Saturday, May 2, 2015

साई संजीवनी

प्राण पखेरू कब के उड़ गए होते मेरे
अगर साँई तुम न बनते मेरी संजीवनी
कैसे बयाँ करूँ मैं आपकी लीलाओ को
आपकी लीला अनमोल है जैसे पारस मणि

मैं तो एक अदना सा प्राणी हूँ
न मेरा किस्सा न कहानी है
साई का जीवन साई ही के नाम है
साई साई रटता हूँ यही मेरा काम है

साई तेरी रहमत की हुई प्रभात
और दूर हुई गमो की यामिनी
तुझे जब से मेरे मन में बसाया
मेरा मन बन गया मंदाकिनी

तेरे चरणों से हे इष्ट मैं ऐसे लिपटू
जैसे चन्दन वृक्ष से लिपटता सर्प
माना हूँ मैं तो तेरा दास अज्ञानी
तेरी शरण में आऊं समझूँ जीवन मर्म

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