Thursday, December 12, 2019

जो भी होगा अच्छा होगा

तेरे चाहने से होता नही कुछ भी
वही होगा जो किस्मत में लिखा होगा
गिड़गिड़ा कर रो कर देख ले
फिर भी होगा वही जो होना होगा
तू कर समझौता और देख मुस्कुरा कर
फिर दुखों का दर्द जरूर कुछ कम होगा
खुशी-गम चाहे हो सुख-दुःख
सब साँई की इच्छा से होगा
जीवन बिता पर ये याद भी रख
साँई की इच्छा में कभी तेरा बुरा ना होगा
दुःख या सुख जो भी मिले तुझे
इसमे जरूर कुछ भला ही होगा ।।

Wednesday, October 30, 2019

शिर्डी की सैर

*शिर्डी की सैर*

आइये शिर्डी की सैर करते हैं.... शिर्डी में हर उन स्थान की जिनसे हम भली भाँति परिचित हैं :-

।। *बाबा साँई का समाधि मन्दिर* ।।

श्रीमंत बूटी वाडा कहते थे जिसे लोग
वो था पहले बाबा का बनाया बगीचा
आज वहाँ बाबा का समाधि मन्दिर हैं
जहां साँई मुरलीधर बन दे रहे शिक्षा ।।

।। *बाबा साँई की द्वारकामाई* ।।

जीर्ण शीर्ण मस्जिद थी शिर्डी में इक
जिसे साँई ने नाम दिया द्वारकामाई
हिन्दू मुस्लिम सब जन आते वहाँ पर
वहाँ बैठ साँई ने सबकी किस्मत बनाई

।। *बाबा साँई की चावड़ी* ।।

चावड़ी था बाबा साँई का न्यायालय
जहाँ साँई सोचते कि सबको मिले न्याय
और सब कर्म योग को समझे भली भाँति
कि कर्म ही है जीवन का असली अध्याय

।। *बाबा साँई का गुरूस्थान* ।।

नीम तले साँई ने की तपस्या
वो है बाबा साँई का गुरूस्थान
जहाँ जाकर कोई साँई को ध्याता
उसे होती सबमे साँई की पहचान

।। *बाबा साँई का लेंडी बाग़* ।।

लेंडी बाग़ है फूलो का इक बगीचा
जहाँ रोज साँई जाते थे करने सैर
वहाँ के खिले फूल देते हमे शिक्षा
कि खिले रहो, न करो किसी से बैर

Monday, October 28, 2019

साँई मिलन

*साँई मिलन*

नाम तेरा जुबाँ पर रहे सदा
और तेरा नाम लेती रहे साँस
सबकी मन मुरादे पूरी हो जाये
बस साँई तुझसे इतनी अरदास

साँई संग जुड़े रहे तो
कहलाओगे तुम अमूल्य
साँई से दूरी गर बनी ली
तो समझो तुम हो शून्य

साँई दर्शन की प्यास जगी
जाने कब से हूँ यूँ मैं प्यासा
कोई तो जाके साँई को बता दे
रिझाऊँ मैं उन्हें किस भाषा 

साँई तुझे मैं इधर उधर ढूंढू
लगता न जाने कितनी हैं दूरी
मैं हूँ बिल्कुल उस मृग समान
जो मृग ढूंढे इधर उधर कस्तूरी

साँई से मिलन का करो इंतजार
क्योंकि सब्र का फल होता मीठा
राम मिलन भी कहाँ हुआ जल्दी
कितने समय प्रतीक्षा की माँ सीता

साँई जब तुमसे मिलन हो
वक्त सदा के लिये ठहर जाए
बस इतनी सी मेरी आरजू हैं
ये मन की तमन्ना पूरी हो जाये

भूखे को भोजन दो
होगा साँई से मिलन
नर में ही नारायण हैं
सब मे करो साँई दर्शन

Wednesday, October 23, 2019

बाबा साँई के दोहे

*बाबा साँई के दोहे*

जाते घर घर माँगने साँई हमारे भिक्षा
बदले में दे देते वे श्रद्धा सबुरी की शिक्षा

जीर्ण शीर्ण मस्जिद को
दिया बनाय द्वारकामाई
सीढ़ी चढ़े तो दुख मिटे
ऐसा कहते हैं बाबा साँई

द्वारकामाई में धूनी जले
करे समस्त पापों का अंत
धूनी की उदी जो लगा ले
कृपा करे उस पर साँई संत

जल से दीप जल गए
पानी बन गया तेल
खारा जल मीठा हुआ
सब साँई के खेल ।।

नीम वृक्ष को पावन किया
करके साँई ने गुरू-ध्यान
कड़वे पत्ते मीठे हो गए
बिल्कुल शहद समान

साँई सच्चरित्र जो पढ़े
प्रश्नों के हल मिल जाय
साँई सच्चरित्र हैं वो ग्रँथ
जिसमें साँई के दर्शन पाय

साँई साँई जपते रहने से
साँई स्वयम ही मिल जाय
भूखों को जो भोजन दे दे
उनमें साँई जी ही को पाय

नर में नारायण जो देखे
उस पर साँई कृपा हो जाय
दुःखो में भी जो सुखी रहे
वही तो साधु संत कहलाय ।।

Sunday, October 20, 2019

राह साँई की

*राह साँई की*

ठान लिया अब मन में मैंने
कि जिंदगी गुजारनी नेकी में
साँई का वास हो हर जन में और
साँई दर्श करूँ हर साँई प्रेमी मे

साँई प्रेमी मिल जाते जहाँ
होता बस साँई तेरा गुणगान
साँई बातों से मन खिल जाता
रहता बस साँई का ही ध्यान ।

तेरा ही ध्यान रहे मुझे
और भूल बैठूं मैं ये जग
ऐसी लीला तू रच दे ना
साँई तू आराध्य तू ही रब

लीला तेरी कुछ होती ऐसी
कि पंगु भी चढ़ जाते हैं पर्वत
मुझे भी लीला तेरी दिखा साँई
तेरा नाम जपता रहता मैं हर वक्त

हर वक्त तेरा ही ध्यान रहता
साँई ऐसा क्या हैं जादू तुझमें
तेरी ही बातें होती हैं मेरी सबसे
परेशान हो भी रहता मैं सुख में

सुख में जीवन गुजर रहा हैं
क्योंकि इस जीवन में बसा तू
अब बस इस गुजारिश तुझसे
साँई आकर हो ले मुझसे रूबरू

रूबरू तू हो ले आकर साँई
ये जिंदगी मेरी जाएगी संवर
गर तू नही होता इस जीवन में
तो जीवन हो गया था जर्जर ।।

संवारता हैं साँई किस्मत उनकी
जो पीते श्रद्धा सबुरी का प्याला
साँई चरणों को शरण बना लो
खुल जायेगा खुशियों का ताला ।।

Monday, October 14, 2019

व्यवहार परिवर्तन क्यों ?

कई बार हमारे मन मे प्रश्न आता होगा कि - " जब हम साँई भक्त आपस मे मिलते हैं तो हमारा व्यवहार बहुत उत्साहपूर्ण रहता हैं, परन्तु जब हम अन्य लोगो से मिलते हैं जो कि आस्तिक नही होते या भगवान में इतनी आस्था नही रखते तो हमारा व्यवहार परिवर्तन क्यो होता हैं ! व्यवहार एक समान क्यो नही रहता ? "

उत्तर- मेरा मत हैं कि :-

Physics में एक word आता हैं- Frequency (आवृति), और जब Frequency Same हो जाती है तो होता हैं Resonance (अनुनाद) । सरल शब्दों में कहूँ तो जब frequency match हो जाती हैं तो Stability आती हैं । ऐसा ही हैं जीवन के साथ, जीवन मे भला Stability किसे नही चाहिए ।

अब आते हैं प्रश्न पर, तो जब हम साँई भक्त से मिले तो चूंकि वो भी साँई भक्त हैं तो जाहिर हैं हमारे विचारों में कुछ मेल तो होगा तभी हम आपस मे साँई भक्त हैं, हमारे आराध्य एक हैं (बाबा) तो यहाँ हमारी Frequency match हुई तो अनुनाद होना ही हैं अर्थात Stability ,तो हम सभी को Stability चाहिए अर्थात सुख शांति सुकून ।
और इसलिये हमारा व्यवहार साँई भक्त प्रति, अत्यंत लगाव वाला होता हैं परन्तु भगवान को न मानने वाले इंसान के प्रति व्यवहार बदल जाता हैं , उसका कारण हैं कि Frequency complete opposite तो Stability just opposite ,

जिस तरह हम घर मे अपने घरवालों के प्रति लगाव रखते हैं, अच्छा व्यवहार रखते हैं, परन्तु बाहरी व्यक्ति के प्रति हमारा लगाव नही रहता क्योकि हम उसको अपना नही मानते, अपने परिवार को अपना मानते हैं । इसी तरह साँई भक्त को हम एक परिवार मानते हैं, ऐसा परिवार जिसमें सभी साँई भक्त की डोर हमारे बाबा के हाथों में हैं, इसलिए ऐसा होता हैं ।

अब प्रश्न ये उठता हैं कि व्यवहार साँई भक्त व बिना साँई भक्त दोनों के प्रति समान क्यो नही हो सकता ???

तो उत्तर ये हैं कि जिस तरह फलों का राजा केवल एक ही होता हैं, पुष्पो में जैसे केवल एक ही पुष्प श्रेष्ठ होता हैं 
उसी तरह मानवों में भी जो श्रेष्ठ होता हैं, वो ही साधु -संत (सज्जन) कहलाता हैं,

इसलिये जिस मनुष्य ने सभी इंसानों प्रति समान आचरण रख लिया, चाहे कोई उस मनुष्य की निंदा करे या प्रशंसा , फिर भी सबके लिये आचरण समान रखते हुए विनम्र भाव अपनाया तो वह मनुष्य श्रेष्ठ कहलाते हुए साधु-संतों की श्रेणी में आ जाता हैं । और श्रेष्ठ का महत्ता तब रहती हैं जब वह संख्या में कम हो तभी तो वह श्रेष्ठ हैं ।

सौ वर्ष पूर्व साँई सम्मुख

बाबा इतनी सी कृपा कर दो आप
कि मिल जाये मुझे जादू की छड़
सौ वर्ष पूर्व मैं पहुँचूँ आपकी नगरी
लगाके अपने सुंदर ख्यालो को पर
आपके साक्षात् दर्शन नित नित पाऊँ
आपके चरण कमलो को मैं दबाऊँ
आपके दर्शन करके न थके मेरी अँखियाँ
आपकी द्वारकामाई में जलाऊँ हर रोज दिया
आपकी लीला को मैं सामने साक्षात् देखूँ
आपके बखान में हर घड़ी काव्य कृति लिखूँ
आपके सुंदर अमृत वचनो का पान करूँ
आपकी रहमत अपनी फ़टी झोली में भरूँ
मेघा शामा जब करे तव प्रति भक्ति अटूट
मैं भी सीखूं उनसे लेकर भक्ति की इक बूंद
देखूँ आपको करते हुए कोढ़ी भागोजी की सेवा
मैं भी सेवा को समझूँ देखकर आपको हे देवा
जब मेरे घर आप मुझसे लेने आये भिक्षा
ग्रहण कर लूँ मैं आपसे श्रद्धा सबूरी की शिक्षा
जब विश्राम करने चावड़ी जाते आप निकले
आपको देख मेरे मन की युगो की मैल धुले
आपके सानिध्य में मैं मेरा जीवन बिता दूँ
करते करते आपकी सेवा हे फकीर हे साधु
पर कभी आपकी देह त्याग वाला दिन न आये
इक पल भी आप हमसे ओझल न हो पाये
मानव शरीर में रहे आप तब तक हे सच्चिदानन्द
जब तक ये दुनिया रहे और रहे ये ब्रह्मण्ड
मेरी आखिरी साँस तक साँई नाम की माला फेरूँ
आपके ही श्री चरणों में उड़ जाये मेरे प्राण पखेरूं
फिर से कुछ सालो में मुझे मानव जन्म मिल जाये
दिन साल बढ़ते बढ़ते ये वर्तमान समय भी आये
शिर्डी में आपके दर्शन पाने को लगे भक्तो का ताँता
मानव देह में रहते हुए ही आप बने सबके विधाता
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श्री साँई महासमाधि

बाबा ने जब देह त्यागी
तब समय था बड़ा भारी
भक्तो का कल्याण कर गए
मानव देह में हमारे साँई मुरारी
जब बाबा ने देह अपनी त्यागी
तब दशो दिशाएं चित्कार करने लगी
बाबा नही अब शरीर में ये सब देख
बाबा के बच्चों की आँखे बहने लगी
बाबा की परम् आत्मा परमात्मा में हुई लीन
बाबा को देह में न पाकर हर जन हुआ गमगीन
तब उस दिन बाबा मामा जोशी के सपने में आये
और मामा जोशी को मधुर वचन सुनाये-
"" मुझे तुम रे बन्दे मृत न मानो
देह त्यागी है मैंने जीवन नियम को
जीवन नियम की सत्यता जानो
मैं सदा जीवित हूँ सबके अंतर्मन में
पहचान करो मेरी तुम हर जन में
अब सुबह उठ तुम मस्जिद को जाओ
और जाकर मेरी काकड़ आरती गाओ
पूजन कीर्तन का क्रम नही टूटेगा
बात मानो तुम अपने प्यारे साँई की
मुरलीधर ही बन गया हूँ अब मैं और
बूटा वाड़ी में समाधि बनेगी सर्व सहाई की"

तब से ही समाधि मन्दिर बन गया
सब साँई प्यारे भक्तो की शरण
साँई को सदा जीवित है मानते वो
जो साँई को देखे अपने मन ।।
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