Thursday, May 7, 2015

साँई तेरा गुणगान

साँई के मुखमण्डल की दिव्यप्रभा देख
अति प्रफुल्लित होता मेरा ये चित्त
जैसे मानो कि अरुणोदय समय
क्षितिज पर रवि हो रहा हो उदित

साँई तेरी लीला है अवर्णनीय
एवम् तेरा रूप है अति रमणीय
तेरा रूप देख तेरी लीला का पान करूँ
भव की चिंता छोड़ तेरा ही गुणगान करूँ

साँई तुझसे हुई मुझे अनुपम ज्ञान की उपलब्धि
सारे दुःख दर्द दूर हो मिली मुझे सुख समृद्धि
तुझसे मिले ज्ञान की विस्मृति न हो मृत्युपर्यन्त
तुझे साष्टांग नमन करूँ हे मेरे आदि हे मेरे अंत

जब जब साईं के श्री दर्शन करूँ
हो मेरे चक्षुओं को हो  रसानुभूति
उसी पल मेरे समस्त पाप कट जाये
जब लगाऊ मस्तक पर साई की विभूति

न करूँ मैं किसी पर वाणी से वज्रपात
वाणी अपनी मधुर रखूँ जोडू सबके हाथ
संग सदा ही नेक रखूँ मेरा दृष्टिकोण
बोलू जब भी मधुर बोलू अन्यथा रहू मौन

साँई तुम मेरी नजरो से अब न होना ओझिल
नही तो मेरी साँसे लगने लगेगी मुझे बोझिल

No comments:

Post a Comment