Wednesday, August 12, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 18 व 19

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 18 व 19

श्री साँई के चरणों का करके ध्यान
हम पठन करते हैं अब यह अध्याय
धन्य हेमाड जी जो साँई सच्चरित्र रचे
तभी हम साँई जीवनगाथा जान पाये ।।1।।

अपने शिष्य की योग्यता पर
सद्गगुरू ध्यान देते हैं विशेष
शिष्य का चित्त स्थिर रहता
सद्गुरू देते उपयुक्त उपदेश ।।2।।

सदगुरू वर्षाऋतु के मेघ सदृश
जो सर्वत्र समान जल बरसाय
गुरू सभी भक्तो को दे उपदेश
भक्तो को ज्ञान की प्राप्ति कराय ।।3।।

बालक के उपचार हेतु जैसे
माँ उसे कड़वी औषधि पिलाय
वैसे भक्तो के कल्याण हेतु साँई
उपदेश दे ज्ञान की बात बताय ।।4।।

सदगुरू साँई ज्ञान चक्षु खोल
हमें दिव्यता का अनुभव कराय
विषयवासना से आसक्ति नष्ट हो
ज्ञान और वैराग्य प्राप्त हो जाय ।।5।।

ज्ञान में उन्नति तभी सम्भव हैं
जब साँई सानिध्य मिल पाये
साँई जी भक्तकामकल्पतरू हैं
दुखो से मुक्त कर सुखी बनाय ।।6।।

ख्याति प्राप्त एक श्री साठे थे
हुए एक बार वे दुखी व निराश
क्योंकि व्यापार में उन्हें हानि हुई
सोचे घर छोड़ करूँ एकांत वास ।।7।।

एक मित्र की सलाह मानकर
साठे जी ,साँई-दर्शन को आये
गत जन्म के शुभ कर्म हैं ये मेरे
यह सोच साँई चरणों में गिर जाय ।।8।।

दृढ़ संकल्प के व्यक्ति साठे
आरम्भ किये गुरूचरित्र पठन
सात दिन में ही पठन पूर्ण हुआ
बाबा ने दिया उसी रात्रि उन्हें स्वप्न ।।9।।

अपने हाथ में चरित्र लिए बाबा
स्वप्न में साठे जी को समझाय
साँई सम्मुख बैठ कर साठे जी
ध्यानपूर्वक श्रवण किये जाय ।।10।।

निद्रा से जब साठे जी जागे
करने लगे स्वप्न का स्मरण
बाबा की कृपा हुई मुझ पर
यह सोच हुए वे अति प्रसन्न ।।11।।

काकासाहेब जी को साठे
अपना सम्पूर्ण स्वप्न सुनाये
बोले बाबा से प्रार्थना करो
बाबा स्वप्न का अर्थ समझाये ।।12।।

काकासाहेब जब साँई से पूछे
साँई का साठे हेतु था यह ज्ञान
एक सप्ताह और वे पारायण करें
चित्त शुद्ध हो जाएगा,होगा कल्याण ।।13।।

उस समय वहाँ थे हेमाड जी
सेवा कर रहे बैठ साँई चरणों में
बाबा ने जो साठे जी को कहा
विचारने लगे हेमाड जी मन में ।।14।।

केवल सप्ताह के पारायण से ही
साठे को मनवांछित फल मिल जाय
चालीस वर्षों से गुरूचरित्र पारायण का
क्यो परिणाम मुझे अब तक न मिल पाय ।।15।।

साठे का केवल सात दिनो का
शिर्डी वास सफल कहलाय
ये मेरी पिछले सात वर्षों की
साँई भक्ति क्या व्यर्थ जाय ।।16।।

चातक पक्षी समान राह देखूँ
कब कृपाघन कृपा बरसाये
मुझे यह विचार आये थे कि
साँई को सब ज्ञात हो जाये ।।17।।

भक्त सदा यह अनुभव करते
साँई करते कुविचारों का दमन
समस्त विचार साँई को ज्ञात हैं
देते उत्तम विचारों को प्रोत्साहन ।।18।।

हेमाडजी के विचार जान साँई
आज्ञा दे- शामा के यहाँ जाओ
कुछ समय वार्तालाप करो उनसे
और पंद्रह रूपये दक्षिणा ले आओ ।।19।।

स्नान कर वस्त्र पहन रहे थे शामा
जब हेमाडजी उनके घर को जाय
शामा जी उनसे पूछे आप यहाँ कैसे
उदास क्यो हैं आप,अकेले ही आय ।।20।।

हेमाडजी से शामा कहने लगे
बैठिए ,विश्राम कीजिए आप
पूजनादि से मैं निवृत हो जाऊँ
फिर करेंगे सुख से वार्तालाप ।।21।।

हेमाड जब खिड़की ओर देखे
वहाँ वे नाथ भागवत रखी पाय
नित्य वे नाथ भागवत पाठ करते
किंतु आज पाठ पूरा न कर पाये ।।22।।

जब ग्रन्थ उठाकर हेमाड खोले
अपूर्ण भाग का पृष्ठ सामने पाये
इसलिए साँई ने मुझे यहाँ भेजा
यह सोच साँई लीला समझ आये ।।23।।

अपूर्ण रहा पाठ वे पूर्ण किये
पूजा से निवृत हो शामा आये
हेमाड शामा से वार्ता करने लगे
व कहे साँई एक संदेश भिजवाये ।।24।।

मेरी आज्ञा से शामा के घर जाकर
उनसे पन्द्रह रूपये दक्षिणा लाओ
थोड़ी देर वार्तालाप भी करो उनसे
उन्हें साथ ले द्वारकामाई लौट आओ ।।25।।

शामा बोले फूटी कौड़ी भी नही
दक्षिणा में लो पन्द्रह नमस्कार
हेमाड जी यह सुन कहने लगे
आपकी यह दक्षिणा हैं स्वीकार ।।26।।

शामा जी आइये वार्तालाप करे
आप कुछ साँई लीलाएं सुनाये
उन साँई लीलाओं को सुनकर
मेरे समस्त पाप नष्ट हो जाये ।।27।।

शामा कहे मैं तो अशिक्षित देहाती
हेमाड जी आप हैं एक अति विद्वान
कैसे आप समक्ष मैं लीला वर्णन करूँ
यहाँ आ साँई लीला आप लिए हैं जान ।।28।।

बाबा जी की लीलाये अगाध हैं
मुझे एक कथा की स्मृति हो आये
जैसी भक्त की निष्ठा तथा भाव हैं
वैसे ही बाबा उसे सहायता पहुँचाये ।।29।।

भक्त दे कभी कठिन परीक्षा
तभी वह बाबा से उपदेश पाय
उपदेश शब्द ज्यो ही हेमाड सुने
साठे की घटना स्मरण हो आय ।।30।।

हेमाड सोच रहे साँई यहाँ भेजे
चित्त की चंचलता नष्ट हो जाये
शामा से यह विचार प्रकट न कर
हेमाड ध्यान से कथा सुनते जाये ।।31।।

राधाबाई नाम की एक वृद्धा
साँई कीर्ति सुन शिर्डी को आये
निश्चय करें साँई गुरू बने उसके
साँई से उपदेश ग्रहण किया जाये ।।32।।

आमरण अनशन का निश्चय कर
वृद्धा ने अन्न व जल दिया छोड़
यह देख मैने साँई से की प्रार्थना
हे देव देखो उस वृद्धा की ओर ।।33।।

वृद्धा का दृढ़ निश्चय देख
साँई उस वृद्धा को बुलाये
मधुर उपदेश साँई ने दिया
उसे साँई कुछ यूँ समझाये ।।34।।

तुम मेरी माँ,मैं तुम्हारा बेटा
माँ तुम मुझ पर दया करो
जो कुछ मैं तुमसे कह रहा
ध्यानपूर्वक तुम उसे सुनो ।।35।।

मेरे एक गुरू बड़े सिद्ध पुरूष
सेवा की मैने रह गुरू के पास
दो पैसों की दक्षिणा उन्होंने ली
एक थी धैर्य दूसरी दृढ़ विश्वास ।।36।।

ये दक्षिणा जब गुरू को दी
गुरू हुए मुझसे अति प्रसन्न
बारह वर्ष गुरू सेवा में गुजरे
किया गुरू ने मेरा भरण पोषण ।।37।।

दृढ़ विश्वास रख, धैर्य धारण कर
दीर्घ काल गुरू सेवा में रहा ध्यान
विश्वास तथा धैर्य यह दक्षिणा हुई
ये दोनों हैं जुड़वाँ बहनो के समान ।।38।।

कछुवी प्रेमदृष्टि से पालन करे
चाहे बच्चे समीप हो या हो दूर
वैसे ही मैं अन्य स्थान भी रहूँ
गुरू सदा कृपादृष्टि रखे भरपूर ।।39।।

हे माँ बताओ कैसे मैं मंत्र फूंकूँ
गुरू मुझे कोई मंत्र न सिखलाये
ध्यान रखो गुरू कछुवी समान हैं
प्रेमदृष्टि से संतोष प्राप्त हो जाय ।।40।।

हरि,हर ,ब्रह्म के अवतार गुरू
रखो गुरू में तुम पूर्ण विश्वास
यहाँ बैठकर मैं सत्य ही बोलूँगा
माँ अब तो त्यागो तुम उपवास ।।41।।

कंठ रूंध गया साँई कथा सुनकर
हेमाड जी कोई शब्द न बोल पाय
मध्यान्ह आरती प्रारम्भ होने लगी
शामा हेमाड द्वारकामाई को जाय ।।42।।

बापूसाहेब जोग पूजन आरम्भ करे
नर-नारी साँई बाबा की आरती गाय
हेमाड जी का हाथ पकड़ शामा पहुँचे
बाबा उन दोनों को अपने पास बैठाय ।।43।।

हेमाड से साँई दक्षिणा मांगे
जो दक्षिणा वे शामा से लाये
पन्द्रह नमस्कार भेजे हैं शामा
साँई को ऐसा हेमाड बतलाये ।।44।।

बाबा कहे जो वार्तालाप हुई 
वह मुझको सुनाओ तुम हेमाड
हेमाड कहे आपकी कथा सुनी
साँई आपकी लीलाएं हैं अगाध ।।45।।

हेमाडजी ने सारी कथा सुना दी
साँई पूछे क्या अर्थ समझ में आय
कथा स्मरण कर मेरा ध्यान करोगे
तो समस्त कुप्रवृत्तियां शांत हो जाय ।।46।।

हेमाड बोल बोलने लगे
हाँ देव अर्थ समझ आया
चित्त की चंचलता नष्ट हुई
सत्य मार्ग का पता चल पाया ।।47।।

साँई जी उपदेश देने लगे
आत्मज्ञान हेतु करो ध्यान
करत करत अभ्यास के ही
कुप्रवृत्तियां हो जाये शांत ।।48।।

निराकार स्वरूप का ध्यान करो
न हो तो देखो रूप मेरा साकार
तुम्हे ब्रह्म की प्राप्ति हो जायेगी
ध्याता,ध्यान,ध्येय होंगे एकाकार ।।49।।

दूर दूर किनारे कछुवी व बच्चे
उन्हें ह्रदय से भी न लगा पाय
दूर से ही प्रेम दृष्टि रखे उन पर
बच्चों का भरण पोषण हो जाय ।।50।।

गुरू शिष्य का सम्बंध भी
कछुवी व उसके बच्चे समान
शिष्य कहि भी निवास करें
कृपादृष्टि रख,रखते गुरू ध्यान ।।51।।

साँई के यह शब्द कहते ही
मध्यान्ह आरती हुई सम्पूर्ण
साँई की जय बोलने लगे सब
साँई के प्रति रखकर भाव पूर्ण ।।52।।

साँई को नमस्कार करके जोग
मिश्री का प्रसाद साँई को दे जाय
हेमाड को यह प्रसाद दे साँई बोले
मिश्री सम मधुर होकर सुख पाय ।।53।।

हेमाड बाबा को साष्टांग प्रणाम किये
इसी प्रकार दया करना आप हे देव
उन्हें आशीर्वाद देकर साँई कहने लगे
कथा श्रवण कर सार ग्रहण करो सदैव ।।54।।

प्यासे को जल,वस्त्रहीन को वस्त्र
व क्षुधा पीड़ित को दो तुम भोजन
सभी का तुम आदर सत्कार करो
भगवान तुमसे अवश्य होंगे प्रसन्न ।।55।।

कोई तुमसे द्रव्य याचना करें
और न हो तुम्हारी देने की इच्छा
तो बुरा व्यवहार तुम उससे न करो
अपनाओ अच्छे आचरण की शिक्षा ।।56।।

कोई तुम्हारी निंदा करें
न करो तुम उस पर क्रोध
निश्चित ही तुम सुखी रहोगे
अगर करोगे इस बात का बोध ।।57।।

मैं और तू का भाव भेदवृति हैं
जब यह दीवार नष्ट की जाय
गुरू शिष्य में पृथकता न रहे
मिलन का पथ सुगम हो जाय ।।58।।

प्रातःकाल तुम्हारे ह्रदय में
गर कोई उत्तम विचार आये
तो दिन भर उसकी स्मृति रहे
चित्त को प्रसन्नता मिल जाये ।।59।।

ऐसा ही अनुभव हेमाड किये
जब सोकर उठे हेमाड एक दिन
राम नाम का स्मरण उन्हें हो आया
सोचे नामस्मरण में रहूँ मैं आज लीन ।।60।।

प्रसन्न हो पुष्प हाथ में ले
वे करने गए बाबा के दर्शन
बूटी वाड़े के समीप आते ही
सुनाई दिया उन्हें मधुर भजन ।।61।।

औरंगाबादकर गा रहे लय से
प्रभु श्री राम का ही सुन्दर भजन
यही विचार हेमाडजी ने किया था
करूँ आज अखंड राम नाम स्मरण ।।62।।

रामनाम जप का ऐसा प्रभाव
भक्तो की पूरी होती सब इच्छाएं
राम नाम स्मरण करते रहने से
भक्तो के सभी कष्ट दूर हो जाये ।।63।।

साँई जी की लीला जान
हेमाड जी प्रसन्न हो जाये
साँई जी को सब ज्ञात रहता
उत्तम विचार जो मन में आये ।।64।।

बाबा वहाँ नही तब एक जन
भाई को अपशब्द कह जाय
उसके कहे अपशब्द ऐसे कटु
सुनने वाले घृणा से भर जाय ।।65।।

धन्यवाद के पात्र हैं निंदक
निंदा करना हैं उनका व्यवहार
जिव्हा से दूसरों के दोष दूर करे
दुसरो का हो जाता हैं उपकार ।।66।।

जब बाबा को यह ज्ञात हुआ
वे कहे उसे यह बात लो जान
विष्ठा खाते उस सुकर को देखो
तुम्हारा आचरण हैं उसी समान ।।67।।

अनेक शुभ कर्मों के फल ये
जो तुम्हे मानव तन मिल पाय
ऐसा आचरण अगर रखोगे तुम
शिर्डी कैसे सहायता कर पाय ।।68।।

परिश्रम तुम करते रहो
आलस्य का करो त्याग
उन्नति तुम्हारी हो जायेगी
मिलेगा परिश्रम का लाभ ।।69।।

भक्त जब अनन्य भाव से
साँई की शरण मे आ जाय
जैसे किसी सागर में लहर हो
भक्त खुद को साँई से जुड़ा पाय ।।70।।

कहते किसी को साँई बाबा
करो भगवत लीलाये श्रवण
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम ज्ञानेश्वरी का पठन ।।71।।

किसी को साँई जी कहते
करो तुम भगवत्पादपूजन
तो किसी को साँई बतलाते
करो तुम गीता का अध्ययन ।।72।।

किसी को कहे साँई बाबा
तुम विष्णु सहस्रनाम जपो
किसी को खंडोबा मंदिर भेजे
किसी को कहे मेरे पास ही रहो ।।73।।

किसी को प्रत्यक्ष उपदेश वे देते
किसी के स्वप्न में वे दृष्टांत दे जाये
एक मदिरा सेवी के स्वप्न में आकर
मद्यपान त्याग की शपथ खिलवाये ।।74।।

किसी को मंत्र का अर्थ
साँई स्वप्न में ही समझाय
कुछ हठयोगी को वे राय दे
हठ छोड़कर धैर्य रखा जाय ।।75।।

राधाकृष्णमाई के घर समीप
एक दिन साँई बाबा जी आये
वे भक्त से सीढ़ी लाने को कहे
साँई आज्ञा मान वह सीढ़ी लाये ।।76।।

वामन के घर सीढ़ी लगाई
साँई उनके घर पर चढ़ जाये
राधामाई के छप्पर से होकर
साँई दूसरे छोर से उतर आये ।।77।।

इसका अर्थ कोई न समझे
कैसी लीला किये बाबा साँई
ज्वर दूर करने साँई लीला रचे
तब ज्वर से पीड़ित थी राधामाई ।।78।।

जो भक्त सीढ़ी था लाया
साँई से दो रूपये वह पाय
यह अधिक पारिश्रमिक क्यो
अन्य भक्त साँई से पूछे जाय ।।79।।

परिश्रम का पूर्ण मूल्य दो
भक्त को ऐसा साँई समझाये
जो पूर्ण लगन से परिश्रम करें
उदारता से भुगतान किया जाये ।।80।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
इसमें साँई लीलाओं का समावेश
इस अध्याय का पठन मनन करके
अपनाएंगे साँई बाबा के दिये उपदेश ।।81।।

अगर कुछ त्रुटि हुई मुझसे
बाबा आप मुझे माफ़ करो
आप ही तो आराध्य देव हैं
बाबा सदा आप साथ रहो ।।82।।

तुझसे कहना चाह रहा साँई
'गौरव' अपने मन की ये बात
सब पर तु कृपा बरसा दे साँई
और सदा रहना तू सबके साथ ।।83।।

।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।

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