Sunday, April 19, 2015

वैदिक ज्ञान

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वेद व्यास रचित महाग्रंथों की कथायें कहने वाले
अनेक लोग हैं जो लोगों के बीच जाकर कथित रूप से
धर्म प्रचार करते हैं पर यह उनका धार्मिक अभियान
नहीं बल्कि व्यवसाय होता है। आत्मा और परमात्मा
के भेद को वह बयान जरूर करते हैं पर एक तोते की
तरह, जबकि तत्व ज्ञान को वह धारण नहीं किये
होते। कहने को किसी ने अपनी
पीठ बना ली है पर वह अपने और
परिवार के लिये संपत्ति बनाने के अलावा उनका कोई उद्देश्य
नहीं होता। ऐसे लोगों को सुनना तो चाहिये पर उनका
सुनकर स्वयं अपना ध्यान और मनन कर ज्ञान को धारण करें तो
ठीक रहेगा। उनको गुरु न मानकर अपने स्वाध्याय को
अपना गुरु बनायें।
कोई ढोंगी हो या पाखंडी यह तो समझ में
आ जाता है पर उन पर अधिक विचार न कर हमें अपना ध्यान
अपने इष्ट के स्मरण और ध्यान पर लगाना चाहिये। आत्मिक शांति
के लिये भक्ति मन में होना आवश्यक है और उसका दिखावा करने
का भाव जब हमारे अंदर आता है तो समझ लें कि हमारे किये
कराये पर पानी फिर रहा है। यह एकांत साधना है
और इस पर किसी से अधिक चर्चा करना
ठीक नहीं है। अंदर अपने इष्ट का
ध्यान कर जो आनंद प्राप्त होता है उसकी तो बस
अनुभूति ही की जा सकती
है।
http://drgauravsai.blogspot.com/

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