Wednesday, November 4, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 24

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 24

श्री साँई हैं हमारे गुरूवर
देखे साँई चरणों की ओर
प्राप्त हो हमें सत्य स्वरूप
अगर अहंकार दे हम छोड़ ।।1।।

साँई भक्ति से होये हम
सुख शांति के अधिकारी
हमारी इच्छाएं पूर्ण होये
आध्यात्मिक और संसारी ।।2।।

साँई लीला श्रवण करे
व मनन करे अगर कोय
जीवन का ध्येय मिले उसे
परम आनन्द भी प्राप्त होय ।।3।।

प्रिय हैं सभी को हास्य
परन्तु पात्र बने न कोय
बाबा हास्य विनोद करे
वह अति शिक्षाप्रद होय ।।4।।

साँई के शिर्डी गाँव में
बाजार लगे हर इतवार
निकट गाँव के लोग आ
वे करते अपना व्यापार ।।5।।

एक इतवार की बात हैं
पंत दबा रहे साँई चरण
बूटी, दीक्षित के संग संग
वहाँ थे शामा और वामन ।।6।।

अण्णा कमीज देख लो
हँसकर शामा कहे जाय
जब शामा बाँह स्पर्श करें
वहाँ कुछ चने के दाने पाय ।।7।।

पंत कुहनी सीधी करे
कुछ चने लुढ़क जाये
जो चने नीचे गिर पड़े
भक्त लोग उन्हें उठाये ।।8।।

हास्य का विषय मिला
भक्तगण आनन्द उठाये
ये चने यहाँ आये कहाँ से
सब अपने अनुमान लगाये ।।9।।

तब बाबा कहने लगे
अण्णा एकांत में खाय
दिन हैं आज बाजार का
वहाँ से ये चने चबाते आये ।।10।।

हेमाडपंत जी कहने लगे
अकेले में वे कुछ न खाय
जब बाजार आज गये नही
फिर भला कैसे चने वे पाय ।।11।।

जब भोजन का समय हो
और निकट हो अगर कोय
पहले उसे उसका भाग दे
तब ही भोजन ग्रहण होय ।।12।।

पंत से बाबा कहने लगे
तुम सत्य बात बतलाये
किंतु कोई निकट न हो
तब क्या ही किया जाये ।।13।।

भोजन करने से पहले
क्या करते मुझे अर्पण
मुझको दूर क्यो जानते
मैं साथ तुम्हारे हर क्षण ।।14।।

पहले साँई अर्पण करो
भोजन बन जाये प्रसाद
साँई हमें यही शिक्षा देते
वे तो हैं सदा हमारे साथ ।।15।।

इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि 
पदार्थों का लेवे स्वाद
पहले साँई स्मरण करें
पदार्थ बन जाते प्रसाद।।16।।

भोजन जब हो सामने
पहले करो साँई को याद
स्मरण,अर्पण की विधि हैं
भोज ग्रहण हो उसके बाद ।।17।।

ये अच्छे स्वभाव हैं नही
क्रोध, तृष्णा और इच्छाये
ईश्वरअर्पण का अभ्यास हो
पल में ये सभी नष्ट हो जाये ।।18।।

गुरू व ईश्वर एक ही
इनमें भिन्नता न कोय
जो गुरू की सेवा करे
उस पर प्रभु कृपा होय ।।19।।

नेत्रों से हम देखते रहे
साँई का स्वरूप सगुण
वैराग्य, मोक्ष मिले हमें
व मिल जाये भक्ति पूर्ण ।।20।।

मिट जाये क्षुधा हमारी
गर साँई ध्यान हो प्रगाढ़
संसार से मोह भी ना रहे
सुख व शांति मिले अगाध ।।21।।

चने की हास्यकथा यह
पंत जी वर्णन किये जाये
सुदामा की एक कथा का
पंत जी को स्मरण हो आये ।।22।।

कृष्ण और बलराम संग
सुदामा भी वन को जाय
कृष्ण विश्राम करने लगे
सुदामा अकेले चने खाय ।।23।।

तब कृष्ण पूछने लगे
दादा, तुम क्या खाय
कृष्ण स्वयं भगवान हैं
वे सब कुछ जान जाय ।।24।।

तब सुदामा कहने लगे
वह कुछ भी तो न खाय
यहाँ शीत से वह काँप रहे
दाँत से कड़कड़ ध्वनि आय ।।25।।

फल भोगते हुए सुदामा
गरीबी में जीवन बिताये
मुट्ठीभर चावल भेंट करे
श्री कृष्ण प्रसन्न हो जाये ।।26।।

भगवान श्रीकृष्ण उन्हें
स्वर्ण नगरी किये प्रदान
पहले प्रभु को अर्पण हो
कथा से मिलता यह ज्ञान ।।27।।

दूसरी हास्यकथा का
पंत हेमाड करे वर्णन
यह कथा बतलाये हमे
बाबा करे शांति स्थापन ।।28।।

निडर प्रकृति के भक्त एक
नाम था दामोदर घनश्याम
बाहर रूखे,भीतर से सरल
अण्णा चिंचणीकर उपनाम ।।29।।

एक समय बाबा के भक्त
बाबा के अंग अंग दबाय
साँई सेवा का अवसर पा
सभी भक्त धन्य हो जाय ।।30।।

थी वृद्ध महिला भक्त एक
लोग कहते उन्हें मौसीबाई
वेणुबाई कौजलगी नाम था
माँ कहा करते थे उन्हें साँई ।।31।।

साँई सेवा करे मौसीबाई
सभी अंगुलियाँ मिलाकर
साँई का शरीर दबाये जाये
भक्त श्रीअण्णा चिंचणीकर ।।32।।

तब मौसीबाई कहने लगी
वह करते हुए हास्यविनोद
बहुत बुरा इंसान हैं अण्णा
चुंबन करना चाहे यह प्रौढ़ ।।33।।

क्रोध में हो अण्णा कहे
तुम कह रही मुझे वृद्ध
मैं कोई बुरा व्यक्ति नही
झगड़ रही हो तुम व्यर्थ ।।34।।

मौसीबाई मजाक करे
अण्णा क्रोधित हो जाय
दोनों का यह विवाद देख
सब लोग आनंद लिये जाय ।।35।।

बाबा दोनों पर स्नेह रखे
इस विवाद को सुलझाय
हे अण्णा क्यों झगड़ रहे
प्रेमपूर्वक साँई कहे जाय ।।36।।

माँ का चुंबन करने में
दोष या हानि ना कोय
बाबा ने यह शब्द कहे
सुनकर दोनों शांत होय ।।37।।

भक्तगण जो थे वहाँ
ठहाका लगाये जाय
विनोद का विषय यह
भक्तो को आनन्द आय ।।38।।

जो भक्त जैसे सेवा करे
उसे वैसे करने दी जाय
अगर सेवा में दखल दे
साँई को पसंद ना आय ।।39।।

एक समय मौसीबाई
साँई सेवा किये जाय
थी भक्ति में लीन वह
बलपूर्वक पेट दबाय ।।40।।

कहि नाड़ी टूट ना जाये
माँ तुम धीरे दबाओ पेट
मौसीबाई से कहने लगे
भक्त वहाँ जो थे अनेक ।।41।।

साँई सुनकर यह बात
क्रोध में खड़े हो जाय
लाल आँखे लिए साँई
हाथ में सटका उठाय ।।42।।

एक छोर नाभि में लगाये
जमीन पर था दूजा छोर
सटके से धक्का देने लगे
भक्त देख रहे थे साँई ओर ।।43।।

सभी भक्त भयभीत हुए
साँई का पेट फट न जाय
किंतु कोई कुछ बोले नही
मानो हो गूंगो का समुदाय ।।44।।

भक्तो का संकेत था यह
सहज भाव से होये सेवा
इसलिए माँ को कहा था
ताकि कष्ट नही पाये देवा ।।45।।

साँई को यह पसंद नही
दे भक्ति में दखल कोय
भक्त जन यह समझ गये
साँई इसलिए क्रोधित होय ।।46।।

भाग्यशाली थे भक्तजन
शांत हुआ साँई का क्रोध
आसन पर जा बैठे साँई
और सटका दिया छोड़ ।।47।।

कार्य मे दखल हो नही
भक्तगण यह शिक्षा पाय
जो जैसे साँई की सेवा करे
उसे वैसे सेवा करने दी जाय ।।48।।

सब भक्तो की तू सुनता
साँई तू हैं कृपा का सागर
'गौरव' तुझसे अरदास करे
साँई भर देना सबकी गागर ।।49।।

यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
हमें कई शिक्षा मिल जाय
साँई का नाम लेते रहे हम
साँई नाम में आनन्द आय ।।50।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Friday, September 11, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 22

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 22

साँई चरणों में ध्यान लगा
यह अध्याय करें हम पठन
साँई जी की लीला हो जाये
सुखी हो जाये हमारा जीवन ।।1।।

श्री साँई, सर्वशक्तिमान हैं
साँई की प्रकृति हैं अगाध
वर्णन करने में असमर्थ हैं
वेद व सहस्त्रमुखी शेषनाग ।।2।।

आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।3।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।4।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।5।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।6।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।7।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।8।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।9।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।10।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।11।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।12।।

साँई बाबा के वास से ही
तीर्थ बन जाये शिर्डी गाँव
भक्तगण शिर्डी आने लगे
पाते साँई कृपा रूपी छाँव ।।13।।

साँई प्रेम,साँई ज्ञान अपार हैं
वर्णन को शब्द न मिल पाये
बड़े धन्य हैं वे बाबा के भक्त
जो यह सब अनुभव कर पाये ।।14।।

कभी ब्रह्म में मगन रह
साँई दीर्घ मौन धारण करे
कभी आनन्द की मूर्ति बन
साँई रहे अपने भक्तो से घिरे ।।15।।

साँई जी कभी दृष्टांत देते
कभी वे विनोद किये जाय
वे कभी घण्टो प्रवचन देते
तो कभी सार रूप समझाय ।।16।।

साँई का मुखमंडल देखें
व साँई लीला सुनते जाय
भक्तगण फूले नही समाते
लीला श्रवण में आनंद आय ।।17।।

जलवृष्टि कण गिन सके
वायु भी संचित की जाय
किंतु साँई की लीला ऐसी
साँई लीला का अंत न पाय ।।18।।

साँई की लीलाएं अनेकों हैं
एक लीला पठन की जाये
कि कैसे रक्षा करते हैं साँई
व भक्तों को संकट से बचाये ।।19।।

बालासाहेब मिरीकर जी
एक समय चितली जाये
मार्ग में शिर्डी गाँव पधार
वे साँई दर्शन करने आये ।।20।।

साँई कहने लगे मिरीकर से
क्या तुम जानते द्वारकामाई
मिरीकर अर्थ समझ न सकें
तब उन्हें समझाने लगे साँई ।।21।।

जहाँ तुम बैठे हुए हो
वही तो हैं द्वारकामाई
जो उसकी गोद में बैठे
दूर होते दुख व कठिनाई ।।22।।

द्वारकामाई हैं अति दयालु
करे भक्तो के सभी कष्ट दूर
जो उसकी छत्रछाया में आये
आनन्द और सुख मिले भरपूर ।।23।।

मिरीकर को बाबा उदी दे
रखे उनके सिर पर वे हाथ
मिरीकर से बाबा कहने लगे
देकर उन्हें अपना आशीर्वाद ।।24।।

बायीं मुट्ठी बंद कर साँई
वे ले गए दायीं कुहनी पास
सर्प कुछ भी न कर पायेगा
रखो द्वारकामाई पर विश्वास ।।25।।

मिरीकर को ऐसा कह साँई
शामा को अपने पास बुलाये
साँई की आज्ञा हुई शामा को
वे मिरीकर संग चितली जाये ।।26।।

वे चितली को पहुंच कर
मारुति मंदिर में ठहर जाय
मिरीकर समीप एक सर्प था
किसी का ध्यान उधर न जाय ।।27।।

सर्प आवाज कर रेंगने लगे
चपरासी दौड़ लालटेन लाये
सर्प को देख वह चिल्लाने लगे
बालासाहेब भी भयभीत हो जाये ।।28।।

सब लोगो ने लाठी ली
सर्प का प्राणांत हो जाये
साँई ने जो संकट कहा था
पल में वह संकट टल जाये ।।29।।

साँई शब्द याद करे मिरीकर
साँई में उनकी निष्ठा बढ़ जाये
साँई कैसे भक्तो की रक्षा करते
भक्तो को संकट से साँई बचाये ।।30।।

नाना डेंगले ज्योतिषी एक
बापूसाहेब बूटी को बतलाये
आज तुम्हारे जीवन को भय हैं
यह सुनकर बापूसाहेब घबराये ।।31।।

बूटी साँई दर्शन को गए
तब साँई उन्हें समझाये
नाना जो तुमसे कह रहे
मेरे होते क्यो तुम घबराये ।।32।।

नाना से कह दो तुम कि
कुछ भी नही करेगा काल
अपनी चिंता को त्यागो तुम
तुम्हारा साँई देगा संकट टाल ।।33।।

जब बूटी गये शौच गृह
एक सर्प दिखाई दे जाय
उनका नौकर सर्प को देख
मारने को एक पत्थर उठाये ।।34।।

रेंग रेंगकर वह सर्प दूर हो
आंखों से ओझल हो जाय
साँई वचन का स्मरण करके
बूटी जी का मन बड़ा हर्षाय ।।35।।

कोरले वासी अमीर शक्कर
गठिया रोग से बड़ा कष्ट पाय
काम धंधा वह सारा छोड़कर
साँई शरण में वह शिर्डी आय ।।36।।

उसे बाबा ने आज्ञा दी
चावडी में करो निवास
उसकी पीड़ा दूर हो गई
अमीर रहा वहाँ नौ मास ।।37।।

एक रात वह बतलाये बिना
चावडी छोड़ कोपरगाँव जाय
अपनी भूल का अहसास हुआ
वापस लौटकर वह चावडी आय ।।38।।

एक रात को साँई बाबा
अब्दुल को पुकारे जाय
बत्ती लाओ यहाँ अब्दुल
कोई दुष्ट बिस्तर चढ़ जाय ।।39।।

साँई संगति में रह शक्कर
शब्दो का अर्थ समझ जाये
वहाँ एक साँप था बैठा हुआ
कुंडली मारे और फन फैलाये ।।40।।

साँप के प्राणों का अंत हुआ
अमीर के प्राण बचाये साँई
साँई का सानिध्य मिला उन्हें
थे साँई शक्कर के लिये सहाई ।।41।।

एक समय की बात हैं
हो रहा रामायण पठन
श्रोताओं में शामिल हो
पंतजी भी कर रहे श्रवण ।।42।।

रामायण पाठ के श्रवण में
श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाये
बिच्छु आ बैठे पंत दायें कंधे
पंत को पता भी ना चल पाये ।।43।।

श्रोता की रक्षा करे ईश्वर
पंत की दृष्टि कंधे पर जाये
कंधे पर बैठे बिच्छु को पंत
कथा श्रवण में तल्लीन पाये ।।44।।

श्रोताओं में विघ्न डाले बिना
पंत धोती के सिरे लिये जोड़
उसमे लपेट कर वे बिच्छु को 
बगीचे में ले जाकर दिए छोड़ ।।45।।

एक समय काकाजी बैठे हुए
साँप खिड़की से भीतर आये
लोग छड़ी ले उसे मारने दौड़े
साँप छिद्र में अदृश्य हो जाय ।।46।।

अच्छा हुआ, बच गया जीव
मुक्ताराम कहने लगे यह बात
पंतजी ने उनकी अवहेलना की
हुआ इस विषय पर वाद विवाद ।।47।।

दो अलग अलग मत थे
निष्कर्ष न निकल पाये
साँई समक्ष प्रश्न आया
तब साँई उन्हें समझाये ।।48।।

समस्त विश्व ईश्वर अधीन
सबमें ईश्वर का वास होय
चाहे साँप हो या हो बिच्छु
या फिर प्राणी जीव कोय ।।49।।

सभी प्राणियों से करो
दया व स्नेह का व्यवहार
वैमनस्य का त्याग करो व
रखो सदा ही उचित विचार ।।50।।

साँई तव चरणों में रहना चाहे
बना रहे 'गौरव' आपका दास
आपका स्मरण सदा करता रहे
न ले आपकी सेवा से अवकाश ।।51।।

पूर्ण भाव से पठन हुआ
सम्पूर्ण हुआ यह अध्याय
साँई से हम आशीष मांगें
सब पर साँई कृपा हो जाय ।।52।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Monday, September 7, 2020

श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान

*श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान*

बाबा के अनन्य भक्त , श्री हेमाडपंत जी ने श्री साँई सच्चरित्र महा ग्रन्थ रचा । श्री साँई सच्चरित्र के अध्याय 22 में हेमाडपंत जी , बाबा की भक्ति व ध्यान का एक अति सरल मार्ग बतलाते हैं वह यह हैं कि-
जिस प्रकार शुक्ल पक्ष के आरम्भ होने पर हम चन्द्र का दर्शन करना चाहते हैं तो हम वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य से चन्द्र दर्शन करते हैं व चन्द्र दर्शन करके प्रसन्न होते हैं , उसी तरह हमे बाबा के स्वरूप के दर्शन करने चाहिए । जिस स्वरूप में बाबा अपना दायाँ पैर मोड़ कर बैठे हैं तथा दायाँ पैर, बाएं घुटने पर हैं व बाएं हाथ की अंगुलियाँ दाएं पैर पर फैली हुई हैं ।  बाबा की मध्यमा व तर्जनी अंगुली के मध्य से हमें बाबा के अँगूठे का ध्यान करना चाहिए । अगर हम अभिमान त्याग कर, विनम्र होकर बाबा के अंगूठे का ध्यान करेंगे तो हमें बाबा के सत्य स्वरूप के दर्शन होंगे । 


बाबा की आज्ञा व उनकी कृपा से इसी प्रसंग को काव्य रूप में लिखने का प्रयास किया हैं, जिसे बाबा ने स्वयं लिखवाया हैं, उसे यहाँ साझा कर रहा हूँ:-



आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।

Wednesday, September 2, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 21

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 21

श्री साँई का ध्यान कर
पठन करे यह अध्याय
साँई की शिक्षाये अपना
हम भक्त साँईमय हो जाय ।।1।।

गत जन्मों के शुभ कर्म से
संतो का सानिध्य मिल पाय
शुभ कर्मों के फलस्वरूप ही
संतो की कृपा प्राप्त हो जाय ।।2।।।

बांद्रा के न्यायाधीश रहे
अनेक वर्षों तक श्रीहेमाड
शिर्डी जा बाबा के भक्त हुये
वे ऐसी साँई कृपा पाये अगाध ।।3।।

भाग्य के बिना कैसे भला
संतसमागम प्राप्त हो पाय
सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें
संत दर्शन प्राप्त हो जाय ।।4।।

लोकशिक्षा का कार्य संत
अनेक समय से करते आय
वे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतू
भिन्न स्थानो पर प्रगट हो जाय ।।5।।

कार्यस्थल भले ही भिन्न हो
परन्तु सब संत हैं एक समान
ईश्वर की एक लहर में कार्य करे
उन्हें रहता कार्य का परस्पर ज्ञान ।।6।।

एक समय व्ही.एच.ठाकुर 
कार्य से बेलगाँव समीप जाय
वडगाँव नामक ग्राम में वे पहुँचे
कानडी संत अप्पा के दर्शन पाय ।।7।।

वेदान्त के विषय में हैं
विचार सागर नामक ग्रंथ
ग्रंथ का भावार्थ समझा रहे
वहाँ भक्तो को वे कानडी संत ।।8।।

श्री ठाकुर से वे कहने लगे
करो इस ग्रंथ का अध्ययन
उत्तर दिशा में जब जाओगे
पाओगे महान संत के दर्शन ।।9।।

जब स्थानांतरण जुन्नर हुआ
जाते थे वे करके नाणेघाट पार
यह घाट अधिक गहरा व कठिन
घाट पार करते भैंसे पर हो सवार ।।10।।

स्थानांतरण जब कल्याण हुआ
श्री ठाकुर हुए उच्च पद आसीन
वहाँ नानासाहेब से परिचय हुआ
जो रहते बाबा की भक्ति में लीन ।।11।।

नानासाहेब से श्री ठाकुर को
साँईबाबा के बारे में हुआ ज्ञात
साँईदर्शन की उन्हें उत्कंठा हुई
नाना कहे चलिये आप मेरे साथ ।।12।।

किसी कार्य के चलते ठाकुर
नाना संग शिर्डी ना जा पाय
अकेले ही प्रस्थान किये नाना
ठाकुर का कार्य आगे बढ़ जाय ।।13।।

तब मित्रों संग श्री ठाकुर
साँई दर्शन को शिर्डी जाय
साँई के चरणों मे गिरे ठाकुर
बह रही आंखों से अश्रुधाराएं ।।14।।

त्रिकालदर्शी बाबा कहने लगे उनसे
इस स्थान का मार्ग इतना न आसान
जितनी नाणेघाट पर भैंसे की सवारी
या फिर कानडी संत अप्पा का ज्ञान ।।15।।

आध्यात्मिक पथ अति कठिन हैं
इस हेतू घोर परिश्रम किया जाये
बाबा के ये वचन सुने जब ठाकुर
कानडी संत के वचन याद आये ।।16।।

वे दोनों हाथों को जोड़कर
बाबा के चरणों मे गिर जाय
मुझे शीतलछाया में स्थान दो
साँई से वे प्रार्थना किये जाय ।।17।।

तब बाबा कहने लगें उनसे कि
सत्य कहे थे कानडी अप्पा संत
अपने आचरण में भी तुम लाओ
जो पठन किये विचारसागर ग्रंथ ।।18।।

जो कुछ भी पठन करते हो
उसे आचरण में लाया जाये
अन्यथा पठन का लाभ क्या
साँईबाबा यह बात समझाये ।।19।।

अंनतराव पाटणकर भक्त एक
साँई दर्शन को जब शिर्डी आये
साँई दर्शन पाकर नेत्र शीतल हुए
पाटणकर जी अति प्रसन्न हुए जाये ।।20।।

दर्शन कर कहने लगें बाबा से
पढ़ें मैंने वेद उपनिषद व पुराण
फिर भी मुझे शांति मिल न सकी
आया शिर्डी सुन आपका गुणगान ।।21।।

आपके वचनों व दृष्टि मात्र से
सबके मन को शांति मिल जाय
साँईजी से आशीर्वाद वे माँग रहे
तब साँई उन्हें एक कथा सुनाय ।।22।।

एक समय एक सौदागर
जब यहाँ शिर्डी वह आय
घोड़ी की लीद के नौ गोले
सौदागर एकत्र किए जाय ।।23।।

नौ गोले पाकर सौदागर
अपने चित्त को शांति पाय
जब यह कथा सुने पाटणकर
उन्हें कुछ अर्थ समझ में न आय ।।24।।

वे दादा केलकर से प्रार्थना करें
कथा का अर्थ उन्हें समझा दो
केलकर कहे घोड़ी ईश कृपा हैं
व नवविधा भक्ति हैं वह गोले नौ ।।25।।

नौ प्रकार की भक्ति हैं जैसे
श्रवण, कीर्तन, नाम स्मरण
पाद सेवन, वन्दन, सख्यता
अर्चन, दास्य, आत्मनिवेदन ।।26।।

इन नौ प्रकार की भक्ति में से
एक को भी कार्य में लाया जाये
तब भगवान अति प्रसन्न होकर
अपने भक्त के घर प्रगट हो जाये ।।27।।

जप, तप, योगाभ्यास, वेद पठन
अगर भक्ति भाव से न किये जाये
भक्तिभाव बिना यह सभी शुष्क हैं
पूर्ण भक्ति से सार्थक हैं ये साधनाये ।।28।।

दूसरे दिन पाटणकर जब
गए बाबा को प्रणाम करने
तब बाबा उनसे पूछने लगे
क्या नौ गोले पा लिये तुमने ।।29।।

साँई आपकी कृपा बिना
कैसे गोले एकत्र हो पाये
आपकी कृपा होनी जरूरी
ऐसा पाटणकर जी बतलाये ।।30।।

सुख व शांति मिल जायेगी
दिए साँई उन्हें यह आशीर्वाद
पाटणकर यह सुन प्रसन्न हुए
मिल गयी साँई से उन्हें सौगात ।।31।।

साँईजी से कुछ नही छुपा
वे सबके मन की जान जाये
भक्तो के दोष वे दूर कर देते
और उन्हें उचित राह दिखाये ।।32।।

पंढरपुर से एक वकील
एक समय शिर्डी को आये
साँई दर्शन कर, दक्षिणा दे
कोने में वे जाकर बैठ जाय ।।33।।

कुछ लोग कितने धूर्त हैं
उनको देख ऐसा कहे साँई
यहाँ आकर वे चरणों में गिरते
और पीठ पीछे करते हैं वे बुराई ।।34।।

साँई के कहे ये शब्द
वहाँ कोई समझ न पाये
वकील साहब सब सुन रहे
शब्दों का अर्थ वे समझ जाये ।।35।।

वकीलसाहब वाड़े को लौट
काकाजी को बताने लगे बात
साँईजी ने जो कहा सब सत्य हैं
निंदा करने में दिया था मैंने साथ ।।36।।

पंढरपुर से शिर्डी आकर ठहरे
एक समय श्रीनूलकर साँई दास
बाररूम में उनकी चर्चा हो रही
उनका व साँई का किया उपहास ।।37।।

साँई ने जो भी वचन कहे
किया साँई ने मुझपे उपकार
मुझे इस बात की शिक्षा मिली
न करूँ कभी निंदा का व्यवहार ।।38।।

शिर्डी व पंढरपुर मीलों दूर
फिर भी साँई को सब ज्ञात
कोई दूर रहे या रहे वे समीप
साँई जाने सबके मन की बात ।।39।।

जैसे सागर का अंत नही
वैसे ही साँई लीला अनन्त
साँई लीलाये हमें ज्ञात होये
जब पढ़े साँई सच्चरित्र ग्रंथ ।।40।।

'गौरव' करें अरदास साँई से
करते हुए साँई नाम स्मरण
कि साँई सभी पर कृपा करें
व साँई कृपा से रहे सब प्रसन्न ।।41।।

हम भक्तो को हैं विश्वास 
कि साँई सदा हमारे साथ हैं
साँई पूरी करते सब अरदास
वो साँई हम भक्तो के नाथ हैं ।।42।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Monday, August 17, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 20

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 20

श्री साँई चरणों का ध्यान कर
आरम्भ करते अब यह अध्याय
साँईजी से करते हैं हम ये प्रार्थना
साँई सभी पर अपनी कृपा बरसाय ।।1।।

हम भक्तो के आराध्य
बाबा साँई हैं निराकार
भक्तो के प्रेमवश ही
प्रगटे वे रूप साकार ।।2।।

यह विश्व नाट्यशाला
साँई ने किया अभिनय
हम साँई लीला याद कर
आइये हो जाये साँईमय ।।3।।

बाबा का ध्यान करे और
मन को शिर्डी में पहुंचाये
साँई मध्यान्ह आरती का
हम सभी स्मरण किये जाये ।।4।।

पूर्ण हुई जब मध्यान्ह आरती
द्वारकामाई से साँई बाहर आये
एक किनारे खड़े हो बाबा साँई
भक्तो को प्रेम से उदी देते जाय ।।5।।

भक्तगण साँई के श्री चरण छूते
साँई दोनो हाथ से उदी देते जाय
मस्तक पर उदी का टीका लगा
साँई उन्हें अपने घर को लौटाय ।।6।।

कितना अच्छा दृश्य था यह
जब भक्त साँई के दर्शन पाय
गर भक्तगण कल्पना करें तो
वही आनन्द अनुभव कर पाय ।।7।।

वैदिक संहिता के मंत्रों का
ईशोपनिषद में हैं समावेश
इसके श्लोकों में निहित हैं
आत्मतत्ववर्णन के संदेश ।।8।।

टीका लिखे दासगणु जी
सारतत्त्व ग्रहण न कर पाये
कई विद्वानों से परामर्श किये
परन्तु दासगणु संतोष न पाय ।।9।।

इसका अर्थ तो वही कर सके
जिसे हो चुका आत्मसाक्षात्कार
ऐसा विचार कर के दासगणु जी
जाये साँई दर्शन को साँई के द्वार ।।10।।

साँई की चरण वंदना कर
दासगणु प्रार्थना किये जाय
साँई आशीष दे दासगणु को
कठिनाइयों का हल बताय ।।11।।

बाबा कहे गणु जब तुम लौटोगे
विलेपार्ला में काका के घर जाओ
काका दीक्षित की नौकरानी हैं वहाँ
उससे अपनी शंका का निवारण पाओ ।।12।।

वहाँ भक्त यह सुन सोचने लगे
साँई केवल विनोद किये जाय
भला अशिक्षित नौकरानी कैसे
इस समस्या का हल कर पाय ।।13।।

किंतु दासगणु को था विश्वास
असत्य नही होते साँई के वचन
साँई वचन साक्षात ब्रह्मवाक्य हैं
साँई के वचनों का किये वे पालन ।।14।।

साँई वचनों में रख पूर्ण निष्ठा
दासगणु काका के यहाँ जाय
मीठी नींद का आनंद वे ले रहे
गीत के स्वर कानो में पड़ जाय ।।15।।

जरी के आँचल की लाल साड़ी
अति सुंदर उसके किनारे व छोर
जब यह मधुर गीत दासगणु सुने
उठकर देखने लगे बाहर की ओर ।।16।।

एक बालिका गीत गा रही
और माँजे जाये वह बर्तन
फटे कपड़े पहने हुए उसने
दरिद्रता में भी थी वह प्रसन्न ।।17।।

दासगणु यह सब देख रहे कि
गीत गा रही बालिका थी प्रसन्न
बालिका को उत्तम साड़ी देने का
किये एम वी प्रधान से वे निवेदन ।।18।।

साड़ी पाये जब बालिका
वह ऐसे प्रसन्न हुई जाय
जैसे क्षुधापीडित व्यक्ति
मधुर भोजन जब पाय ।।19।।

एक दिन ही साड़ी पहनकर
बालिका संदूक में रख जाय
अगले दिन पुराने कपड़े पहन
पहले के समान प्रसन्न हुई जाय ।।20।।

सुख हो या फिर हो भले दुख
दोनों में बालिका थी एक समान
सुख दुख दोनों मन पर निर्भर हैं
तब दासगणु ने ली यह बात जान ।।21।।

जो हमें ईश्वर ने दिया हैं
समझो उसे ईश्वर की इच्छा
जो हैं उसी में संतोष मनाओ
उपनिषद पाठ की यही शिक्षा ।।22।।

भक्तों को शिक्षा देने के लिये
साँईजी कई युक्ति काम में लाय
कभी किसी को वे कही भेजते
किसी को निद्रा में दर्शन दे जाय ।।23।।

दासगणु को विलेपार्ला भेज
साँई उन पर ऐसे कृपा बरसाय
वे दासगणु की समस्या का हल
काका की नौकरानी द्वारा कराय ।।24।।

काकाजी की नौकरानी द्वारा
दासगणु समस्या का हल पाय
उन्हें अमूल्य शिक्षा मिल गयी
यह लीला साँईबाबा जी रचाये ।।25।।

ईशोपनिषद की मुख्य देन हैं
नीति शास्त्र से सम्बन्धी शिक्षा
सभी वस्तु ईश्वर से ओत प्रोत हैं
जो प्राप्त हो वो ईश्वर की इच्छा ।।26।।

ईशकृपा से जो कुछ मिला
उसमे ही आनन्द मनाओ
धन तृष्णा की प्रवृति छोड़
जो हैं उसमें संतुष्टि पाओ ।।27।।

फल की कोई इच्छा किये बिना
प्रभुइच्छा मान कर्म करते जाओ
आलस्य से आत्मा का पतन होता
इसलिए आलस्य को न अपनाओ ।।28।।

शोक, मोह व दुख दूर रहते
जो करे सभी में आत्मदर्शन
जो सभी प्राणियों में प्रभु देखे
वे प्राणी रहते हैं सदा ही प्रसन्न ।।29।।

पर्वत सा दुख हो जीवन में
या फिर बाग जैसा सुख आये
दोनों स्थिति में एक समान रहो
यह बात यह अध्याय समझाये ।। 30।।

यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
साँई कृपा ऐसी हुई जाये
'गौरव' का हाथ पकड़ साँई
स्वयं ही काव्य रूप लिखवाये ।।31।।

साँई से करते हैं हम प्रार्थना
साँई सभी पर कृपा बरसाये
सभी के साथ साँई रहे हमेशा
सबके जीवन में खुशियाँ लाये ।।32।।

।। श्री साँईंनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।

Wednesday, August 12, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 18 व 19

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 18 व 19

श्री साँई के चरणों का करके ध्यान
हम पठन करते हैं अब यह अध्याय
धन्य हेमाड जी जो साँई सच्चरित्र रचे
तभी हम साँई जीवनगाथा जान पाये ।।1।।

अपने शिष्य की योग्यता पर
सद्गगुरू ध्यान देते हैं विशेष
शिष्य का चित्त स्थिर रहता
सद्गुरू देते उपयुक्त उपदेश ।।2।।

सदगुरू वर्षाऋतु के मेघ सदृश
जो सर्वत्र समान जल बरसाय
गुरू सभी भक्तो को दे उपदेश
भक्तो को ज्ञान की प्राप्ति कराय ।।3।।

बालक के उपचार हेतु जैसे
माँ उसे कड़वी औषधि पिलाय
वैसे भक्तो के कल्याण हेतु साँई
उपदेश दे ज्ञान की बात बताय ।।4।।

सदगुरू साँई ज्ञान चक्षु खोल
हमें दिव्यता का अनुभव कराय
विषयवासना से आसक्ति नष्ट हो
ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो जाय ।।5।।

ज्ञान में उन्नति तभी सम्भव हैं
जब साँई सानिध्य मिल पाये
साँई जी भक्तकामकल्पतरू हैं
दुखो से मुक्त कर सुखी बनाय ।।6।।

ख्याति प्राप्त एक श्री साठे थे
हुए एक बार वे दुखी व निराश
क्योंकि व्यापार में उन्हें हानि हुई
सोचे घर छोड़ करूँ एकांत वास ।।7।।

एक मित्र की सलाह मानकर
साठे जी ,साँई-दर्शन को आये
गत जन्म के शुभ कर्म हैं ये मेरे
यह सोच साँई चरणों में गिर जाय ।।8।।

दृढ़ संकल्प के व्यक्ति साठे
आरम्भ किये गुरूचरित्र पठन
सात दिन में ही पठन पूर्ण हुआ
बाबा ने दिया उसी रात्रि उन्हें स्वप्न ।।9।।

अपने हाथ में चरित्र लिए बाबा
स्वप्न में साठे जी को समझाय
साँई सम्मुख बैठ कर साठे जी
ध्यानपूर्वक श्रवण किये जाय ।।10।।

निद्रा से जब साठे जी जागे
करने लगे स्वप्न का स्मरण
बाबा की कृपा हुई मुझ पर
यह सोच हुए वे अति प्रसन्न ।।11।।

काकासाहेब जी को साठे
अपना सम्पूर्ण स्वप्न सुनाये
बोले बाबा से प्रार्थना करो
बाबा स्वप्न का अर्थ समझाये ।।12।।

काकासाहेब जब साँई से पूछे
साँई का साठे हेतु था यह ज्ञान
एक सप्ताह और वे पारायण करें
चित्त शुद्ध हो जाएगा,होगा कल्याण ।।13।।

उस समय वहाँ थे हेमाड जी
सेवा कर रहे बैठ साँई चरणों में
बाबा ने जो साठे जी को कहा
विचारने लगे हेमाड जी मन में ।।14।।

केवल सप्ताह के पारायण से ही
साठे को मनवांछित फल मिल जाय
चालीस वर्षों से गुरूचरित्र पारायण का
क्यो परिणाम मुझे अब तक न मिल पाय ।।15।।

साठे का केवल सात दिनो का
शिर्डी वास सफल कहलाय
ये मेरी पिछले सात वर्षों की
साँई भक्ति क्या व्यर्थ जाय ।।16।।

चातक पक्षी समान राह देखूँ
कब कृपाघन कृपा बरसाये
मुझे यह विचार आये थे कि
साँई को सब ज्ञात हो जाये ।।17।।

भक्त सदा यह अनुभव करते
साँई करते कुविचारों का दमन
समस्त विचार साँई को ज्ञात हैं
देते उत्तम विचारों को प्रोत्साहन ।।18।।

हेमाडजी के विचार जान साँई
आज्ञा दे- शामा के यहाँ जाओ
कुछ समय वार्तालाप करो उनसे
और पंद्रह रूपये दक्षिणा ले आओ ।।19।।

स्नान कर वस्त्र पहन रहे थे शामा
जब हेमाडजी उनके घर को जाय
शामा जी उनसे पूछे आप यहाँ कैसे
उदास क्यो हैं आप,अकेले ही आय ।।20।।

हेमाडजी से शामा कहने लगे
बैठिए ,विश्राम कीजिए आप
पूजनादि से मैं निवृत हो जाऊँ
फिर करेंगे सुख से वार्तालाप ।।21।।

हेमाड जब खिड़की ओर देखे
वहाँ वे नाथ भागवत रखी पाय
नित्य वे नाथ भागवत पाठ करते
किंतु आज पाठ पूरा न कर पाये ।।22।।

जब ग्रन्थ उठाकर हेमाड खोले
अपूर्ण भाग का पृष्ठ सामने पाये
इसलिए साँई ने मुझे यहाँ भेजा
यह सोच साँई लीला समझ आये ।।23।।

अपूर्ण रहा पाठ वे पूर्ण किये
पूजा से निवृत हो शामा आये
हेमाड शामा से वार्ता करने लगे
व कहे साँई एक संदेश भिजवाये ।।24।।

मेरी आज्ञा से शामा के घर जाकर
उनसे पन्द्रह रूपये दक्षिणा लाओ
थोड़ी देर वार्तालाप भी करो उनसे
उन्हें साथ ले द्वारकामाई लौट आओ ।।25।।

शामा बोले फूटी कौड़ी भी नही
दक्षिणा में लो पन्द्रह नमस्कार
हेमाड जी यह सुन कहने लगे
आपकी यह दक्षिणा हैं स्वीकार ।।26।।

शामा जी आइये वार्तालाप करे
आप कुछ साँई लीलाएं सुनाये
उन साँई लीलाओं को सुनकर
मेरे समस्त पाप नष्ट हो जाये ।।27।।

शामा कहे मैं तो अशिक्षित देहाती
हेमाड जी आप हैं एक अति विद्वान
कैसे आप समक्ष मैं लीला वर्णन करूँ
यहाँ आ साँई लीला आप लिए हैं जान ।।28।।

बाबा जी की लीलाये अगाध हैं
मुझे एक कथा की स्मृति हो आये
जैसी भक्त की निष्ठा तथा भाव हैं
वैसे ही बाबा उसे सहायता पहुँचाये ।।29।।

भक्त दे कभी कठिन परीक्षा
तभी वह बाबा से उपदेश पाय
उपदेश शब्द ज्यो ही हेमाड सुने
साठे की घटना स्मरण हो आय ।।30।।

हेमाड सोच रहे साँई यहाँ भेजे
चित्त की चंचलता नष्ट हो जाये
शामा से यह विचार प्रकट न कर
हेमाड ध्यान से कथा सुनते जाये ।।31।।

राधाबाई नाम की एक वृद्धा
साँई कीर्ति सुन शिर्डी को आये
निश्चय करें साँई गुरू बने उसके
साँई से उपदेश ग्रहण किया जाये ।।32।।

आमरण अनशन का निश्चय कर
वृद्धा ने अन्न व जल दिया छोड़
यह देख मैने साँई से की प्रार्थना
हे देव देखो उस वृद्धा की ओर ।।33।।

वृद्धा का दृढ़ निश्चय देख
साँई उस वृद्धा को बुलाये
मधुर उपदेश साँई ने दिया
उसे साँई कुछ यूँ समझाये ।।34।।

तुम मेरी माँ,मैं तुम्हारा बेटा
माँ तुम मुझ पर दया करो
जो कुछ मैं तुमसे कह रहा
ध्यानपूर्वक तुम उसे सुनो ।।35।।

मेरे एक गुरू बड़े सिद्ध पुरूष
सेवा की मैने रह गुरू के पास
दो पैसों की दक्षिणा उन्होंने ली
एक थी धैर्य दूसरी दृढ़ विश्वास ।।36।।

ये दक्षिणा जब गुरू को दी
गुरू हुए मुझसे अति प्रसन्न
बारह वर्ष गुरू सेवा में गुजरे
किया गुरू ने मेरा भरण पोषण ।।37।।

दृढ़ विश्वास रख, धैर्य धारण कर
दीर्घ काल गुरू सेवा में रहा ध्यान
विश्वास तथा धैर्य यह दक्षिणा हुई
ये दोनों हैं जुड़वाँ बहनो के समान ।।38।।

कछुवी प्रेमदृष्टि से पालन करे
चाहे बच्चे समीप हो या हो दूर
वैसे ही मैं अन्य स्थान भी रहूँ
गुरू सदा कृपादृष्टि रखे भरपूर ।।39।।

हे माँ बताओ कैसे मैं मंत्र फूंकूँ
गुरू मुझे कोई मंत्र न सिखलाये
ध्यान रखो गुरू कछुवी समान हैं
प्रेमदृष्टि से संतोष प्राप्त हो जाय ।।40।।

हरि,हर ,ब्रह्म के अवतार गुरू
रखो गुरू में तुम पूर्ण विश्वास
यहाँ बैठकर मैं सत्य ही बोलूँगा
माँ अब तो त्यागो तुम उपवास ।।41।।

कंठ रूंध गया साँई कथा सुनकर
हेमाड जी कोई शब्द न बोल पाय
मध्यान्ह आरती प्रारम्भ होने लगी
शामा हेमाड द्वारकामाई को जाय ।।42।।

बापूसाहेब जोग पूजन आरम्भ करे
नर-नारी साँई बाबा की आरती गाय
हेमाड जी का हाथ पकड़ शामा पहुँचे
बाबा उन दोनों को अपने पास बैठाय ।।43।।

हेमाड से साँई दक्षिणा मांगे
जो दक्षिणा वे शामा से लाये
पन्द्रह नमस्कार भेजे हैं शामा
साँई को ऐसा हेमाड बतलाये ।।44।।

बाबा कहे जो वार्तालाप हुई 
वह मुझको सुनाओ तुम हेमाड
हेमाड कहे आपकी कथा सुनी
साँई आपकी लीलाएं हैं अगाध ।।45।।

हेमाडजी ने सारी कथा सुना दी
साँई पूछे क्या अर्थ समझ में आय
कथा स्मरण कर मेरा ध्यान करोगे
तो समस्त कुप्रवृत्तियां शांत हो जाय ।।46।।

हेमाड बोल बोलने लगे
हाँ देव अर्थ समझ आया
चित्त की चंचलता नष्ट हुई
सत्य मार्ग का पता चल पाया ।।47।।

साँई जी उपदेश देने लगे
आत्मज्ञान हेतु करो ध्यान
करत करत अभ्यास के ही
कुप्रवृत्तियां हो जाये शांत ।।48।।

निराकार स्वरूप का ध्यान करो
न हो तो देखो रूप मेरा साकार
तुम्हे ब्रह्म की प्राप्ति हो जायेगी
ध्याता,ध्यान,ध्येय होंगे एकाकार ।।49।।

दूर दूर किनारे कछुवी व बच्चे
उन्हें ह्रदय से भी न लगा पाय
दूर से ही प्रेम दृष्टि रखे उन पर
बच्चों का भरण पोषण हो जाय ।।50।।

गुरू शिष्य का सम्बंध भी
कछुवी व उसके बच्चे समान
शिष्य कहि भी निवास करें
कृपादृष्टि रख,रखते गुरू ध्यान ।।51।।

साँई के यह शब्द कहते ही
मध्यान्ह आरती हुई सम्पूर्ण
साँई की जय बोलने लगे सब
साँई के प्रति रखकर भाव पूर्ण ।।52।।

साँई को नमस्कार करके जोग
मिश्री का प्रसाद साँई को दे जाय
हेमाड को यह प्रसाद दे साँई बोले
मिश्री सम मधुर होकर सुख पाय ।।53।।

हेमाड बाबा को साष्टांग प्रणाम किये
इसी प्रकार दया करना आप हे देव
उन्हें आशीर्वाद देकर साँई कहने लगे
कथा श्रवण कर सार ग्रहण करो सदैव ।।54।।

प्यासे को जल,वस्त्रहीन को वस्त्र
व क्षुधा पीड़ित को दो तुम भोजन
सभी का तुम आदर सत्कार करो
भगवान तुमसे अवश्य होंगे प्रसन्न ।।55।।

कोई तुमसे द्रव्य याचना करें
और न हो तुम्हारी देने की इच्छा
तो बुरा व्यवहार तुम उससे न करो
अपनाओ अच्छे आचरण की शिक्षा ।।56।।

कोई तुम्हारी निंदा करें
न करो तुम उस पर क्रोध
निश्चित ही तुम सुखी रहोगे
अगर करोगे इस बात का बोध ।।57।।

मैं और तू का भाव भेदवृति हैं
जब यह दीवार नष्ट की जाय
गुरू शिष्य में पृथकता न रहे
मिलन का पथ सुगम हो जाय ।।58।।

प्रातःकाल तुम्हारे ह्रदय में
गर कोई उत्तम विचार आये
तो दिन भर उसकी स्मृति रहे
चित्त को प्रसन्नता मिल जाये ।।59।।

ऐसा ही अनुभव हेमाड किये
जब सोकर उठे हेमाड एक दिन
राम नाम का स्मरण उन्हें हो आया
सोचे नामस्मरण में रहूँ मैं आज लीन ।।60।।

प्रसन्न हो पुष्प हाथ में ले
वे करने गए बाबा के दर्शन
बूटी वाड़े के समीप आते ही
सुनाई दिया उन्हें मधुर भजन ।।61।।

औरंगाबादकर गा रहे लय से
प्रभु श्री राम का ही सुन्दर भजन
यही विचार हेमाडजी ने किया था
करूँ आज अखंड राम नाम स्मरण ।।62।।

रामनाम जप का ऐसा प्रभाव
भक्तो की पूरी होती सब इच्छाएं
राम नाम स्मरण करते रहने से
भक्तो के सभी कष्ट दूर हो जाये ।।63।।

साँई जी की लीला जान
हेमाड जी प्रसन्न हो जाये
साँई जी को सब ज्ञात रहता
उत्तम विचार जो मन में आये ।।64।।

बाबा वहाँ नही तब एक जन
भाई को अपशब्द कह जाय
उसके कहे अपशब्द ऐसे कटु
सुनने वाले घृणा से भर जाय ।।65।।

धन्यवाद के पात्र हैं निंदक
निंदा करना हैं उनका व्यवहार
जिव्हा से दूसरों के दोष दूर करे
दुसरो का हो जाता हैं उपकार ।।66।।

जब बाबा को यह ज्ञात हुआ
वे कहे उसे यह बात लो जान
विष्ठा खाते उस सुकर को देखो
तुम्हारा आचरण हैं उसी समान ।।67।।

अनेक शुभ कर्मों के फल ये
जो तुम्हे मानव तन मिल पाय
ऐसा आचरण अगर रखोगे तुम
शिर्डी कैसे सहायता कर पाय ।।68।।

परिश्रम तुम करते रहो
आलस्य का करो त्याग
उन्नति तुम्हारी हो जायेगी
मिलेगा परिश्रम का लाभ ।।69।।

भक्त जब अनन्य भाव से
साँई की शरण मे आ जाय
जैसे किसी सागर में लहर हो
भक्त खुद को साँई से जुड़ा पाय ।।70।।

कहते किसी को साँई बाबा
करो भगवत लीलाये श्रवण
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम ज्ञानेश्वरी का पठन ।।71।।

किसी को साँई जी कहते
करो तुम भगवत्पादपूजन
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम गीता का अध्ययन ।।72।।

किसी को कहे साँई बाबा
तुम विष्णु सहस्रनाम जपो
किसी को खंडोबा मंदिर भेजे
किसी को कहे मेरे पास ही रहो ।।73।।

किसी को प्रत्यक्ष उपदेश वे देते
किसी के स्वप्न में वे दृष्टांत दे जाये
एक मदिरा सेवी के स्वप्न में आकर
मद्यपान त्याग की शपथ खिलवाये ।।74।।

किसी को मंत्र का अर्थ
साँई स्वप्न में ही समझाय
कुछ हठयोगी को वे राय दे
हठ छोड़कर धैर्य रखा जाय ।।75।।

राधाकृष्णमाई के घर समीप
एक दिन साँई बाबा जी आये
वे भक्त से सीढ़ी लाने को कहे
साँई आज्ञा मान वह सीढ़ी लाये ।।76।।

वामन के घर सीढ़ी लगाई
साँई उनके घर पर चढ़ जाये
राधामाई के छप्पर से होकर
साँई दूसरे छोर से उतर आये ।।77।।

इसका अर्थ कोई न समझे
कैसी लीला किये बाबा साँई
ज्वर दूर करने साँई लीला रचे
तब ज्वर से पीड़ित थी राधामाई ।।78।।

जो भक्त सीढ़ी था लाया
साँई से दो रूपये वह पाय
यह अधिक पारिश्रमिक क्यो
अन्य भक्त साँई से पूछे जाय ।।79।।

परिश्रम का पूर्ण मूल्य दो
भक्त को ऐसा साँई समझाये
जो पूर्ण लगन से परिश्रम करें
उदारता से भुगतान किया जाये ।।80।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
इसमें साँई लीलाओं का समावेश
इस अध्याय का पठन मनन करके
अपनाएंगे साँई बाबा के दिये उपदेश ।।81।।

अगर कुछ त्रुटि हुई मुझसे
बाबा आप मुझे माफ़ करो
आप ही तो आराध्य देव हैं
बाबा सदा आप साथ रहो ।।82।।

तुझसे कहना चाह रहा साँई
'गौरव' अपने मन की ये बात
सब पर तु कृपा बरसा दे साँई
और सदा रहना तू सबके साथ ।।83।।

।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।

Saturday, August 8, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य सार:- अध्याय 16 व 17

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 16व17* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

श्री साँई की लेकर आज्ञा व
करके साँई चरणों का ध्यान
इस काव्य को हम आगे बढ़ाये
कि साँई समझाए क्या हैं ब्रह्मज्ञान ।।1।।

प्रेम व भक्ति से अर्पण की वस्तु
साँई कर लेते सहर्ष ही स्वीकार
भेंट की वस्तु साँई अस्वीकार करते
जब वह भेंट की जाती रख अहंकार ।।2।।

एक धनाढय व्यक्ति आये शिर्डी
रख ब्रह्मज्ञान प्राप्ति की इच्छा
आओ अब हम पठन कर ले
बाबा ने दी उन्हें क्या शिक्षा ।।3।।

सब प्रकार से सम्पन्न एक धनी व्यक्ति
सुने जब वह बाबा की कीर्ति व गुणगान
मित्र से कहे कोई अभिलाषा शेष नही
शिर्डी जाकर लूँ बाबा से मैं ब्रह्मज्ञान ।।4।।

मित्र कहे मोहग्रस्त प्राणी हो तुम
न किये भूल से भी कभी तुम दान
स्त्री,संतान,द्रव्य में मन हैं तुम्हारा
भला कैसे मिलेगा तुमको ब्रह्मज्ञान ।।5।।

मित्र के परामर्श की कर उपेक्षा
धनाढय व्यक्ति शिर्डी को आये
साँई बाबा के दर्शन करके वह
श्री साँई चरणों में गिर जाये ।।6।।

प्रार्थना करने लगे वह साँई से
मुझे ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हो जाय
राह में जो कष्ट उठाया हैं मैंने
वह सार्थक व सफल कहलाय ।।7।।

बाबा बोले- न हो तुम अधीर इतने
शीघ्र ही मिल जाएगा तुम्हे ब्रह्मज्ञान
बिरले ही यहां ब्रह्मज्ञान को हैं आते
बाकि तो आते मिले धन, पद व मान ।।8।।

ऐसा कहकर बाबा उससे
उसको अपने पास बैठाय
कुछ देर वे अपना प्रश्न भूले
साँई उन्हें अन्य चर्चा में लगाय ।।9।।

बुलाकर एक बालक को साँई जी
नन्दू के यहाँ से पाँच रूपये मंगवाये
नन्दू मारवाड़ी के घर तो ताला लगा
बालक आकर साँई को ऐसा बतलाय ।।10।।

साँई दूसरे व्यापारी के यहाँ भेजे उसे
वहाँ से असफल हो वह वापस आय
कही रूपये ना मिले उस बालक को
यह प्रयोग साँई दो-तीन बार दोहराय ।।11।।

बाबा सगुण ब्रह्म अवतार हैं
नन्दू घर पर नही,था उन्हें ज्ञात
राशि की उन्हें आवश्यकता नही
यह नाटक रचा धनाढय के परीक्षार्थ ।।12।।

ब्रह्मजिज्ञासु वह धनाढय व्यक्ति
रखे हुए थे नोटों की गड्डी अनेक
सचमुच वे ब्रह्मज्ञान आकांक्षी होते
तो शांत न बैठे रहते यह सब देख ।।13।।

धनाढय व्यक्ति दर्शक बने रहे
जब बालक यहाँ वहाँ दौड़ा जाय
भला ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कैसे होगी
जब अल्प राशि भी उनसे ना दी जाय ।।14।।

अधीर होकर वह बाबा से बोले
कराओ मुझे शीघ्र ब्रह्मज्ञान दर्शन
बाबा कहे क्या तुम्हे समझ न आया
ब्रह्म दर्शन कराने का ही था यह प्रयत्न ।।15।।

पाँच वस्तुओं का त्याग करो
अगर करना हो ब्रह्म का दर्शन
ये हैं पाँच प्राण,पाँच इन्द्रियाँ
बुद्धि, अहंकार तथा मन ।।16।।

बाबा जी उस धनाढय व्यक्ति को
विस्तार से इस विषय पर समझाय
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति अगर करनी हो
तो होनी आवश्यक हैं कुछ योग्यताएं ।।17।।

मुक्ति की उत्कंठा व विरक्ति भाव रखे
सत्यवादी बन उचित आचरण अपनाय
व आत्म-दर्शन कर दृष्टि अंतमुर्खी बने 
दुष्टता त्याग कर पाप से शुद्धि हो जाय ।।18।।

सारवस्तु ग्रहण करें तथा
आसक्तियो को न अपनाए
आत्मज्ञान स्वप्रयत्न से न मिले
गुरूकृपा से सहज प्राप्त हो जाय ।।19।।

उसके चित्त की हो जाये शुद्धि
जो मनुष्य करते हैं कर्म निष्काम
इन्द्रियाँ रूपी घोड़े नियंत्रण में होये
व वश में आ जाये मन रूपी लगाम ।।20।।

ईश-कृपा होने से ही
यह ज्ञान प्राप्त हो पाये
विवेक तथा वैराग्य देकर
भगवान तब मिल जाये ।।21।।

यह उपदेश जब हुआ समाप्त 
बाबा बोले अच्छा महाशय सुनिये
पाँच के पचास गुने रूपये जेब में
कृपया करके उन्हें आप निकालिये ।।22।।

गड्डी बाहर निकाल जब उसने गिने
निकले नोट वे दस-दस के पच्चीस
बाबा की सर्वज्ञता देखकर वह व्यक्ति
बाबा के चरणों में झुकाये अपना शीश ।।23।।

बाबा बोले तब उस व्यक्ति से
अपने द्रव्य को तुम लो समेट
बिना लोभ व ईर्ष्या को त्यागे
कैसे होगी ब्रह्म से तुम्हारी भेंट ।।24।।

धन, संतान तथा ऐश्वर्य में
लगा हुआ हो जिसका मन
आसक्तियों को त्यागे बिना
कैसे हो पाए ब्रह्मज्ञान दर्शन ।।25।।

जहाँ लोभ हैं वहाँ ब्रह्म नही हैं
समझ ले हम यह ज्ञान की बात
तुलसीदास जी भी हमें समझाते
रात्रि व सूर्य नही होते एक साथ ।।26।।

कण मात्र भी लोभ गर मन में रहा
समझिए व्यर्थ ही हैं सब साधनाएं
आत्मानुभूति प्राप्ति में होंगे सफल
जब फल प्राप्ति की न हो इच्छायें ।।27।।

अहंकार को बिना त्यागे
कैसे गुरू-शिक्षा मिल पाय
मन का पवित्र होना हैं जरूरी
साधनाओ का महत्त्व बढ़ जाय ।।28।।

साँई कहे-असत्य बोलता नहीं
मैं यहाँ द्वारकामाई में बैठकर
मेरा खजाना तो पूर्ण हैं परन्तु
मैं पूर्ति करता योग्यता देखकर ।।29।।

अतिथि को जब निमंत्रण मिले
परिवार भी संग में भोजन पाय
धनाढय संग अन्य भक्तो को भी
बाबा का यह ज्ञान भोज मिल जाय ।।30।।

साँई का आशीर्वाद प्राप्त कर
धनी संग सभी हर्षित हो जाय
बाबा को प्रणाम करके सभी
अपने अपने घर को लौट जाय ।।31।।

स्त्री,संतान,घर-द्वार कुछ भी नही
भिक्षा ले साँई करे नीम नीचे वास
संसार मे रह कैसे आचरण करें हम
यह साँई से शिक्षा ले बन उनके दास ।।32।।

माता पिता, कुटुंब व देश धन्य हैं
जहाँ जन्म लिये साँई शिर्डी के संत
साँईबाबा आसाधारण परम् श्रेष्ठ हैं
कहे साँई सच्चरित्र रचयिता हेमाडपंत ।।33।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
कुछ भूल हुई हैं तो साँई करे क्षमा
'गौरव' करे साँई से यह अरदास कि
साँई सबका ख्याल रखे जैसे रखे माँ ।।34।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Thursday, August 6, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप:- अध्याय 15

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 15* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

लंबा अंगरखा सिर पर फेंटा पहने
बाँध साफा दासगणु कीर्तन को जाय
साँई कहे नारद मुनि जैसे कीर्तन करो
क्यों दासगणु तुम ऐसा रूप सजाय ।।1।।

हाथ में वीणा ले ज्यो नारद जी
प्रसन्न मन से हरि कीर्तन को जाय
दासगणु महाराज गले मे पहन हार
साँई कीर्तन करते हुए करताल बजाय ।।2।।

बाबा की कीर्ति चहुँ ओर पहुँचे
इसका श्रेय दासगणु को हैं जाय
क्योंकि दासगणु का कीर्तन सुनकर
भक्तो के मन मे श्रद्धा उमड़ी आय ।।3।।

एक समय दासगणु कीर्तन करें व
सुने चोलकर, कर्मचारी थे अस्थायी
मन में कहे कि गर मैं उत्तीर्ण हुआ तो
तव दर्शन कर मिश्री प्रसाद बाटूंगा साँई ।।4।।

बाबा ने चोलकर के मन की सुनी
विभागीय परीक्षा में हुए वे उत्तीर्ण
नौकरी चोलकर की स्थायी हो गयी
उस निर्धन के दुख होने लगे अब क्षीण ।।5।।

निर्धन चोलकर का था कुटुंब बड़ा
सोचे खर्च घटा मितव्ययी बन जाये
नाठे घाट,सहाद्रि पार करना आसान
गरीब उम्बर घाट को कैसे पार कर पाये ।।6।।

संकल्प को लेकर उत्सुक चोलकर
पीने लगे वो बिना शक्कर की चाय
इस तरह कुछ द्रव्य एकत्र हुआ
चोलकर प्रसन्न हो शिर्डी को जाय ।।7।।

बाबा के दर्शन कर चरणों मे गिरे
बाबा को मिश्री का प्रसाद चढाये
कहने लगे दर्शन कर हुआ मैं प्रसन्न
आपकी कृपा से पूरी हुई सब इच्छाये ।।8।।

बाबा कहने लगे बापूसाहेब जोग से
पिलाओ इन्हें ज्यादा शक्कर की चाय
यह सुन चोलकर का ह्रदय भर आया
प्रेम से बहने लगी नेत्रों से अश्रु धाराएं ।।9।।

सदैव बाबा अपने भक्तो के साथ रहेंगे
गर श्रद्धा से उनके सामने हाथ फैलाये
शरीर से शिर्डी में होकर भी साँई जी को
ज्ञात हैं सात समुद्र पार की भी घटनाएं ।।10।।

साँई सभी प्राणियों के ह्रदय में बसे
ह्रदय में बसे साँई की पूजा की जाय
साँई के सर्वव्यापी स्वरूप को जो जाने
वह सौभाग्यशाली और धन्य हो जाय।।11।।

बाबा द्वारकामाई में बैठे हुए
छिपकली चिकचिक करती जाय
एक भक्त पूछे इसका अर्थ बाबा से
तब साँई इसका अर्थ सबको समझाये ।।12।।

औरंगाबाद से इसकी बहन
मिलने इससे आज यहाँ आय
इसलिए यह चिकचिक कर रही
क्योंकि प्रसन्नता से फूली न समाय ।।13।।

एक आदमी आया साँई दर्शन को
औरंगाबाद से हो घोड़े पर सवार
भूखे घोड़े को चना खिलाने को
झोली की धूल दी उसने झटकार ।।14।।

झोली में से एक छिपकली निकले
देखते देखते वह दीवार पर चढ़ जाय
बाबा अपने भक्त से कहे ध्यान से देखो
छिपकली बहन से मिल खुश हो जाय ।।15।।

दोनों बहनें एक दूसरे से मिली
व घूम घूमकर वे लगी नाचने
बाबा साँई तो सर्वव्यापक हैं
साँई सब कुछ ही तो जाने ।।16।।

साँईकृपा से समस्त कष्ट दूर होते
जो पठन मनन करते यह अध्याय
बाबा से हम जोड़ प्रार्थना हैं करते
सभी पर साँई अपनी कृपा बरसाय ।।17।।

बाबा सब लोगो पर कृपा करें
'गौरव' की बाबा से यह अरदास
इस जग में कोई भी दुखी न रहें
करे साँई सबके मन मे निवास ।।18।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Tuesday, January 14, 2020

साँई आपसे ही हैं ये जीवन

मैं इक अँधा बन्दा हूँ आपका
साँई दिखाओ मुझे सही राह
और नही चाह जीवन में कुछ
बस आपकी लीलाएँ देखूँ अथाह

बाबा साँई तू है अथाह सागर
मैं हूँ नदियाँ की अल्हड़ धारा
आखिर में तुझमे ही आ मिलता
भला तेरे बिन कहाँ जाये ये बेचारा

बेचारा लाचार सा था मैं तब तक
साँई जब तक ना तुझसे था मिला
तुझसे मिल जिंदगी मेरी बन गयी
साँई अब इस जिंदगी से न कोई गिला

बिन माँगे तू सब कुछ दे देता
सबकी झोलियाँ तू देता हैं भर
हमारे चेहरे पर मुस्कान हैं रहती
ऐसा हैं साँई तेरी संगत का असर

साँई चरणों मे अर्पण ये अश्रु

वो भीतर कहि छुपा छुपा सा इक आँसू
जो है मेरे हर सुख हर दुःख में मेरा मीत
आँसू नही वो है दिल में बसी ओस की बूँद
अब ये कीमती चीज साँई चरणों में समर्पित

बाबा साँई.....तुम सब कुछ मेरे

बाबा साँई तुम..... तुम सब कुछ हो मेरे
तुम सर्दी में खिली धूप हो
तुम मन में बसा सुंदर स्वरूप् हो
तुम इंतजार की राहत हो
बाबा तुम मेरी चाहत हो
मैं माँगता तुम वो दुआ हो
तुम मुझे रोशन करता दिया हो
मेरी निगाहो की तुम तलाश हो
बाबा तुम मेरी जमीन का आकाश हो
बाबा तुम मेरे मन में बसा प्यार हो
तुम मेरी आँखों से दिखता संसार हो
तुम मेरे चेहरे पर खिली मुस्कान हो
बाबा तुम ही चारो जग की शान हो

लिखने को तो है बहुत कुछ कि बाबा तुम क्या हो
पर चन्द लफ़्ज में कहूँ अगर मैं कि
बाबा तुम क्या हो ..... तो

बाबा साँई तुम सर्व गुणों की खान हो
इस जग में बाबा तुम सबसे महान् हो ।