Thursday, May 21, 2015

साँई हर जगह तुम ही तुम

साँई तुम ही मेरी सृष्टि
बाबा तुम ही मेरी दृष्टि ।
साँई तुम ही मेरे शिव
बाबा तुम ही मेरी नींव ।
साँई तुम ही मेरे गीत
बाबा तुम ही हो संगीत ।
साँई तुम ही मेरी प्रीत
बाबा तुम ही मेरी जीत ।
साँई तुम ही सुरो की सरगम
बाबा तुम ही हो मेरे हमदम ।
साँई तुम ही मातृत्व छाँव
बाबा तुम ही मेरी ठाँव ।
साँई तुम ही मेरा मन
बाबा तुम ही वृन्दावन ।
साँई तुम ही हो काशी
बाबा तुम ही बारह राशि ।
साँई तुम ही कोयल की वाणी
बाबा तुम ही हो गुरुबानी ।
साँई तुम ही हो मेरी कृति
बाबा तुम ही मेरी सत्संगति ।
साँई तुम ही हो विश्वास
बाबा तुम करते सबमे वास ।
साँई तुम ही कृष्ण कन्हैया
बाबा तुम ही सबके बड़े भैया ।
साँई तुम ही रघुपति राम
बाबा तुमको मेरा प्रणाम ।
साँई तुम ही मेरा दर्पण
बाबा तुमको सब अर्पण ।
साँई तुम ही जीवन का हर पल
बाबा तुम ही आज तुम ही कल ।

श्री साई गुरूवर

साँई गुरूवर का आज है दिन
खुशियों की बरसेगी आज रैन
मिलेगी उनको साँई की रहमत
जो पियेगा श्रद्धा सबूरी का अमृत
साँई कराएँगे सबको मातृत्व अहसास
अगर साँई चरणों के बनेंगे हम दास
साँई से जुड़ जायेगी तब स्वत ही प्रीत
मन में गूँज उठेगा साँई नाम का गीत
दूर होगा सभी का हर दुःख हर पीड़ा
चमेकगा मन मस्तिष्क में साँई नाम का हीरा
जिसने बनाया मन को ही शिर्डी गाँव
साँई अपनी कृपा से करेंगे प्रेम रूपी छाँव
जो दौड़ा जायेगा साई पास नन्हे पाँव
साँई कर देंगे पल में उसके जीवन में ठाँव
जो ध्या लेगा अगर साँई का नूर
गम सदा ही रहा करेंगे उससे दूर
साँई से न करनी होगी कोई अरदास
साँई बना लेंगे स्वत ही सबको अपना खास
गरीबो में जो साँई को अगर पायेगा
साँई खुद उसकी किस्मत चमकाएगा
साँई को देगा जो पकड़ा अपना हाथ
साँई निभाएंगे उससे जन्म जन्मों का साथ
तो साँई वार पर करो आरम्भ शुभ काम
करके साँई चरणों में साष्टांग प्रणाम

Tuesday, May 19, 2015

साँई नाम शीतल छाँव

साँई नाम है इक शीतल छाया
साँई नाम से रहती निरोगी काया
साँई का गुणगान जिसने है गाया
श्रद्धा सबूरी का धन उसने है पाया

जीवन बने इक शीतल झरना
अगर मैं समझूँ साँई को अपना
सच हो देखा मेरा हर सुंदर सपना
जब ध्येय रखूँ जीवन में साँई साँई जपना

जब जब मुझे साँई की याद आये
शीतल सी हवा कानो में गुनगुनाये
मन में आनन्द की उमंग छा जाये
श्री साई जी ऐसे मुझ नन्हे के मन भाये

ठंडक मिले जीवन में मुझे
अगर बोलूँ मैं शीतल वचन
सबके हृदय में मिश्री घोलूँ
अगर बनके रहूँ मैं सज्जन

जीवन बने इक शीतल छाँव
अगर साँई चरण बने मेरी ठाँव
पथरीली राहे भी न हानि पहुचाये
चाहे भले ही क्यों न चलूँ मैं नंगे पाँव
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Monday, May 18, 2015

हर साँस साँई साँई पुकारे

हर साँस मेरी साँई साँई पुकारे
इन साँसों के साई ही पालनहारे
कष्टो से मुझे वो इक पल में उबारे
इन साँसों में बसे है साँई बनके प्यारे

साँई नाम है मातृत्व अहसास
साँई साँई पुकारे मेरी हर साँस
सांसों की साँई से इतनी अरदास
हर साँस पर हो मुझे साँई का आभास

साँसों का साँई से लगता है पुराना नाता
कि हर साँस पर साँई ही याद आते है
साँसों का मनका भी साँई साँई गाता
कि हर मनके में साँई ही आकर बसते है

साँई चरणों में मैं होकर नतमस्तक
साँई से करूँ गुजारिश कुछ इस कदर
कि साँई मेरे दिल में दे सदा के लिए दस्तक
इस पल से मेरे जीवन की अंतिम साँस तक
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Sunday, May 17, 2015

शब्दों में साँई तुम बसे

अपने साँई की बात ऐसी निराली
जैसे सुंदर व्यंजनों से सजी हो थाली
दूर तक व्यंजनों की है महक उठे
वैसे ही साँई शान में नए नए शब्द गढे

हर शब्द में मैंने अपनी जान फूंकी है
अब तो रहम करो साँई दिल बड़ा दुखी है
ये शब्द नही आपको अर्पित फूल है
मुझ नन्हे की सुनो जो आपकी चरण धूल है

श्री साँई कृपा सब पर ऐसे बरसे
कि सबके मुख पर हो साई के चर्चे
लिखा हर शब्द साँई नाम से है निखरे
इन शब्दों में साँई आकर साक्षात् बसे
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साँई दर्श

साँई स्वीकार करो ये स्नेह भरी चरण स्पर्श
ताकि ये चंचल मन पाये अत्यंत हर्ष
संग जो हो जाये आपके मनभावन दृश्
गुणगान कर चहुँ ओर पहुचाउ आपका यश

साईं दर्श की चाह रख कर रहा मैं अरदास
सफल हो मेरा नेक काम में किया प्रयास
साँई साँई सुमिरन करे मेरी ये हर साँस
ताकि जीवन चहके जो था अब तक उदास

इंतजार ख़ुशी का करना नही होगा
खुशियाँ चल आएगी खुद अपने आँगन
क्योकि साँई का हमने साथ माँग लिया
तो बरसेगा अब सब पर साई कृपा का सावन

दर्शन देने आये जब बाबा साँई
देखके उनको ये आँखे भर आई
जो भी मन में पली थी दुविधा मेरे
बाबा साँई ने इक पल में दूर है हटाई

प्यास जन्म जन्मों की है साँई मिलन की
किसी जन्म में तो मोहे साँई मिलेंगे
प्यास बुझाएंगे मेरी जन्म जन्मों की
तब चिंता न रहेगी मुझे जीवन मरण की

Sunday, May 10, 2015

जब बना मैं श्री साई चरण की धूल ,पथरीली राह में खिले सुंदर फूल

चला मैं पथरीली राहो पर
कंकड़ कांटे चुभे पाँव में
लहू लाल मेरा बह निकला
मेरे पापो का भरा घड़ा बहा
हुई मुझे ह्रदय विदारक वेदना
तब समझी मैंने अंतर्मन की चेतना
साँई को साक्षी मान ली मैंने शपथ
त्यागूँगा अभी ही सारे झूठ छल कपट
तब साँई ने बनाया मुझे अपनी चरण धूल
पथरीली राहो के काँटे बन गए सुन्दर फूल

Saturday, May 9, 2015

माँ

मातृ दिवस पर मुझ अदने ने इक कोशिश की थी माँ की महत्ता को शब्दों में व्यक्त करने की
जानता हूँ माँ की महत्ता बखान करने में शब्द और एक दिन नाकाफी है
पर फिर भी मेरा चन्द प्रयास जो कि मेरी माँ को समर्पित है:-

मेरी प्यारी माँ , आज है मातृ दिवस
एक दिवस नाकाफी है गाने को तेरा यश
तेरी निस्वार्थ ममता का नही है कोई छोर
जो तेरी ममता में डूबे वो क्यों देखे कहि और
तू तो माँ इक पावन शीतल सा झरना है
माँ मुझे तो तेरी मातृ छाँव में सदा ही रहना है
मैं सोचता हूँ तुझ बिन माँ कैसे दुनिया होती
तू न होती तो भगवन न जन्मते न दुनिया होती
माँ तेरे बारे में तेरी महत्ता का कैसे करूँ बखान
माँ तू तो समस्त विश्व के सर्व गुणों की है खान
मैं क्यों जाउ भगवन ढूंढने मन्दिर मस्जिद
जब मेरे घर माँ रूप में भगवन है रहते
पूरी करते मुझ बालक की हर इक जिद
माँ तेरा गुणगान करने को इक दिन नाकाफी है
माँ तू सर्वोत्तम है तुझमे न कोई खामी है
कैसे करूँ मैं शब्दों में व्यक्त माँ तेरी महत्ता
मुझमे इतना साहस नही न मुझमे इतनी क्षमता
माँ जग को प्रकाशित करती जैसे करता दिया
माँ के लिये इक दिन नही होता होती है सदियाँ
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साँई साईं साई

हिन्दू बोले साई मुस्लिम साईं उच्चारे
तेरा तो नाम ही हिन्दू मुस्लिम एकता बखारे
साईं शब्द उर्दू शब्द होवे तो
साई में तुझे सम ईश्वर पावे

(साईं शब्द उर्दू शब्द है और इस शब्द से बिंदु हटा देने पर शब्द बनता है साई जिसका हिंदी व्याकरण से सन्धि विच्छेद करे तो होगा:- सा+ई और "सा" का अर्थ होता है समान और ई का अर्थ ईश्वर
वही दूसरी ओर अगर इस तरह सन्धि विच्छेद हो:-स+आई अर्थात की जो आई(माँ) सहित है वो है साई और हिंदी शास्त्र के अनुसार बाबा का अर्थ होता है पिता तो जो माँ और पिता सहित है वो है साई बाबा

अब जो धर्म के ठेकेदार साई बाबा की आलोचना करते है कि साई मुस्लिम थे या हिंदू थे तो उनसे इतना ही कहना है कि साई तो दोनों धर्म की एकता के प्रतीक थे
जिनका नाम ही अपने आप में एकता प्रदर्शित करता हो तो सोचिये क्या वो भगवन नही है ?

अब साई पर माँ शब्द की चन्द्र बिंदु लेकर लगा दीजिये तो शब्द होगा :-""साँई"" अर्थात साँई हमारी माँ है

तो चाहे साई कहो या साईं या फिर साँई
सबमे भगवान है

साँई साई साईं
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Thursday, May 7, 2015

साँई तेरा गुणगान

साँई के मुखमण्डल की दिव्यप्रभा देख
अति प्रफुल्लित होता मेरा ये चित्त
जैसे मानो कि अरुणोदय समय
क्षितिज पर रवि हो रहा हो उदित

साँई तेरी लीला है अवर्णनीय
एवम् तेरा रूप है अति रमणीय
तेरा रूप देख तेरी लीला का पान करूँ
भव की चिंता छोड़ तेरा ही गुणगान करूँ

साँई तुझसे हुई मुझे अनुपम ज्ञान की उपलब्धि
सारे दुःख दर्द दूर हो मिली मुझे सुख समृद्धि
तुझसे मिले ज्ञान की विस्मृति न हो मृत्युपर्यन्त
तुझे साष्टांग नमन करूँ हे मेरे आदि हे मेरे अंत

जब जब साईं के श्री दर्शन करूँ
हो मेरे चक्षुओं को हो  रसानुभूति
उसी पल मेरे समस्त पाप कट जाये
जब लगाऊ मस्तक पर साई की विभूति

न करूँ मैं किसी पर वाणी से वज्रपात
वाणी अपनी मधुर रखूँ जोडू सबके हाथ
संग सदा ही नेक रखूँ मेरा दृष्टिकोण
बोलू जब भी मधुर बोलू अन्यथा रहू मौन

साँई तुम मेरी नजरो से अब न होना ओझिल
नही तो मेरी साँसे लगने लगेगी मुझे बोझिल

Wednesday, May 6, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

¶¶¶¶¶वैदिक ज्ञान¶¶¶¶¶

हम गणेश जी यानि गणपति जी की सबसे पहले पूजा करते है उनका ही नाम ले कार्य आरम्भ करते है तो "गणपति" का अर्थ जानते है क्या होता है ?

"गणपति" हमारे इन्द्रियों का गण है..
और इस इन्द्रियों के गण का पति हमारा 'मन' है...
कोनसा भी कार्य सफल करना है तो अपना 'मनरूपी
गणपति' स्थिर होना चाहिए.. चंचल नही..!
इसलिए गणपति जी को प्रथम पूजने का अर्थ ये है
की... अपने मन को कार्य के प्रारम्भ में शांत, स्थिर
रखो... जिस के वजह से कार्य में कोई बाधा ना आये..
और कार्य सफलता पूर्वक हो..!
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श्री साई वार

श्री साई गुरूवार अति पुनीत पावन
साई नाम से खिलता मन का सावन
साई वार करे आज रहमत की बरसात
इस भव में साँई नाम लेकर रहे सब साथ
सांई का वार लाये खुशियो की सौगाते
सांई नाम लेकर तो गूँगे भी साई साई गाते
सांई सदगुरू का आज आया है श्री वार
साँई पर सब छोड़ दो वो देंगे मातृ सम दुलार
साँई श्री वार से कर नेकी के काज आरम्भ
ताकि साँई तुझे विनीत बनाये मिटाये तेरा दम्भ
साँई वार पर आज साई को ध्या लो शपथ
तज देंगे हम सभी आज से ही छल झूठ कपट
आज साई वार पर बने हमारा एक परिवार
जिसमे सब मिलके रहे और करे सद्व्यवहार
आराध्य साँई से अब है यही प्रार्थना
हम बच्चो का साँई तू ही हाथ थामना

Sunday, May 3, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

¶¶¶¶¶¶ वैदिक ज्ञान ¶¶¶¶¶¶

वह इंसान जो अध्यात्म के मार्ग पर
है उसके लिए बुद्ध पूर्णिमा एक बड़ा
महत्वपूर्ण दिन है। सूर्य का चक्कर
लगाती पृथ्वी जब सूर्य के उत्तरी
भाग में चली जाती है तो उसके बाद
यह तीसरी पूर्णिमा होती है।
गौतम बुद्ध की याद में इसका नाम
उनके नाम पर रखा गया है।
बुद्ध पूर्णिमा को गौतम बुद्ध के
ज्ञान प्राप्ति के दिन के रूप में
देखा जाता है। करीब आठ साल की
घनघोर साधना के बाद गौतम बहुत
कमजोर हो गए थे। चार साल तक वह
समाना (श्रमण) की स्थिति में रहे।
समाना (श्रमण) के लिए मुख्य
साधना बस घूमना और उपवास
रखना था, वे कभी भोजन की
तलाश नहीं करते थे। इससे गौतम का
शरीर इतना कमजोर हो गया कि वह
मौत के काफी करीब पहुंच गए। इस
दौरान वह निरंजना नदी के पास
पहुंचे, जो प्राचीन भारत की कई
नदियों की तरह सूख चुकी है और
लगभग विलुप्त हो चुकी है। उस वक्त
यह नदी एक बड़ी जलधारा थी,
जिसमें घुटनों तक पानी तेज गति से
बह रहा था। गौतम ने नदी पार करने
की कोशिश की, लेकिन आधे रास्ते
में ही उन्हें इतनी कमजोरी महसूस हुई
कि उन्हें लगा कि अब एक कदम भी
आगे बढ़ा पाना संभव नहीं है।
लेकिन वह हार मानने वाले शख्स
नहीं थे। उन्होंने वहां पड़ी पेड़ की
एक शाखा को पकड़ लिया और बस
ऐसे ही खड़े रहे।
कहा जाता है कि इसी अवस्था में गौतम
घंटों खड़े रहे। हो सकता है, वह कई घंटे खड़े
रहे हों। यह भी हो सकता है कि वे कुछ पल
ही खड़े रहे हों, जो कमजोरी की ऐसी
हालत में घंटों जैसे लग सकते हैं। उस पल उन्हें
अहसास हुआ कि वह जो खोज रहे हैं, वह
तो उनके भीतर ही है। फिर ये सब संघर्ष
करने का क्या फायदा! जिस चीज की
आवश्यकता है, वह है अपने भीतर पूर्ण रूप से
राजी हो जाना और ऐसा तो यहीं और
अभी हो सकता है। फिर मैं उसे पूरी
दुनिया में खोजता क्यों घूम रहा हूं? जब
उन्हें इस बात का अहसास हुआ, तो उन्हें
हिम्मत और ताकत मिली और उन्होंने
एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए नदी पार कर
ली। इसके बाद वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए,
जिसे अब बोधि वृक्ष के नाम से जाना
जाता है। वह इस पेड़ के नीचे इस संकल्प के
साथ बैठे – ‘जब तक मुझे परम ज्ञान की
प्राप्ति नहीं होती, मैं यहां से नहीं
उठूंगा। या तो मैं यहां से एक प्रबुद्ध
व्यक्ति के रूप में उठूंगा या फिर इसी
अवस्था में प्राण त्याग दूंगा।’ और एक ही
पल में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई,
क्योंकि इसके लिए बस इसी चीज की
जरूरत होती है
जो चीज आप चाहते हैं, वह आपकी
प्राथमिकता बन जानी चाहिए।
फिर वह एक पल में हो जाती है। पूरी
साधना, पूरी कोशिश बस इसी के
लिए होती है। चूंकि लोग इधर उधर
इतने बिखरे हुए और अस्त व्यस्त हैं कि
उन्हें एकत्रित करने और एक समग्र
इकाई बनाने में बहुत लंबा समय लग
जाता है। ये लोग अपनी पहचान
तमाम चीजें के साथ बना लेते हैं।
इसलिए पहली चीज है, खुद को
समेटना। अगर इस इंसान को हमने एक
समग्र इकाई के रूप में पूरी तरह से समेट
लिया, तभी हम उसके साथ कुछ कर
सकते हैं।
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साधू कौन ?

: कुछ दिनो पूर्व एक जगह  ं
मैंने अजब दृश्य देखा। दो साधु एक कुत्ते को डंड़े और तालों से मार
रहे थे। कारण पूछा तो पता चला वह
कुत्ता उनकी रोटी लेकर भागा था। नित्य
धार्मिक अनुष्ठान करने वाले, प्रभु की जय-जयकार
करने वाले और जीवन में आए सुख-दुख को, 'होय
वही जो राम रच राखा' कहकर संबल देने वाले साधु
अगले ही पल
अपनी रोटी छिन जाने से व्यथित हो उठे थे।
इतने, कि हिंसक हो गए। स्वयं पर विपदा आई तो हर वस्तु और
प्राणी में भगवान को देखने का प्रवचन देने वाले साधुओं
को कुत्ते में भगवान नहीं दिखे। इस आचरण से एक
बार फिर यह सिद्ध हुआ कि कोई व्यक्ति सर्वप्रथम मन से
अर्थात हृदय से साधु-सन्यासी होता है, उसके बाद
कर्म से साधु-सन्यासी होता है और, सबसे अंत में
वचन से साधु-सन्यासी होता है, किन्तु केवल
वेशभूषा से वह कदापि साधु-
सन्यासी नहीं हो सकता।

Saturday, May 2, 2015

साई संजीवनी

प्राण पखेरू कब के उड़ गए होते मेरे
अगर साँई तुम न बनते मेरी संजीवनी
कैसे बयाँ करूँ मैं आपकी लीलाओ को
आपकी लीला अनमोल है जैसे पारस मणि

मैं तो एक अदना सा प्राणी हूँ
न मेरा किस्सा न कहानी है
साई का जीवन साई ही के नाम है
साई साई रटता हूँ यही मेरा काम है

साई तेरी रहमत की हुई प्रभात
और दूर हुई गमो की यामिनी
तुझे जब से मेरे मन में बसाया
मेरा मन बन गया मंदाकिनी

तेरे चरणों से हे इष्ट मैं ऐसे लिपटू
जैसे चन्दन वृक्ष से लिपटता सर्प
माना हूँ मैं तो तेरा दास अज्ञानी
तेरी शरण में आऊं समझूँ जीवन मर्म

श्रीकृष्ण उपदेश

भगवान कृष्ण ने गीता के नवें अध्याय के २९वें श्लोक
में कहा है :--
"समोहम सर्वभूतेषु न में द्वेश्योस्तिन प्रिय: ये
भजन्ति तु मां भक्तयां मई तें तेषु "
अनुवाद इस प्रकार है -----मैं सब भूतों में समभाव से
व्यापत हूँ ,ना कोई मेरा प्रिय है ना अप्रिय है परंतु
जो भक्त मुझको प्रेम से भजते है वे मुझमें है और मैं
भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।

साँई गुणातीत थे और गुणातीत ब्रहम स्वरूप ही है ।

भगवान कृष्ण ने गीता के १४वें अध्याय के २४वें श्लोक
में वर्णन किया है :--
"जो निरन्तर आत्म भाव में स्तिथ ,दुख-सुख
को समान समझने वाला ,मिट्टी,पत्थर और स्वर्ण में
समान भाव वाला ज्ञानी ,प्रिय तथा अप्रिय
को एक-सा मानने वाला अपनी निंन्दा स्तुति में
भी समान भाव वाला है|
फिर २५वें श्लोक में पूर्ण किया:--
जो मान अपमान में सम है ,मित्र और बैरी पक्ष में
भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भो में अभिमान से रहित
है , व्ह पुरुष गुणातीत कहा जाता है |
और फिर २६वें श्लोक में पूर्ण किया :---
जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग
द्वारा मुझको निरंतर भजता है , वह भी इन
तीनो गुणो को भलीं-भातिं लांघकर
सच्चिदाननद्घन ब्रहम को प्राप्त होने योग्य बन
जाता है |
" मेरा साँई जब तक देह में विराजमान था
तब तक पूर्ण योगी था,प्रेम स्वरूप था
देह त्याग कर गुणातीत ब्रहम में व्याप्त हो गया |"

Friday, May 1, 2015

सत्य

सत्य देखना चाहे ये अंखियन
तभी वाणी भी सत्य करे वदन
जिस पल गलत का साथ दे ये दास
उस दिन रौंद दिया जाऊ मैं बनके घास
वाक् पटु भी ये हो जाये तब नष्ट
हाथो को लकवा मारे हो मुझे कष्ट
पर हे साई अगर मैं रहूँ सच्चा बन्दा
सत्य देखूँ न बनू धृतराष्ट्र सम अँधा
तो प्रभुवर आप देना मेरा पूर्ण साथ
मस्तक पर रखके आपके करुणामयी हाथ
ताकि सही की रक्षा कर सकु पूर्ण भाव से
घरौंदा बना सकु आपकी ममता की छाँव से
जिस घरौंदे में रहे आपके सब दास
जो सबूरी संग रखे आप पर पूर्ण विश्वास
बन जाये सब आपके बच्चे ख़ास