Tuesday, July 7, 2015

【【साई प्रेम】】

【【【【 साँई प्रेम 】】】】

नजर जब जब साँई से मिलती
नजर ही नजर में होता प्यार
मुझ पर उनकी रहमत बरसती
हर घड़ी हर वक्त बेशुमार

बेशुमार प्यार बरसाता वो साँई
उस प्यार के आगे दौलत बेकार
सच्ची दौलत तो उसकी रहमत है
वो साँई ही है हमारा सारा संसार

संसार में सब रिश्ते है देखे
पर साँई संग रिश्ता है अनमोल
राह में संग मेरे साथी बन चलता
देता जीवन में मीठी मिश्री घोल

मिश्री सी मीठी लगे साँई की वाणी
साँई याद में आँखों में आ जाता पानी
साँई ही सच्चा प्रीत है उसकी महिमा बखानी
साँई नाम में जिंदगी गुजारनी मैंने है ठानी

ठान लिया अब मन में मैंने
कि जिंदगी गुजारनी नेकी में
साँई का वास हो हर जन में और
साँई दर्श करूँ हर साँई प्रेमी मे

साँई है प्रेम करते सबसे ऐसे
जैसे माँ संग है बच्चे का रिश्ता
साँई संग प्रीत में मन हो जाता ऐसे
जैसे सरोवर में पुष्प कमल है खिलता

कमल नयन युक्त सुंदर आभा वाले
समर्थ सदगुरू साँई नाथ को है प्रणाम
वो ही है इस सुंदर सी सृष्टि के रचयिता
आओ सब मिल कर ले उनका प्यारा नाम

साँई नाम लेने से हम भव से जाते ऐसे तर
जैसे राम नाम से पत्थर भी गए थे पानी में तैर
साँई हमारी भक्ति देख होते ऐसे भावविभोर
जैसे श्रीराम ने सबरी के खाये थे झूठे बैर
http://drgauravsai.blogspot.com/

【【साई प्रेम】】

【【【【 साँई प्रेम 】】】】

नजर जब जब साँई से मिलती
नजर ही नजर में होता प्यार
मुझ पर उनकी रहमत बरसती
हर घड़ी हर वक्त बेशुमार

बेशुमार प्यार बरसाता वो साँई
उस प्यार के आगे दौलत बेकार
सच्ची दौलत तो उसकी रहमत है
वो साँई ही है हमारा सारा संसार

संसार में सब रिश्ते है देखे
पर साँई संग रिश्ता है अनमोल
राह में संग मेरे साथी बन चलता
देता जीवन में मीठी मिश्री घोल

मिश्री सी मीठी लगे साँई की वाणी
साँई याद में आँखों में आ जाता पानी
साँई ही सच्चा प्रीत है उसकी महिमा बखानी
साँई नाम में जिंदगी गुजारनी मैंने है ठानी

ठान लिया अब मन में मैंने
कि जिंदगी गुजारनी नेकी में
साँई का वास हो हर जन में और
साँई दर्श करूँ हर साँई प्रेमी मे

साँई है प्रेम करते सबसे ऐसे
जैसे माँ संग है बच्चे का रिश्ता
साँई संग प्रीत में मन हो जाता ऐसे
जैसे सरोवर में पुष्प कमल है खिलता

कमल नयन युक्त सुंदर आभा वाले
समर्थ सदगुरू साँई नाथ को है प्रणाम
वो ही है इस सुंदर सी सृष्टि के रचयिता
आओ सब मिल कर ले उनका प्यारा नाम

साँई नाम लेने से हम भव से जाते ऐसे तर
जैसे राम नाम से पत्थर भी गए थे पानी में तैर
साँई हमारी भक्ति देख होते ऐसे भावविभोर
जैसे श्रीराम ने सबरी के खाये थे झूठे बैर
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【【आज का मन्थन】】

【【 आज का मन्थन 】】

हम अक्सर देखते है कि जब ट्रैफिक होता है या नही होता एवम् जब हम कहि सफर कर रहे होते है तो कई बार एम्बुलेंस को हम आगे जाने के लिए जगह नही देते है
ऐसा अक्सर हम करते भी है और देखते भी है
देहली में हुए सर्वे में पता चला है कि कई मौते हो सिर्फ इसलिए हो जाती है की मरीज समय पर हॉस्पिटल नहीं पहुँच पाते है
तो आप सभी से निवेदन है कि इस पर गहन मन्थन किजिये कि अब तक जो हम कर रहे थे वो कितना गलत था !!

अत: स्वयम् में बदलाव लाइए
जब भी आपको कोई एम्बुलेंस दिखाई दे उसे आगे जाने के लिए रास्ता दे एवम् साथ ही उस एम्बुलेंस में मौजूद मरीज के स्वस्थ होने की भगवान से कामना करे । । ।
क्या पता आपका ये कदम किसी का जीवन बचा ले.....

करके देखिये..बहुत सुकून मिलेगा
आप करेंगे ऐसा तो आपका कई लोग भी अनुसरण करेंगे

""हम तो अकेले ही चले थे फिर क्या था लोग जुड़ते गए कारवाँ बढ़ता गया""

कल एक नए विषय पर मन्थन करेंगे
http://drgauravsai.blogspot.com/

Sunday, July 5, 2015

【【 आज का मन्थन 】】

【【 आज का मन्थन 】】

अक्सर हमे देखने में आता है कि हम फूटपाथ पर सामान बेचने वाले लोगो से या सब्जी बेचने वाले लोगो से या गरीब लोगो से जो सामान बेचते है ऐसे लोगो से चन्द 5/-, 10/- कम कराते नजर आते है

     वही दूसरी ओर हम महंगी दुकान या मल्टीप्लेक्स में से महंगी चीज खरीद लेते है तब कोई मोल भाव नही करते क्योकि वो चीजे ब्रांडेड होती है

तो मेरा संक्षिप्त शब्दों में इतना ही कहना है कि चन्द रूपये बचाने के चक्कर में गरीब लोगो से मोल भाव न करे
वो अपना पेट भरने के लिए मजबूर है ऐसा कार्य करने को एवम् हो सके तो महंगे मल्टीप्लेक्स की बजाय इन लोगो से सामान खरीदने को प्राथमिकता दे
क्योकि इससे :-एक तो इन लोगो का पेट भरेगा
:-दूसरी बात आपको शुद्ध एवम् कम दाम पर अच्छा सामान मिलेगा
:- तीसरी बात स्वदेशी वस्तुओ को बढ़ावा मिलेगा जिससे भारत की अर्तव्यवस्था मजबूत होगी

शुरुआत स्वयम् से करनी होगी तभी कड़ी आगे बढ़ेगी

हम तो अकेले ही चले थे फिर क्या था लोग जुड़ते गए, कारवाँ बढ़ता गया.......

स्वयम् मन्थन कीजियेगा

कल एक नई बात के साथ फिर मन्थन करेंगे
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Friday, July 3, 2015

साँई संग डोर

[[[:::: साँई संग डोर ::::]]]

साँई संग जुडी प्रीत की डोर ऐसे
जैसे दूर गगन में पतंग उड़ती धागे संग
साँई तेरे हाथ में ही मेरे जीवन की पतंग
तू ही जीवन में उड़ेले खुशियो के रंग

मैं तो हूँ इक नन्हा सा पँछी
बिन डोर दूर गगन में उड़ता हूँ
दर दर मारा मारा मैं फिरता रहता
अंत में साई चरण में ही प्यास बुझाता हूँ

डोर नही जुडी साँई तुझसे कोई
फिर भी तेरी ओर खींचा चला जाता हूँ
ये भी तेरी लीला का इक हिस्सा है
तभी तेरे चरण में आ सुकून पाता हूँ

सुकून मिले तन मन को मेरे
जब साँई मस्ती में उडु गगन में
मेरी डोर को साईं हाथो में थामे
अपार रहमत बरसे तब जीवन में

डोर साँई से जुडी ऐसी अटूट
जैसे माँ ने थामा बच्चे का हाथ
भले जाऊँ मैं उनसे कितना रूठ
पर साँई करते मुझ पर सदा करामात
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