ
काका दीक्षित की नौकरानी हैं वहाँ
उससे अपनी शंका का निवारण पाओ ।।12।।

वहाँ भक्त यह सुन सोचने लगे
साँई केवल विनोद किये जाय
भला अशिक्षित नौकरानी कैसे
इस समस्या का हल कर पाय ।।13।।

किंतु दासगणु को था विश्वास
असत्य नही होते साँई के वचन
साँई वचन साक्षात ब्रह्मवाक्य हैं
साँई के वचनों का किये वे पालन ।।14।।

साँई वचनों में रख पूर्ण निष्ठा
दासगणु काका के यहाँ जाय
मीठी नींद का आनंद वे ले रहे
गीत के स्वर कानो में पड़ जाय ।।15।।

जरी के आँचल की लाल साड़ी
अति सुंदर उसके किनारे व छोर
जब यह मधुर गीत दासगणु सुने
उठकर देखने लगे बाहर की ओर ।।16।।

एक बालिका गीत गा रही
और माँजे जाये वह बर्तन
फटे कपड़े पहने हुए उसने
दरिद्रता में भी थी वह प्रसन्न ।।17।।

दासगणु यह सब देख रहे कि
गीत गा रही बालिका थी प्रसन्न
बालिका को उत्तम साड़ी देने का
किये एम वी प्रधान से वे निवेदन ।।18।।

साड़ी पाये जब बालिका
वह ऐसे प्रसन्न हुई जाय
जैसे क्षुधापीडित व्यक्ति
मधुर भोजन जब पाय ।।19।।

एक दिन ही साड़ी पहनकर
बालिका संदूक में रख जाय
अगले दिन पुराने कपड़े पहन
पहले के समान प्रसन्न हुई जाय ।।20।।

सुख हो या फिर हो भले दुख
दोनों में बालिका थी एक समान
सुख दुख दोनों मन पर निर्भर हैं
तब दासगणु ने ली यह बात जान ।।21।।

जो हमें ईश्वर ने दिया हैं
समझो उसे ईश्वर की इच्छा
जो हैं उसी में संतोष मनाओ
उपनिषद पाठ की यही शिक्षा ।।22।।

भक्तों को शिक्षा देने के लिये
साँईजी कई युक्ति काम में लाय
कभी किसी को वे कही भेजते
किसी को निद्रा में दर्शन दे जाय ।।23।।

दासगणु को विलेपार्ला भेज
साँई उन पर ऐसे कृपा बरसाय
वे दासगणु की समस्या का हल
काका की नौकरानी द्वारा कराय ।।24।।

काकाजी की नौकरानी द्वारा
दासगणु समस्या का हल पाय
उन्हें अमूल्य शिक्षा मिल गयी
यह लीला साँईबाबा जी रचाये ।।25।।

ईशोपनिषद की मुख्य देन हैं
नीति शास्त्र से सम्बन्धी शिक्षा
सभी वस्तु ईश्वर से ओत प्रोत हैं
जो प्राप्त हो वो ईश्वर की इच्छा ।।26।।

ईशकृपा से जो कुछ मिला
उसमे ही आनन्द मनाओ
धन तृष्णा की प्रवृति छोड़
जो हैं उसमें संतुष्टि पाओ ।।27।।

फल की कोई इच्छा किये बिना
प्रभुइच्छा मान कर्म करते जाओ
आलस्य से आत्मा का पतन होता
इसलिए आलस्य को न अपनाओ ।।28।।

शोक, मोह व दुख दूर रहते
जो करे सभी में आत्मदर्शन
जो सभी प्राणियों में प्रभु देखे
वे प्राणी रहते हैं सदा ही प्रसन्न ।।29।।

पर्वत सा दुख हो जीवन में
या फिर बाग जैसा सुख आये
दोनों स्थिति में एक समान रहो
यह बात यह अध्याय समझाये ।। 30।।

यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
साँई कृपा ऐसी हुई जाये
'गौरव' का हाथ पकड़ साँई
स्वयं ही काव्य रूप लिखवाये ।।31।।

साँई से करते हैं हम प्रार्थना
साँई सभी पर कृपा बरसाये
सभी के साथ साँई रहे हमेशा
सबके जीवन में खुशियाँ लाये ।।32।।

।। श्री साँईंनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।

Wednesday, August 12, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 18 व 19

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 18 व 19

श्री साँई के चरणों का करके ध्यान
हम पठन करते हैं अब यह अध्याय
धन्य हेमाड जी जो साँई सच्चरित्र रचे
तभी हम साँई जीवनगाथा जान पाये ।।1।।

अपने शिष्य की योग्यता पर
सद्गगुरू ध्यान देते हैं विशेष
शिष्य का चित्त स्थिर रहता
सद्गुरू देते उपयुक्त उपदेश ।।2।।

सदगुरू वर्षाऋतु के मेघ सदृश
जो सर्वत्र समान जल बरसाय
गुरू सभी भक्तो को दे उपदेश
भक्तो को ज्ञान की प्राप्ति कराय ।।3।।

बालक के उपचार हेतु जैसे
माँ उसे कड़वी औषधि पिलाय
वैसे भक्तो के कल्याण हेतु साँई
उपदेश दे ज्ञान की बात बताय ।।4।।

सदगुरू साँई ज्ञान चक्षु खोल
हमें दिव्यता का अनुभव कराय
विषयवासना से आसक्ति नष्ट हो
ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो जाय ।।5।।

ज्ञान में उन्नति तभी सम्भव हैं
जब साँई सानिध्य मिल पाये
साँई जी भक्तकामकल्पतरू हैं
दुखो से मुक्त कर सुखी बनाय ।।6।।

ख्याति प्राप्त एक श्री साठे थे
हुए एक बार वे दुखी व निराश
क्योंकि व्यापार में उन्हें हानि हुई
सोचे घर छोड़ करूँ एकांत वास ।।7।।

एक मित्र की सलाह मानकर
साठे जी ,साँई-दर्शन को आये
गत जन्म के शुभ कर्म हैं ये मेरे
यह सोच साँई चरणों में गिर जाय ।।8।।

दृढ़ संकल्प के व्यक्ति साठे
आरम्भ किये गुरूचरित्र पठन
सात दिन में ही पठन पूर्ण हुआ
बाबा ने दिया उसी रात्रि उन्हें स्वप्न ।।9।।

अपने हाथ में चरित्र लिए बाबा
स्वप्न में साठे जी को समझाय
साँई सम्मुख बैठ कर साठे जी
ध्यानपूर्वक श्रवण किये जाय ।।10।।

निद्रा से जब साठे जी जागे
करने लगे स्वप्न का स्मरण
बाबा की कृपा हुई मुझ पर
यह सोच हुए वे अति प्रसन्न ।।11।।

काकासाहेब जी को साठे
अपना सम्पूर्ण स्वप्न सुनाये
बोले बाबा से प्रार्थना करो
बाबा स्वप्न का अर्थ समझाये ।।12।।

काकासाहेब जब साँई से पूछे
साँई का साठे हेतु था यह ज्ञान
एक सप्ताह और वे पारायण करें
चित्त शुद्ध हो जाएगा,होगा कल्याण ।।13।।

उस समय वहाँ थे हेमाड जी
सेवा कर रहे बैठ साँई चरणों में
बाबा ने जो साठे जी को कहा
विचारने लगे हेमाड जी मन में ।।14।।

केवल सप्ताह के पारायण से ही
साठे को मनवांछित फल मिल जाय
चालीस वर्षों से गुरूचरित्र पारायण का
क्यो परिणाम मुझे अब तक न मिल पाय ।।15।।

साठे का केवल सात दिनो का
शिर्डी वास सफल कहलाय
ये मेरी पिछले सात वर्षों की
साँई भक्ति क्या व्यर्थ जाय ।।16।।

चातक पक्षी समान राह देखूँ
कब कृपाघन कृपा बरसाये
मुझे यह विचार आये थे कि
साँई को सब ज्ञात हो जाये ।।17।।

भक्त सदा यह अनुभव करते
साँई करते कुविचारों का दमन
समस्त विचार साँई को ज्ञात हैं
देते उत्तम विचारों को प्रोत्साहन ।।18।।

हेमाडजी के विचार जान साँई
आज्ञा दे- शामा के यहाँ जाओ
कुछ समय वार्तालाप करो उनसे
और पंद्रह रूपये दक्षिणा ले आओ ।।19।।

स्नान कर वस्त्र पहन रहे थे शामा
जब हेमाडजी उनके घर को जाय
शामा जी उनसे पूछे आप यहाँ कैसे
उदास क्यो हैं आप,अकेले ही आय ।।20।।

हेमाडजी से शामा कहने लगे
बैठिए ,विश्राम कीजिए आप
पूजनादि से मैं निवृत हो जाऊँ
फिर करेंगे सुख से वार्तालाप ।।21।।

हेमाड जब खिड़की ओर देखे
वहाँ वे नाथ भागवत रखी पाय
नित्य वे नाथ भागवत पाठ करते
किंतु आज पाठ पूरा न कर पाये ।।22।।

जब ग्रन्थ उठाकर हेमाड खोले
अपूर्ण भाग का पृष्ठ सामने पाये
इसलिए साँई ने मुझे यहाँ भेजा
यह सोच साँई लीला समझ आये ।।23।।

अपूर्ण रहा पाठ वे पूर्ण किये
पूजा से निवृत हो शामा आये
हेमाड शामा से वार्ता करने लगे
व कहे साँई एक संदेश भिजवाये ।।24।।

मेरी आज्ञा से शामा के घर जाकर
उनसे पन्द्रह रूपये दक्षिणा लाओ
थोड़ी देर वार्तालाप भी करो उनसे
उन्हें साथ ले द्वारकामाई लौट आओ ।।25।।

शामा बोले फूटी कौड़ी भी नही
दक्षिणा में लो पन्द्रह नमस्कार
हेमाड जी यह सुन कहने लगे
आपकी यह दक्षिणा हैं स्वीकार ।।26।।

शामा जी आइये वार्तालाप करे
आप कुछ साँई लीलाएं सुनाये
उन साँई लीलाओं को सुनकर
मेरे समस्त पाप नष्ट हो जाये ।।27।।

शामा कहे मैं तो अशिक्षित देहाती
हेमाड जी आप हैं एक अति विद्वान
कैसे आप समक्ष मैं लीला वर्णन करूँ
यहाँ आ साँई लीला आप लिए हैं जान ।।28।।

बाबा जी की लीलाये अगाध हैं
मुझे एक कथा की स्मृति हो आये
जैसी भक्त की निष्ठा तथा भाव हैं
वैसे ही बाबा उसे सहायता पहुँचाये ।।29।।

भक्त दे कभी कठिन परीक्षा
तभी वह बाबा से उपदेश पाय
उपदेश शब्द ज्यो ही हेमाड सुने
साठे की घटना स्मरण हो आय ।।30।।

हेमाड सोच रहे साँई यहाँ भेजे
चित्त की चंचलता नष्ट हो जाये
शामा से यह विचार प्रकट न कर
हेमाड ध्यान से कथा सुनते जाये ।।31।।

राधाबाई नाम की एक वृद्धा
साँई कीर्ति सुन शिर्डी को आये
निश्चय करें साँई गुरू बने उसके
साँई से उपदेश ग्रहण किया जाये ।।32।।

आमरण अनशन का निश्चय कर
वृद्धा ने अन्न व जल दिया छोड़
यह देख मैने साँई से की प्रार्थना
हे देव देखो उस वृद्धा की ओर ।।33।।

वृद्धा का दृढ़ निश्चय देख
साँई उस वृद्धा को बुलाये
मधुर उपदेश साँई ने दिया
उसे साँई कुछ यूँ समझाये ।।34।।

तुम मेरी माँ,मैं तुम्हारा बेटा
माँ तुम मुझ पर दया करो
जो कुछ मैं तुमसे कह रहा
ध्यानपूर्वक तुम उसे सुनो ।।35।।

मेरे एक गुरू बड़े सिद्ध पुरूष
सेवा की मैने रह गुरू के पास
दो पैसों की दक्षिणा उन्होंने ली
एक थी धैर्य दूसरी दृढ़ विश्वास ।।36।।

ये दक्षिणा जब गुरू को दी
गुरू हुए मुझसे अति प्रसन्न
बारह वर्ष गुरू सेवा में गुजरे
किया गुरू ने मेरा भरण पोषण ।।37।।

दृढ़ विश्वास रख, धैर्य धारण कर
दीर्घ काल गुरू सेवा में रहा ध्यान
विश्वास तथा धैर्य यह दक्षिणा हुई
ये दोनों हैं जुड़वाँ बहनो के समान ।।38।।

कछुवी प्रेमदृष्टि से पालन करे
चाहे बच्चे समीप हो या हो दूर
वैसे ही मैं अन्य स्थान भी रहूँ
गुरू सदा कृपादृष्टि रखे भरपूर ।।39।।

हे माँ बताओ कैसे मैं मंत्र फूंकूँ
गुरू मुझे कोई मंत्र न सिखलाये
ध्यान रखो गुरू कछुवी समान हैं
प्रेमदृष्टि से संतोष प्राप्त हो जाय ।।40।।

हरि,हर ,ब्रह्म के अवतार गुरू
रखो गुरू में तुम पूर्ण विश्वास
यहाँ बैठकर मैं सत्य ही बोलूँगा
माँ अब तो त्यागो तुम उपवास ।।41।।

कंठ रूंध गया साँई कथा सुनकर
हेमाड जी कोई शब्द न बोल पाय
मध्यान्ह आरती प्रारम्भ होने लगी
शामा हेमाड द्वारकामाई को जाय ।।42।।

बापूसाहेब जोग पूजन आरम्भ करे
नर-नारी साँई बाबा की आरती गाय
हेमाड जी का हाथ पकड़ शामा पहुँचे
बाबा उन दोनों को अपने पास बैठाय ।।43।।

हेमाड से साँई दक्षिणा मांगे
जो दक्षिणा वे शामा से लाये
पन्द्रह नमस्कार भेजे हैं शामा
साँई को ऐसा हेमाड बतलाये ।।44।।

बाबा कहे जो वार्तालाप हुई 
वह मुझको सुनाओ तुम हेमाड
हेमाड कहे आपकी कथा सुनी
साँई आपकी लीलाएं हैं अगाध ।।45।।

हेमाडजी ने सारी कथा सुना दी
साँई पूछे क्या अर्थ समझ में आय
कथा स्मरण कर मेरा ध्यान करोगे
तो समस्त कुप्रवृत्तियां शांत हो जाय ।।46।।

हेमाड बोल बोलने लगे
हाँ देव अर्थ समझ आया
चित्त की चंचलता नष्ट हुई
सत्य मार्ग का पता चल पाया ।।47।।

साँई जी उपदेश देने लगे
आत्मज्ञान हेतु करो ध्यान
करत करत अभ्यास के ही
कुप्रवृत्तियां हो जाये शांत ।।48।।

निराकार स्वरूप का ध्यान करो
न हो तो देखो रूप मेरा साकार
तुम्हे ब्रह्म की प्राप्ति हो जायेगी
ध्याता,ध्यान,ध्येय होंगे एकाकार ।।49।।

दूर दूर किनारे कछुवी व बच्चे
उन्हें ह्रदय से भी न लगा पाय
दूर से ही प्रेम दृष्टि रखे उन पर
बच्चों का भरण पोषण हो जाय ।।50।।

गुरू शिष्य का सम्बंध भी
कछुवी व उसके बच्चे समान
शिष्य कहि भी निवास करें
कृपादृष्टि रख,रखते गुरू ध्यान ।।51।।

साँई के यह शब्द कहते ही
मध्यान्ह आरती हुई सम्पूर्ण
साँई की जय बोलने लगे सब
साँई के प्रति रखकर भाव पूर्ण ।।52।।

साँई को नमस्कार करके जोग
मिश्री का प्रसाद साँई को दे जाय
हेमाड को यह प्रसाद दे साँई बोले
मिश्री सम मधुर होकर सुख पाय ।।53।।

हेमाड बाबा को साष्टांग प्रणाम किये
इसी प्रकार दया करना आप हे देव
उन्हें आशीर्वाद देकर साँई कहने लगे
कथा श्रवण कर सार ग्रहण करो सदैव ।।54।।

प्यासे को जल,वस्त्रहीन को वस्त्र
व क्षुधा पीड़ित को दो तुम भोजन
सभी का तुम आदर सत्कार करो
भगवान तुमसे अवश्य होंगे प्रसन्न ।।55।।

कोई तुमसे द्रव्य याचना करें
और न हो तुम्हारी देने की इच्छा
तो बुरा व्यवहार तुम उससे न करो
अपनाओ अच्छे आचरण की शिक्षा ।।56।।

कोई तुम्हारी निंदा करें
न करो तुम उस पर क्रोध
निश्चित ही तुम सुखी रहोगे
अगर करोगे इस बात का बोध ।।57।।

मैं और तू का भाव भेदवृति हैं
जब यह दीवार नष्ट की जाय
गुरू शिष्य में पृथकता न रहे
मिलन का पथ सुगम हो जाय ।।58।।

प्रातःकाल तुम्हारे ह्रदय में
गर कोई उत्तम विचार आये
तो दिन भर उसकी स्मृति रहे
चित्त को प्रसन्नता मिल जाये ।।59।।

ऐसा ही अनुभव हेमाड किये
जब सोकर उठे हेमाड एक दिन
राम नाम का स्मरण उन्हें हो आया
सोचे नामस्मरण में रहूँ मैं आज लीन ।।60।।

प्रसन्न हो पुष्प हाथ में ले
वे करने गए बाबा के दर्शन
बूटी वाड़े के समीप आते ही
सुनाई दिया उन्हें मधुर भजन ।।61।।

औरंगाबादकर गा रहे लय से
प्रभु श्री राम का ही सुन्दर भजन
यही विचार हेमाडजी ने किया था
करूँ आज अखंड राम नाम स्मरण ।।62।।

रामनाम जप का ऐसा प्रभाव
भक्तो की पूरी होती सब इच्छाएं
राम नाम स्मरण करते रहने से
भक्तो के सभी कष्ट दूर हो जाये ।।63।।

साँई जी की लीला जान
हेमाड जी प्रसन्न हो जाये
साँई जी को सब ज्ञात रहता
उत्तम विचार जो मन में आये ।।64।।

बाबा वहाँ नही तब एक जन
भाई को अपशब्द कह जाय
उसके कहे अपशब्द ऐसे कटु
सुनने वाले घृणा से भर जाय ।।65।।

धन्यवाद के पात्र हैं निंदक
निंदा करना हैं उनका व्यवहार
जिव्हा से दूसरों के दोष दूर करे
दुसरो का हो जाता हैं उपकार ।।66।।

जब बाबा को यह ज्ञात हुआ
वे कहे उसे यह बात लो जान
विष्ठा खाते उस सुकर को देखो
तुम्हारा आचरण हैं उसी समान ।।67।।

अनेक शुभ कर्मों के फल ये
जो तुम्हे मानव तन मिल पाय
ऐसा आचरण अगर रखोगे तुम
शिर्डी कैसे सहायता कर पाय ।।68।।

परिश्रम तुम करते रहो
आलस्य का करो त्याग
उन्नति तुम्हारी हो जायेगी
मिलेगा परिश्रम का लाभ ।।69।।

भक्त जब अनन्य भाव से
साँई की शरण मे आ जाय
जैसे किसी सागर में लहर हो
भक्त खुद को साँई से जुड़ा पाय ।।70।।

कहते किसी को साँई बाबा
करो भगवत लीलाये श्रवण
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम ज्ञानेश्वरी का पठन ।।71।।

किसी को साँई जी कहते
करो तुम भगवत्पादपूजन
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम गीता का अध्ययन ।।72।।

किसी को कहे साँई बाबा
तुम विष्णु सहस्रनाम जपो
किसी को खंडोबा मंदिर भेजे
किसी को कहे मेरे पास ही रहो ।।73।।

किसी को प्रत्यक्ष उपदेश वे देते
किसी के स्वप्न में वे दृष्टांत दे जाये
एक मदिरा सेवी के स्वप्न में आकर
मद्यपान त्याग की शपथ खिलवाये ।।74।।

किसी को मंत्र का अर्थ
साँई स्वप्न में ही समझाय
कुछ हठयोगी को वे राय दे
हठ छोड़कर धैर्य रखा जाय ।।75।।

राधाकृष्णमाई के घर समीप
एक दिन साँई बाबा जी आये
वे भक्त से सीढ़ी लाने को कहे
साँई आज्ञा मान वह सीढ़ी लाये ।।76।।

वामन के घर सीढ़ी लगाई
साँई उनके घर पर चढ़ जाये
राधामाई के छप्पर से होकर
साँई दूसरे छोर से उतर आये ।।77।।

इसका अर्थ कोई न समझे
कैसी लीला किये बाबा साँई
ज्वर दूर करने साँई लीला रचे
तब ज्वर से पीड़ित थी राधामाई ।।78।।

जो भक्त सीढ़ी था लाया
साँई से दो रूपये वह पाय
यह अधिक पारिश्रमिक क्यो
अन्य भक्त साँई से पूछे जाय ।।79।।

परिश्रम का पूर्ण मूल्य दो
भक्त को ऐसा साँई समझाये
जो पूर्ण लगन से परिश्रम करें
उदारता से भुगतान किया जाये ।।80।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
इसमें साँई लीलाओं का समावेश
इस अध्याय का पठन मनन करके
अपनाएंगे साँई बाबा के दिये उपदेश ।।81।।

अगर कुछ त्रुटि हुई मुझसे
बाबा आप मुझे माफ़ करो
आप ही तो आराध्य देव हैं
बाबा सदा आप साथ रहो ।।82।।

तुझसे कहना चाह रहा साँई
'गौरव' अपने मन की ये बात
सब पर तु कृपा बरसा दे साँई
और सदा रहना तू सबके साथ ।।83।।

।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।

Saturday, August 8, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य सार:- अध्याय 16 व 17

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 16व17* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

श्री साँई की लेकर आज्ञा व
करके साँई चरणों का ध्यान
इस काव्य को हम आगे बढ़ाये
कि साँई समझाए क्या हैं ब्रह्मज्ञान ।।1।।

प्रेम व भक्ति से अर्पण की वस्तु
साँई कर लेते सहर्ष ही स्वीकार
भेंट की वस्तु साँई अस्वीकार करते
जब वह भेंट की जाती रख अहंकार ।।2।।

एक धनाढय व्यक्ति आये शिर्डी
रख ब्रह्मज्ञान प्राप्ति की इच्छा
आओ अब हम पठन कर ले
बाबा ने दी उन्हें क्या शिक्षा ।।3।।

सब प्रकार से सम्पन्न एक धनी व्यक्ति
सुने जब वह बाबा की कीर्ति व गुणगान
मित्र से कहे कोई अभिलाषा शेष नही
शिर्डी जाकर लूँ बाबा से मैं ब्रह्मज्ञान ।।4।।

मित्र कहे मोहग्रस्त प्राणी हो तुम
न किये भूल से भी कभी तुम दान
स्त्री,संतान,द्रव्य में मन हैं तुम्हारा
भला कैसे मिलेगा तुमको ब्रह्मज्ञान ।।5।।

मित्र के परामर्श की कर उपेक्षा
धनाढय व्यक्ति शिर्डी को आये
साँई बाबा के दर्शन करके वह
श्री साँई चरणों में गिर जाये ।।6।।

प्रार्थना करने लगे वह साँई से
मुझे ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हो जाय
राह में जो कष्ट उठाया हैं मैंने
वह सार्थक व सफल कहलाय ।।7।।

बाबा बोले- न हो तुम अधीर इतने
शीघ्र ही मिल जाएगा तुम्हे ब्रह्मज्ञान
बिरले ही यहां ब्रह्मज्ञान को हैं आते
बाकि तो आते मिले धन, पद व मान ।।8।।

ऐसा कहकर बाबा उससे
उसको अपने पास बैठाय
कुछ देर वे अपना प्रश्न भूले
साँई उन्हें अन्य चर्चा में लगाय ।।9।।

बुलाकर एक बालक को साँई जी
नन्दू के यहाँ से पाँच रूपये मंगवाये
नन्दू मारवाड़ी के घर तो ताला लगा
बालक आकर साँई को ऐसा बतलाय ।।10।।

साँई दूसरे व्यापारी के यहाँ भेजे उसे
वहाँ से असफल हो वह वापस आय
कही रूपये ना मिले उस बालक को
यह प्रयोग साँई दो-तीन बार दोहराय ।।11।।

बाबा सगुण ब्रह्म अवतार हैं
नन्दू घर पर नही,था उन्हें ज्ञात
राशि की उन्हें आवश्यकता नही
यह नाटक रचा धनाढय के परीक्षार्थ ।।12।।

ब्रह्मजिज्ञासु वह धनाढय व्यक्ति
रखे हुए थे नोटों की गड्डी अनेक
सचमुच वे ब्रह्मज्ञान आकांक्षी होते
तो शांत न बैठे रहते यह सब देख ।।13।।

धनाढय व्यक्ति दर्शक बने रहे
जब बालक यहाँ वहाँ दौड़ा जाय
भला ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कैसे होगी
जब अल्प राशि भी उनसे ना दी जाय ।।14।।

अधीर होकर वह बाबा से बोले
कराओ मुझे शीघ्र ब्रह्मज्ञान दर्शन
बाबा कहे क्या तुम्हे समझ न आया
ब्रह्म दर्शन कराने का ही था यह प्रयत्न ।।15।।

पाँच वस्तुओं का त्याग करो
अगर करना हो ब्रह्म का दर्शन
ये हैं पाँच प्राण,पाँच इन्द्रियाँ
बुद्धि, अहंकार तथा मन ।।16।।

बाबा जी उस धनाढय व्यक्ति को
विस्तार से इस विषय पर समझाय
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति अगर करनी हो
तो होनी आवश्यक हैं कुछ योग्यताएं ।।17।।

मुक्ति की उत्कंठा व विरक्ति भाव रखे
सत्यवादी बन उचित आचरण अपनाय
व आत्म-दर्शन कर दृष्टि अंतमुर्खी बने 
दुष्टता त्याग कर पाप से शुद्धि हो जाय ।।18।।

सारवस्तु ग्रहण करें तथा
आसक्तियो को न अपनाए
आत्मज्ञान स्वप्रयत्न से न मिले
गुरूकृपा से सहज प्राप्त हो जाय ।।19।।

उसके चित्त की हो जाये शुद्धि
जो मनुष्य करते हैं कर्म निष्काम
इन्द्रियाँ रूपी घोड़े नियंत्रण में होये
व वश में आ जाये मन रूपी लगाम ।।20।।

ईश-कृपा होने से ही
यह ज्ञान प्राप्त हो पाये
विवेक तथा वैराग्य देकर
भगवान तब मिल जाये ।।21।।

यह उपदेश जब हुआ समाप्त 
बाबा बोले अच्छा महाशय सुनिये
पाँच के पचास गुने रूपये जेब में
कृपया करके उन्हें आप निकालिये ।।22।।

गड्डी बाहर निकाल जब उसने गिने
निकले नोट वे दस-दस के पच्चीस
बाबा की सर्वज्ञता देखकर वह व्यक्ति
बाबा के चरणों में झुकाये अपना शीश ।।23।।

बाबा बोले तब उस व्यक्ति से
अपने द्रव्य को तुम लो समेट
बिना लोभ व ईर्ष्या को त्यागे
कैसे होगी ब्रह्म से तुम्हारी भेंट ।।24।।

धन, संतान तथा ऐश्वर्य में
लगा हुआ हो जिसका मन
आसक्तियों को त्यागे बिना
कैसे हो पाए ब्रह्मज्ञान दर्शन ।।25।।

जहाँ लोभ हैं वहाँ ब्रह्म नही हैं
समझ ले हम यह ज्ञान की बात
तुलसीदास जी भी हमें समझाते
रात्रि व सूर्य नही होते एक साथ ।।26।।

कण मात्र भी लोभ गर मन में रहा
समझिए व्यर्थ ही हैं सब साधनाएं
आत्मानुभूति प्राप्ति में होंगे सफल
जब फल प्राप्ति की न हो इच्छायें ।।27।।

अहंकार को बिना त्यागे
कैसे गुरू-शिक्षा मिल पाय
मन का पवित्र होना हैं जरूरी
साधनाओ का महत्त्व बढ़ जाय ।।28।।

साँई कहे-असत्य बोलता नहीं
मैं यहाँ द्वारकामाई में बैठकर
मेरा खजाना तो पूर्ण हैं परन्तु
मैं पूर्ति करता योग्यता देखकर ।।29।।

अतिथि को जब निमंत्रण मिले
परिवार भी संग में भोजन पाय
धनाढय संग अन्य भक्तो को भी
बाबा का यह ज्ञान भोज मिल जाय ।।30।।

साँई का आशीर्वाद प्राप्त कर
धनी संग सभी हर्षित हो जाय
बाबा को प्रणाम करके सभी
अपने अपने घर को लौट जाय ।।31।।

स्त्री,संतान,घर-द्वार कुछ भी नही
भिक्षा ले साँई करे नीम नीचे वास
संसार मे रह कैसे आचरण करें हम
यह साँई से शिक्षा ले बन उनके दास ।।32।।

माता पिता, कुटुंब व देश धन्य हैं
जहाँ जन्म लिये साँई शिर्डी के संत
साँईबाबा आसाधारण परम् श्रेष्ठ हैं
कहे साँई सच्चरित्र रचयिता हेमाडपंत ।।33।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
कुछ भूल हुई हैं तो साँई करे क्षमा
'गौरव' करे साँई से यह अरदास कि
साँई सबका ख्याल रखे जैसे रखे माँ ।।34।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Thursday, August 6, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप:- अध्याय 15

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 15* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

लंबा अंगरखा सिर पर फेंटा पहने
बाँध साफा दासगणु कीर्तन को जाय
साँई कहे नारद मुनि जैसे कीर्तन करो
क्यों दासगणु तुम ऐसा रूप सजाय ।।1।।

हाथ में वीणा ले ज्यो नारद जी
प्रसन्न मन से हरि कीर्तन को जाय
दासगणु महाराज गले मे पहन हार
साँई कीर्तन करते हुए करताल बजाय ।।2।।

बाबा की कीर्ति चहुँ ओर पहुँचे
इसका श्रेय दासगणु को हैं जाय
क्योंकि दासगणु का कीर्तन सुनकर
भक्तो के मन मे श्रद्धा उमड़ी आय ।।3।।

एक समय दासगणु कीर्तन करें व
सुने चोलकर, कर्मचारी थे अस्थायी
मन में कहे कि गर मैं उत्तीर्ण हुआ तो
तव दर्शन कर मिश्री प्रसाद बाटूंगा साँई ।।4।।

बाबा ने चोलकर के मन की सुनी
विभागीय परीक्षा में हुए वे उत्तीर्ण
नौकरी चोलकर की स्थायी हो गयी
उस निर्धन के दुख होने लगे अब क्षीण ।।5।।

निर्धन चोलकर का था कुटुंब बड़ा
सोचे खर्च घटा मितव्ययी बन जाये
नाठे घाट,सहाद्रि पार करना आसान
गरीब उम्बर घाट को कैसे पार कर पाये ।।6।।

संकल्प को लेकर उत्सुक चोलकर
पीने लगे वो बिना शक्कर की चाय
इस तरह कुछ द्रव्य एकत्र हुआ
चोलकर प्रसन्न हो शिर्डी को जाय ।।7।।

बाबा के दर्शन कर चरणों मे गिरे
बाबा को मिश्री का प्रसाद चढाये
कहने लगे दर्शन कर हुआ मैं प्रसन्न
आपकी कृपा से पूरी हुई सब इच्छाये ।।8।।

बाबा कहने लगे बापूसाहेब जोग से
पिलाओ इन्हें ज्यादा शक्कर की चाय
यह सुन चोलकर का ह्रदय भर आया
प्रेम से बहने लगी नेत्रों से अश्रु धाराएं ।।9।।

सदैव बाबा अपने भक्तो के साथ रहेंगे
गर श्रद्धा से उनके सामने हाथ फैलाये
शरीर से शिर्डी में होकर भी साँई जी को
ज्ञात हैं सात समुद्र पार की भी घटनाएं ।।10।।

साँई सभी प्राणियों के ह्रदय में बसे
ह्रदय में बसे साँई की पूजा की जाय
साँई के सर्वव्यापी स्वरूप को जो जाने
वह सौभाग्यशाली और धन्य हो जाय।।11।।

बाबा द्वारकामाई में बैठे हुए
छिपकली चिकचिक करती जाय
एक भक्त पूछे इसका अर्थ बाबा से
तब साँई इसका अर्थ सबको समझाये ।।12।।

औरंगाबाद से इसकी बहन
मिलने इससे आज यहाँ आय
इसलिए यह चिकचिक कर रही
क्योंकि प्रसन्नता से फूली न समाय ।।13।।

एक आदमी आया साँई दर्शन को
औरंगाबाद से हो घोड़े पर सवार
भूखे घोड़े को चना खिलाने को
झोली की धूल दी उसने झटकार ।।14।।

झोली में से एक छिपकली निकले
देखते देखते वह दीवार पर चढ़ जाय
बाबा अपने भक्त से कहे ध्यान से देखो
छिपकली बहन से मिल खुश हो जाय ।।15।।

दोनों बहनें एक दूसरे से मिली
व घूम घूमकर वे लगी नाचने
बाबा साँई तो सर्वव्यापक हैं
साँई सब कुछ ही तो जाने ।।16।।

साँईकृपा से समस्त कष्ट दूर होते
जो पठन मनन करते यह अध्याय
बाबा से हम जोड़ प्रार्थना हैं करते
सभी पर साँई अपनी कृपा बरसाय ।।17।।

बाबा सब लोगो पर कृपा करें
'गौरव' की बाबा से यह अरदास
इस जग में कोई भी दुखी न रहें
करे साँई सबके मन मे निवास ।।18।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।