Friday, April 24, 2015

मेरा परिचय

ना कोई तारीफ मेरी, ना मुझमें कुछ खास
साईं के दर्शन की रखता हूं आस
इस दुनियावी चोले को गौरव कहते हैं लोग
साईं नाम जाप का पाया है सुयोग
जयपुर मे बाबा ने डलवाया है डेरा
यही बस सीधा सा परिचय है मेरा
बाबा ने हाथ पकडा और कृपा की अपार
इक साईं स्तुति की रचना करवाई अपरम्पार
मैं तो एक अदना सा प्राणी हूँ
न मेरा किस्सा न कहानी है
साई का जीवन साई ही के नाम है
साई साई रटता हूँ यही मेरा काम है

Monday, April 20, 2015

मेरे मन का साँई

मेरे मन का साईं अक्सर चुप रहता है ,कुछ बोलता नही
बस साक्षी बना सब देखता है
     लेकिन आज मेरे मन का साईं दुखी है.......बहुत दुखी
आज मेरे मन के साई के भीतर अश्रु का झरना फुट पडा है

मैंने पुछा कि साई क्या कारण है इसका तो मेरे मन का साई दुखी स्वर में बोला कि:-
मेरी बसायी इस प्यारी बगिया को न जाने क्या हो गया है, पुष्प की जगह अब कांटे उग आये है, एक पुष्प जरा खिला नही की उसे अभिमान हो गया कि उस जैसा कोई नही इस बगिया में,
एक फूल और सुगन्धित एवम् सुंदर फूल को तुच्छ समझने लगा जबकि साई की बगिया में तो सब फूल एक समान है कोई सुंदर है तो कोई सुगन्धित तो कोई पुष्प इतना विनीत की सदा झुक कर रहता है तो कोई तुरन्त खिल जाता है
सब पुष्प के अपने अपने गुण है
पर न जाने बगिया को क्या हुआ कि न अब यहाँ सींचने के लिए प्रेम रुपी जल है
और न ही अब बगिया ही है
बगिया ही छिन्न भिन्न है
ये बगिया नही एक व्यापार सा हो गया
हर पुष्प कहता है कि मैं साई का खास हूँ मैं ही उनके मस्तक पर चढ़ उनकी शोभा बढ़ाऊंगा
इस बात को लेकर पुष्पो में वाक् युद्ध छिड़ा है
पर कोई पुष्प यह नही कह रहा की मैं साई चरणों में अर्पित होऊँगा ताकि मैं विनम्र विनीत बनु मेरा अहंकार मिट जाये

आज सच मेरे मन का साई दुखी है
अगर मेरी भावनाये आप समझोगे तो आपके मन का साई भी दुखी होगा बहुत दुखी

Sunday, April 19, 2015

वैदिक ज्ञान

¶¶¶¶¶¶¶वैदिक ज्ञान¶¶¶¶¶¶¶

वेद व्यास रचित महाग्रंथों की कथायें कहने वाले
अनेक लोग हैं जो लोगों के बीच जाकर कथित रूप से
धर्म प्रचार करते हैं पर यह उनका धार्मिक अभियान
नहीं बल्कि व्यवसाय होता है। आत्मा और परमात्मा
के भेद को वह बयान जरूर करते हैं पर एक तोते की
तरह, जबकि तत्व ज्ञान को वह धारण नहीं किये
होते। कहने को किसी ने अपनी
पीठ बना ली है पर वह अपने और
परिवार के लिये संपत्ति बनाने के अलावा उनका कोई उद्देश्य
नहीं होता। ऐसे लोगों को सुनना तो चाहिये पर उनका
सुनकर स्वयं अपना ध्यान और मनन कर ज्ञान को धारण करें तो
ठीक रहेगा। उनको गुरु न मानकर अपने स्वाध्याय को
अपना गुरु बनायें।
कोई ढोंगी हो या पाखंडी यह तो समझ में
आ जाता है पर उन पर अधिक विचार न कर हमें अपना ध्यान
अपने इष्ट के स्मरण और ध्यान पर लगाना चाहिये। आत्मिक शांति
के लिये भक्ति मन में होना आवश्यक है और उसका दिखावा करने
का भाव जब हमारे अंदर आता है तो समझ लें कि हमारे किये
कराये पर पानी फिर रहा है। यह एकांत साधना है
और इस पर किसी से अधिक चर्चा करना
ठीक नहीं है। अंदर अपने इष्ट का
ध्यान कर जो आनंद प्राप्त होता है उसकी तो बस
अनुभूति ही की जा सकती
है।
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Saturday, April 18, 2015

साई सुप्रभातम्

साई अपनी आभा बरसाते बनके रवि
साई किरणों में पाप कट जाते है सभी
जिस पल बसा ली मन मन्दिर में साई छवि
मन का कोना कोना दिव्यमान हो जाता तभी
साई का तो गुण है गाते ये आसमा जमी
साई सबको है अपनाते न देखे कोई कमी
भूल के राग द्वेष बन जाओ साई प्रेमी
जिसका मन निर्मल हो साई रहते है वही
श्रद्धा सबूरी रखने वाला ही है साई पथगामी
जिसने साई महिमा पुरे  दिल से है बखानी
साई माफ़ करता उसकी गलती उसकी नादानी
जिसने अपने मन में बैठे साई को पहचानी
साई उसकी जिव्हा में बसते बनके मधुर वाणी

Friday, April 17, 2015

साई सच्चा साथी

साई- सच्चा साथी

चलते चलते राहो में
हर राहगीर मुझे ऐसा मिला
कुछ दूर तक साथ निभाया
फिर वो भी चल निकला
यही तो जीवन का सच है
इसको मैं था यूह भूला
तन्हा हो गया था मैं
दे रहा खुद के खुद को शिकवा गला
तब ही आँखों में मेरे इक चमक दौड़ी
इक दिव्य आभा लिए
एक राहगीर और मिला
अब तक सबकी ऊँगली मैंने थामी थी
इस राहगीर ने मेरी ऊँगली थामी
पल भी देर लगी समझते मुझे
ये ही है राहगीर जो मुझे सच्चा मिला
मैंने पुछा कौन हो तुम
तो मन्द मुस्कान लिए वो बोला:-
रे प्यारे बच्चे न कर तू आँखों को गीला
मैं तो तेरा सदगुरू बाबा साई ही हूँ
तेरे दुष्कर्मो में तू था अब तक मुझे भूला
ये सुन मैं अश्रुविहिल हुआ
आँखे मेरी नम हुई पर शब्द इक न निकला
तब मुझे कुछ भी न सूझा
तुरन्त साई चरणो में मैं गिर पड़ा
साई ने मुझे उठाया लगाया गले
उन्होंने इक मधुर वचन बोला:-
नेक काज कर तू होगा तेरा भला
तब मुझे इस जीवन पथ का मर्म समझ आया
सदगुरू साई के इक इक शब्द ने
मेरे तन मन जीवन में मधुर रस घोला

दिन आरम्भ

साई नाम से हो आज दिन आरम्भ
तज के सारे अभिमान और दम्भ
ताकि पल में दुःख दर्द गम हो कम
विनम्र बन साई चरणों में झुके रहे हरदम

Sunday, April 12, 2015

श्री साई सुप्रभात

ॐ श्री साई सुप्रभात
मुख पर हो साई की बात
साई ही है मेरे दिल के सम्राट
पाना चाहूँ मैं सदा साई का साथ

चन्द्र सम शीतलता लिए आया वार सोम
आज साई गुणगान करेगा मेरा रोम रोम
नूर दमकता आज जिनका वो है साई ओम
जिनका बखान करते ये धरती ये व्योम

Saturday, April 11, 2015

साई मेरा जीवन

श्री साई नाम अति सुखदाई
पीड़ा हरती उनकी द्वारकामाई
द्वारकामाई में बैठे साई देखे चहुँ ओर
उनके दर्शन मात्र से हो जाती जीवन में ठौर
ठौर ठिकाना न था कोई भी मेरा
साई दर हो गया मुझ अदने का बसेरा

अदना सा बन्दा हूँ मैं तो
हर पल साई साई जपता हूँ
दुनियादारी से क्या लेना मुझे
साई को ही दुनिया समझता हूँ

समझ न मेरे मन को सही गलत की
नित नित गलती करता है
मेरा साई है इतना परम् दयालु
कि हर गलती क्षमा कर अपनाता है

अपनाया है मुझको उस फकीर ने
जो सबको अपना बनाता है
इस भव ने तो बैरी किया मुझको
वो फकीर ही है जो चुपके से
मेरे मन को निर्मल कर मन में नजर आता है
नजर उसकी इतनी मनमोहक
कि बड़ी करुणा बरसाती है
जो उसकी नजरो से नजर मिलाये
नजर ही नजर में उसकी मनमोहक
नजर बड़ा प्यार लुटाती है
ऐसी मनमोहक नजर वाली साई माँ को
मेरी नजर की कहि नजर न लग जाये
इसलिए ये नजरे नजर न मिला पाती है

जब से की ओ शिर्डीवाले
तूने नजर ही नजर में बात
परमानन्द से लबरेज हुआ मैं
मिल गया मुझे तेरा जन्मों का साथ

साथ है अपना जन्म जन्मों का
फिर क्यों हो मुझे कोई फ़िक्र
कठिनाई आये चाहे कितनी भी
करता रहूँगा मैं सदा तेरा शुक्र
जब तक चलती रहेगी ये साँसे
हर साँस पर होगा साई तेरा ही जिक्र

साँसे है ये मेरी ये मैं कैसे कह दू
जबकि इन साँसों में भी तू ही बसता है
रोम रोम मेरा बस साई साई जपता है
साई तू तो मेरा साया है जो संग मेरे चलता है

संग तेरा मैं पाना चाहूँ
तेरे नाम में ही खोना चाहूँ
दे दे मुझे साई इतना आशीष
कि हर क्षण तेरे बखान में बिताना चाहूँ

बखान करता रहूँ मैं तेरा हर क्षण
पावन करके मेरा ये तन मन
जब से साई तुम पधारे मेरे जीवन
सच पूछो तन मन हो गया वृन्दावन

वृन्दावन का कान्हा हो तुम
अयोध्या के रघुपति राम भी
सारे दुःख दर्द दूर भागते हमसे
लेते तुम्हारा अति पावन नाम ही

पुनीत पावन है श्री साई नाम
सबको दो ऐसा आशीष हे भगवान
हिन्दू कहे अल्लाह मुस्लिम कहे राम
तब हमारा मन ही बन जायेगा शिर्डी धाम

Friday, April 10, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

¶¶¶¶¶¶आज का वैदिक ज्ञान¶¶¶¶¶¶

वो मनुष्य बड़ा सौभाग्यशाली होता है जिसकी प्रभु के नाम सिमरण में रूचि होती है। आंतरी गांव में ऐसे ही एक परम भगवत भक्त गोविंद दास जी निवास करते थे। बचपन से ही श्री कृष्ण लीलाओं में उनकी बहुत रूची थी। श्री कृष्ण को अपना सखा मान, उनकी मानसी सेवा किया करते थे।

गान विद्या, मधुर कण्ठ और माधुर्यातिपति श्री कृष्ण की मधुरतम लीलाएं तीनों का एक साथ संयोग होने से ये शीध्र ही आसपास के गांवों में गोविंद स्वामी के नाम से प्रसिद्ध हो गए। जैसे-जैसे प्रसिद्धि बढ़ने लगी गोविंद स्वामी के सम्मुख अपने प्राण जीवन श्यामसुंदर के साथ मानसी एकांत क्रिड़ाओं में भी बाधाएं आने लगी। जब गोविंद स्वामी जी की सहन शक्ति की इति हो गई तो एक रात्रि वे अपना गांव छोड़ कर मथुरा की ओर निकल पड़े।

महावन में श्री कृष्ण के अवश्य ही दर्शन होंगे इस विश्वास के साथ वह वहीं बस गए। टकटकी लगाए वह अपने प्रियतम की प्रतिक्षा करते रहते, विरह वेदना बढ़ने लगी। कभी वे सोचते श्री कृष्ण मिलेंगे तो उनसे कैसे भेंट करूंगा? उनके मधुर स्पर्श से मेरे रोम-रोम कितने पुलक उठेंगे? विरह के आंसूओं से स्निग्ध भक्त की कोमल पदावली व्रजवीथियों में गूंज उठी। कभी पछाड़ खाकर धरती पर गिरते एवं कभी धूल में लोटने लगते।

गोकुल में गोस्वामी विट्ठलदास जी के पास इनका वृतांत पहुंचा। गोस्वामी जी ने अपने एक परम प्रेमी वैष्णव को गोविंद दास जी के पास भेजा। जब वो इनके समीप गए तो वे झट से आकर उनके गले से लग गए और उनसे प्रश्न करते हैं," भाई! तुम बताओगे मुझे श्री कृष्ण के दर्शन क्यों नहीं होते?"
वैष्णव उनका प्रश्न सुन कर भावुक हो गए और अवरूद्ध कंठ से बोले," श्री कृष्ण तुम्हारे प्रेम वश तुम्हारे पास आना तो चाहते हैं परंतु वे तो आजकल गोकुल में गोस्वामी विट्ठलदास जी के वश में हैं।"
अत: अगर सच में उन से मिलना चाहते हो तो यहां से गोकुल चले चलो। भक्त के अधीर ह्रदय को फिर इतना चैन कहां शांति की सांस इन्होंने तभी ली जब कि ये गोसाई जी के चरणों में लिपटकर श्री कृष्ण के दर्शन हेतु प्रार्थना करने का अवसर प्राप्त कर चुके।

गोसाई जी की कृपा से इन्होंने भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन एवं भगवल्लीला सांनिध्य दोनों ही प्राप्त हुए। ये गोस्वामी विट्ठलदास जी के शिष्य होने के पश्चात उनके अष्टछाप में ले लिए गए। इनका कण्ठ इतना सुरीला था की तानसेन तक इनका गाना सुनने आया करते थे। बादशाह अकबर ने इनका गाना सुनने के लिए इन्हें अनेक प्रलोभन दिए मगर यह श्री नाथ जी के सिवाय किसी के सामने नहीं गाते थे। जब बादशाह हर तरफ से निराश हो गया तो बीरबल ने चोरी से छिप कर इनका गाना सुनवा दिया। जब गोविंद दास जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने वो राग गाना ही छोड़ दिया क्योंकि उनका कहना था कि बादशाह अकबर ने राग को झूठा कर दिया है।

गोस्वामी विट्ठलदास जी गोविंद दास जी का अत्यंत प्रेम एवं आदर करते थे। भावावेश में किए गए व्यवहार को लोग दम्भ एवं अनाचार समझ इनकी अनेक शिकायतें गोस्वामी जी से किया करते थे।

एक बार श्री नाथ जी की किसी गोपनीय लीला को इन्होंने गोस्वामी जी के समक्ष प्रकट कर दी। गोस्वामी जी श्री नाथ जी का श्रृंगार कर रहे थे। इन्होंने पद कीर्तन करते हुए अपने पद में वह वस्तु प्रकट कर दी। श्री नाथ जी ने इनको मना करने के लिए सात कंकड़ियां मारी, किंतु यह नहीं मानें। आठवीं ककड़ी जैसे ही श्री नाथ जी ने उठाई इन्होंने भी पास पड़ी ककड़ी को उठा लिया और दौड़े मंदिर को ओर मारने। मंदिर के लोग बिगड़ने लगे। गोस्वामी जी ने लोगों को शांत किया। जब गोविंद दास जी को धैर्य बंधाया तो वो बच्चे की तरह फूट-फूट कर रोने लगे और बोले," आपके इस श्री नाथ ने मुझे आठ कंकड़ियां मारी हैंं। यदि मैं इसे मारता नहीं तो यह रूकता थोड़े ही।"
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साई भक्तो के लिए चन्द पंक्तियाँ

जिनके भावो से मन में
साई उमंग छा जाती है
जिनकी सत्संगत मुझे
शिर्डी की याद दिलाती है
बाबा के उन बच्चे प्यारो को
बाबा के उन भक्त जन न्यारो को
इस साई सेवक का कोटि प्रणाम

ये चन्द पंक्तियाँ उन सभी भक्तो के नाम

साई सुप्रभात

आज की प्रभात हो जाए सुप्रभात
जब मुख खुलते ही हो साई की बात
आँखे खुलते ही हो साई से मुलाकात
दिन बन जाये मेरा हो ख़ुशी की बरसात

Tuesday, April 7, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

¶¶¶¶¶¶आज का वैदिक ज्ञान¶¶¶¶¶¶

बहुत से लोग अपने भाग्य में परिवर्तन करने के लिए अपना नाम किसी न किसी रूप में बदल लेते हैं या अक्षरों में बदलाव कर लेते हैं पर क्या ऐसा करने से हम भाग्य के लिखे लेख को बदल सकते हैं। अपना भाग्य बदलने के लिए मनुष्य चाहे जितना प्रयत्न कर लें लेकिन विधि के विधान को बदला नहीं जा सकता। ब्रह्मा जी ने भी जब सृष्टि की रचना की तो उन्होंने भी सुख के अवरण में दुख को भेजा।

ब्रह्मा जी ने अपनी शक्ति से एक कन्या उत्पन्न की जिसका नाम उन्होंने आह रखा। आह का अर्थ होता है हाय, दुख, शोक। उसको उन्होंने तीनों लोकों का भ्रमण करने के लिए भेजा और कहा तू जिसको चाहे उसके साथ विवाह कर ले। वह कन्या तीनों लोकों में घुम आई मगर उसे किसे ने अपनी पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। वह जिस भी व्यक्ति के समीप जाने का प्रयास करती वह उसे दूर भागने लगता। संसार का कोई भी ऐसा पुरूष नहीं है जो हाय, दुख, शोक रूपी कन्या को अपनी पत्नि बनाना चाहेगा।

वह हताश और बेबस होकर अपने पिता ब्रह्मा जी के पास वापिस लौट आई। अपनी बेटी से सारा वृतांत जान ब्रह्मा जी ने उसका नाम आह से बदल कर चाह रख दिया। चाह का अर्थ होता है इच्छा, आकांक्षा, अभिलाषा, वासना। उन्होंने उसे पुन: तीनों लोको का भ्रमण करने के लिए भेजा और अपने लिए पति ढूढने के लिए कहा। अब परिस्थिति बिल्कुल विपरित थी अब पुरूष उसे अपनी पत्नी बनाने के लिए उसके आगे- पीछे चक्कर लगाने लगे।

ब्रह्मा जी ने उसका नाम बदल कर चाह तो रख दिया लेकिन अंदर से आज भी वो वही आह है। जो सभी दुखों का कारण है उसी तरह यह संसार भी एक आह है। दिखने में संसार बहुत अच्छा लगता है मगर इसके अंदर वही दुख और संताप है जो ब्रह्मा जी ने बनाएं हैं इसलिए सुख की चाह करने वाले उसके अंदर में छुपे दुख को समझें।

आज का वैदिक ज्ञान

|||||||||||||::वैदिक ज्ञान::||||||||||||
मंगलवार 7/4/15

ऐतिहासिक रहस्य::--

राम रावण युद्ध के समय जब लक्ष्मण जी मूर्छित थे तो हनुमान जी संजीवनी के रूप में पर्वत ही लेकर आ गए। संजीवनी आगमन के उपरांत राज वैध श्री सुषैण ने कहा कि इस संजीवनी को खरल में रगडऩे के लिए दो चार बूंदे आंसूओं की चाहिए और वो आंसू उस व्यक्ति के होने चाहिए जो आपने जीवन काल में कभी रोया न हो। गंभीर समस्या खड़ी हो गई। आखिर वैध सुषेण जी ने ही उपाय सुझाया कि," रावण की माता कैकशी अपने जीवन काल में कभी नहीं रोई, अगर उसके आंसू मिल जाए तो शीघ्र ही लक्ष्मण जी की मूर्छा को दूर किया जा सकता है।"
हनुमान जी इस कार्य के लिए लंका में रावण की माता के राजभवन में गए। हनुमान जी ने पहले तो रावण की माता को जाकर प्रेमपूर्वक बोला," माता जी! आपको रोना पड़ेगा। आप शीघ्र रोएं, हमें आपके आंसूओं की दो-चार बूंदे अभी चाहिए।"
रावण की माता क्रोधित होते हुए हनुमान जी से बोली,"चले जाओ यहां से हम क्यों रोएंगे? हम किसी किम्मत पर नहीं रोएंगे। एक तो तुम दुश्मन हो ऊपर से तुम्हारा इतना साहस हमें रोने को कह रहे हो।"
हनुमान जी ने बहुत विनय की मगर कैकशी ने एक न मानी। तब हनुमान जी ने अपने साथ लाई हुई दो बड़ी हरी र्मिच रावण की माता की बड़ी बड़ी राक्षसी आंखों में घुसेड़ दी तो वो एकदम चिल्लाकर ऊंचे स्वर में रोने लगी। उसकी आंखों से टपटप आंसूओं की छड़ी लग गई। हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए उनका काम जो बन गया था। उन्होंने झटपट कुछ आंसुओं की बूंदे संचित की और अपनी पवन गति से मूर्छा स्थल पर आ गए। वैध ने संजीवनी में आंसू की बूंदे मिश्रित कर खरल किया और उसके सूघंने से लक्ष्मण जी को जीवन दान मिला।
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Monday, April 6, 2015

धैर्य

बहुत गई थोड़ी रही,
व्याकुल मन मत हो
धीरज सबका मित्र है,
करी कमाई मत खो॥

अर्थात- धैर्य मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र है, जिसने इससे दोस्ती की, उसे जीवन की सारी खुशियाँ हासिल हो सकती हैं। मनुष्य का जो पहला धर्म है, वह अपने धैर्य को कायम रखना। किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।
      जीवन में रात आती है, दिन आता है, रोग आता है, आरोग्य आता है, सुख आता है, दुःख आता है, परंतु किसी भी स्थिति में हमें विचलित नहीं होना चाहिए। जिसके पास धैर्य रूपी
पारसमणि है, वही व्यक्ति अपने जीवन में सफल होता है।

इसीलिए कहा भी जाता है-

धैर्य धरो आगे बढ़ो,
पूरन हो सब काम।
उसी दिन ही फलते नहीं,
जिस दिन बोते आम।
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Sunday, April 5, 2015

आज का वैदिक ज्ञान

//////::वैदिक ज्ञान::\\\\

बचपन में एक शेर का बच्चा खो जाता है। कुछ समय बाद वह एक भेड़ों के झुण्ड में मिल जाता है। तो भेड़ों के बच्चों की ही तरह उसके क्रिया कलाप हो जाते हैं तो जब वह बड़ा हो जाता है तो वह भी ऐसे ही करता है। उसको यह नहीं पता होता की मैं भी एक शेर का बच्चा हूं। वह अपने आप को भेड़ का ही बच्चा समझता है।

एक दिन जंगल में उसको दूसरा शेर मिलता है और उसको बताता है की तू भेड़ का बच्चा नहीं शेर का बच्चा है लेकिन वह नहीं मानता जो शेर होता है वो उसे तालाब पर ले जाता है और उसे उसकी परछाई दिखाता है और कहता है देख तेरी और मेरी शक्ल एक है फिर वो दहाड़ लगाता है और कहता है जैसे मैं दहाड़ लगाता हूं वैसे तू भी दहाड़ लगा। शेर का बच्चा भी दहाड़ता है। तब उसे ज्ञात होता है कि अरे मैं तो शेर का बच्चा हूं। मैं भेड़ का बच्चा नहीं हूं।

इस प्रकार ज्ञानी गुरु ही हमको वास्तविक रूप दिखाते हैं की तू तो उस परम पिता का अंश है। तू अपने को पहचान तू अपने को जान। तू अपने जीवन को संसारिक भोगों से व्यर्थ न गंवा बल्कि परमपिता से मिलन कर यह बड़ी खुशी की बात है की इस कलिकाल में जहां इतना अराजकता फैली हुी है भ्रष्टाचार फैला हुआ है ऐसे समय में आप को गुरू की कृपा से बेश कीमती आत्म ज्ञान की प्राप्ती होती है।

गुरु की कृपा से उस सच्चे प्रेम को उस सुखद एहसास को अनुभव करना प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सांसारिक कर्तव्यों को निभाते हुए संभव है। सच्चा सुखद एहसास तो वर्तमान में है, स्वयं अपने आप में विद्यमान है। अपने मन व इंद्रियों के वशीभूत होकर मनुष्य इतना बहिर्मुख हो जाता है कि, वह अपने हृदय की पुकार नहीं सुन पाता, उसे यह आभास तक नहीं हो पाता कि वह इस संसार में आखिर क्यों हैं?

एक सच्चे गुरू के अलावा कौन ऐसा है जो सिर्फ देता है, देता है और देता है तथा बदले में केवल इतना ही मांगता है कि हमें अपनी खराब आदतों को छोड़ देना चाहिए।
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साई ॐ

दुनिया में है अनेको कौम
पर सबका मालिक साई ओम
साई ही मंगल साई ही सोम
साई नाम से खिलता हर रोम रोम

साई ही भोले साई ही है शंकर
साई नाम से हटते सारे कंकर
साई ही परम् साध्य साई ही आराध्य
साई ही सत्य साई ही है सुंदर
बनके शिव साई बसते मन मन्दिर

Friday, April 3, 2015

मेरी आँखों में साई बसा

साई आओ मेरे घर बनके तुम अतिथि
स्वीकार करूँ मैं आपका आतिथ्य
आपकी लीला मैं देखना चाहूँ इन चक्षु से
साई आपकी लीला है सबसे अद्वितीय

साई तू बसा है मेरे इन चक्षु
जब भी आँखों से निकले आंसू
उन आँसू में तू ही नजर आये
मेरा हर आँसू खुद को बड़ा धन्य पाये

बाबा इन आँखो ने देखे है
जीवन में केवल पाप ही पाप
सारे पाप धुले आँखे हुई पावन
जब आँखों में साई बस गये आके आप

दिल में मेरे साई तेरा ही वास है
तुझे बहुत प्रेम करता तेरा ये दास है
मेरा प्रेम स्वीकार करना न करना तेरी मर्जी
मैने तो तेरे चरणों में लगा दी है अपनी अर्जी

साई मुझे है तुझ पर अटूट विश्वास
कभी तो तू बनाएगा इस
अदने को तेरा बन्दा ख़ास
पर न देना तू मुझे कभी ऊँचाई
बस बनाके रखना मुझे तेरा दास
अहंकार का हो जाए इक पल में नाश
बस मेरे साई मैं करता तुझसे इतनी अरदास
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मेरे शब्द में तुम साई

शब्दों की रिमझिम रिमझिम बारिश हो
और उसमे नजर आये श्रद्धा का इंद्रधनुष
और पढ़के होगा अपार हर्ष
जब संग में सबूरी करेगा मानुष

मान ले साईं आज तू मेरा इतना कहना
मैं तो बस चाहु तेरे ही दिल में रहना
बना लू तुझको मैं अपना दिलबर
तभी आएगा मेरे दिल को चैना

चैन को भी चैन न आये
बिन बादल भी आँखों में रैन आये
जब साईं की याद आये
नैन भी मेरे चैन न पाए

मेरे शब्दों के सागर में साईं होकर विराजमान
दे रहे आज हम सब भक्तो को वरदान
कि जीवन में खुश रहो और बनो नेक इन्सान
उंच नीच गरीब अमीर सबको समझो समान

राजा हो या रंक हो सब तेरे दर पर समान
निर्धन हो या सबल हो या निर्धन या धनवान
सबके लिए तो साईं तू ही है भगवान
तेरी रहमत पाने का अधिकार रखे हर इंसान ।।