Friday, April 17, 2015

साई सच्चा साथी

साई- सच्चा साथी

चलते चलते राहो में
हर राहगीर मुझे ऐसा मिला
कुछ दूर तक साथ निभाया
फिर वो भी चल निकला
यही तो जीवन का सच है
इसको मैं था यूह भूला
तन्हा हो गया था मैं
दे रहा खुद के खुद को शिकवा गला
तब ही आँखों में मेरे इक चमक दौड़ी
इक दिव्य आभा लिए
एक राहगीर और मिला
अब तक सबकी ऊँगली मैंने थामी थी
इस राहगीर ने मेरी ऊँगली थामी
पल भी देर लगी समझते मुझे
ये ही है राहगीर जो मुझे सच्चा मिला
मैंने पुछा कौन हो तुम
तो मन्द मुस्कान लिए वो बोला:-
रे प्यारे बच्चे न कर तू आँखों को गीला
मैं तो तेरा सदगुरू बाबा साई ही हूँ
तेरे दुष्कर्मो में तू था अब तक मुझे भूला
ये सुन मैं अश्रुविहिल हुआ
आँखे मेरी नम हुई पर शब्द इक न निकला
तब मुझे कुछ भी न सूझा
तुरन्त साई चरणो में मैं गिर पड़ा
साई ने मुझे उठाया लगाया गले
उन्होंने इक मधुर वचन बोला:-
नेक काज कर तू होगा तेरा भला
तब मुझे इस जीवन पथ का मर्म समझ आया
सदगुरू साई के इक इक शब्द ने
मेरे तन मन जीवन में मधुर रस घोला

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