Saturday, May 2, 2015

श्रीकृष्ण उपदेश

भगवान कृष्ण ने गीता के नवें अध्याय के २९वें श्लोक
में कहा है :--
"समोहम सर्वभूतेषु न में द्वेश्योस्तिन प्रिय: ये
भजन्ति तु मां भक्तयां मई तें तेषु "
अनुवाद इस प्रकार है -----मैं सब भूतों में समभाव से
व्यापत हूँ ,ना कोई मेरा प्रिय है ना अप्रिय है परंतु
जो भक्त मुझको प्रेम से भजते है वे मुझमें है और मैं
भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ ।

साँई गुणातीत थे और गुणातीत ब्रहम स्वरूप ही है ।

भगवान कृष्ण ने गीता के १४वें अध्याय के २४वें श्लोक
में वर्णन किया है :--
"जो निरन्तर आत्म भाव में स्तिथ ,दुख-सुख
को समान समझने वाला ,मिट्टी,पत्थर और स्वर्ण में
समान भाव वाला ज्ञानी ,प्रिय तथा अप्रिय
को एक-सा मानने वाला अपनी निंन्दा स्तुति में
भी समान भाव वाला है|
फिर २५वें श्लोक में पूर्ण किया:--
जो मान अपमान में सम है ,मित्र और बैरी पक्ष में
भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भो में अभिमान से रहित
है , व्ह पुरुष गुणातीत कहा जाता है |
और फिर २६वें श्लोक में पूर्ण किया :---
जो पुरुष अव्यभिचारी भक्ति योग
द्वारा मुझको निरंतर भजता है , वह भी इन
तीनो गुणो को भलीं-भातिं लांघकर
सच्चिदाननद्घन ब्रहम को प्राप्त होने योग्य बन
जाता है |
" मेरा साँई जब तक देह में विराजमान था
तब तक पूर्ण योगी था,प्रेम स्वरूप था
देह त्याग कर गुणातीत ब्रहम में व्याप्त हो गया |"

No comments:

Post a Comment