Saturday, April 11, 2015

साई मेरा जीवन

श्री साई नाम अति सुखदाई
पीड़ा हरती उनकी द्वारकामाई
द्वारकामाई में बैठे साई देखे चहुँ ओर
उनके दर्शन मात्र से हो जाती जीवन में ठौर
ठौर ठिकाना न था कोई भी मेरा
साई दर हो गया मुझ अदने का बसेरा

अदना सा बन्दा हूँ मैं तो
हर पल साई साई जपता हूँ
दुनियादारी से क्या लेना मुझे
साई को ही दुनिया समझता हूँ

समझ न मेरे मन को सही गलत की
नित नित गलती करता है
मेरा साई है इतना परम् दयालु
कि हर गलती क्षमा कर अपनाता है

अपनाया है मुझको उस फकीर ने
जो सबको अपना बनाता है
इस भव ने तो बैरी किया मुझको
वो फकीर ही है जो चुपके से
मेरे मन को निर्मल कर मन में नजर आता है
नजर उसकी इतनी मनमोहक
कि बड़ी करुणा बरसाती है
जो उसकी नजरो से नजर मिलाये
नजर ही नजर में उसकी मनमोहक
नजर बड़ा प्यार लुटाती है
ऐसी मनमोहक नजर वाली साई माँ को
मेरी नजर की कहि नजर न लग जाये
इसलिए ये नजरे नजर न मिला पाती है

जब से की ओ शिर्डीवाले
तूने नजर ही नजर में बात
परमानन्द से लबरेज हुआ मैं
मिल गया मुझे तेरा जन्मों का साथ

साथ है अपना जन्म जन्मों का
फिर क्यों हो मुझे कोई फ़िक्र
कठिनाई आये चाहे कितनी भी
करता रहूँगा मैं सदा तेरा शुक्र
जब तक चलती रहेगी ये साँसे
हर साँस पर होगा साई तेरा ही जिक्र

साँसे है ये मेरी ये मैं कैसे कह दू
जबकि इन साँसों में भी तू ही बसता है
रोम रोम मेरा बस साई साई जपता है
साई तू तो मेरा साया है जो संग मेरे चलता है

संग तेरा मैं पाना चाहूँ
तेरे नाम में ही खोना चाहूँ
दे दे मुझे साई इतना आशीष
कि हर क्षण तेरे बखान में बिताना चाहूँ

बखान करता रहूँ मैं तेरा हर क्षण
पावन करके मेरा ये तन मन
जब से साई तुम पधारे मेरे जीवन
सच पूछो तन मन हो गया वृन्दावन

वृन्दावन का कान्हा हो तुम
अयोध्या के रघुपति राम भी
सारे दुःख दर्द दूर भागते हमसे
लेते तुम्हारा अति पावन नाम ही

पुनीत पावन है श्री साई नाम
सबको दो ऐसा आशीष हे भगवान
हिन्दू कहे अल्लाह मुस्लिम कहे राम
तब हमारा मन ही बन जायेगा शिर्डी धाम

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