Tuesday, April 7, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

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बहुत से लोग अपने भाग्य में परिवर्तन करने के लिए अपना नाम किसी न किसी रूप में बदल लेते हैं या अक्षरों में बदलाव कर लेते हैं पर क्या ऐसा करने से हम भाग्य के लिखे लेख को बदल सकते हैं। अपना भाग्य बदलने के लिए मनुष्य चाहे जितना प्रयत्न कर लें लेकिन विधि के विधान को बदला नहीं जा सकता। ब्रह्मा जी ने भी जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने भी सुख के अवरण में दुख को भेजा।

ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से एक कन्या उत्पन्न की जिसका नाम उन्होंने आह रखा। आह का अर्थ होता है हाय, दुख, शोक। उसको उन्होंने तीनों लोकों का भ्रमण करने के लिए भेजा और कहा तू जिसको चाहे उसके साथ विवाह कर ले। वह कन्या तीनों लोकों में घुम आई मगर उसे किसे ने अपनी पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। वह जिस भी व्यक्ति के समीप जाने का प्रयास करती वह उसे दूर भागने लगता। संसार का कोई भी ऐसा पुरूष नहीं है जो हाय, दुख, शोक रूपी कन्या को अपनी पत्नि बनाना चाहेगा।

वह हताश और बेबस होकर अपने पिता ब्रह्मा जी के पास वापिस लौट आई। अपनी बेटी से सारा वृतांत जान ब्रह्मा जी ने उसका नाम आह से बदल कर चाह रख दिया। चाह का अर्थ होता है इच्छा, आकांक्षा, अभिलाषा, वासना। उन्होंने उसे पुन: तीनों लोको का भ्रमण करने के लिए भेजा और अपने लिए पति ढूढने के लिए कहा। अब परिस्थिति बिल्कुल विपरित थी अब पुरूष उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए उसके आगे- पीछे चक्कर लगाने लगे।

ब्रह्मा जी ने उसका नाम बदल कर चाह तो रख दिया लेकिन अंदर से आज भी वो वही आह है। जो सभी दुखों का कारण है उसी तरह यह संसार भी एक आह है। दिखने में संसार बहुत अच्छा लगता है मगर इसके अंदर वही दुख और संताप है जो ब्रह्मा जी ने बनाएं हैं इसलिए सुख की चाह करने वाले उसके अंदर में छुपे दुख को समझें।

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