Saturday, August 8, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य सार:- अध्याय 16 व 17

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 16व17* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

श्री साँई की लेकर आज्ञा व
करके साँई चरणों का ध्यान
इस काव्य को हम आगे बढ़ाये
कि साँई समझाए क्या हैं ब्रह्मज्ञान ।।1।।

प्रेम व भक्ति से अर्पण की वस्तु
साँई कर लेते सहर्ष ही स्वीकार
भेंट की वस्तु साँई अस्वीकार करते
जब वह भेंट की जाती रख अहंकार ।।2।।

एक धनाढय व्यक्ति आये शिर्डी
रख ब्रह्मज्ञान प्राप्ति की इच्छा
आओ अब हम पठन कर ले
बाबा ने दी उन्हें क्या शिक्षा ।।3।।

सब प्रकार से सम्पन्न एक धनी व्यक्ति
सुने जब वह बाबा की कीर्ति व गुणगान
मित्र से कहे कोई अभिलाषा शेष नही
शिर्डी जाकर लूँ बाबा से मैं ब्रह्मज्ञान ।।4।।

मित्र कहे मोहग्रस्त प्राणी हो तुम
न किये भूल से भी कभी तुम दान
स्त्री,संतान,द्रव्य में मन हैं तुम्हारा
भला कैसे मिलेगा तुमको ब्रह्मज्ञान ।।5।।

मित्र के परामर्श की कर उपेक्षा
धनाढय व्यक्ति शिर्डी को आये
साँई बाबा के दर्शन करके वह
श्री साँई चरणों में गिर जाये ।।6।।

प्रार्थना करने लगे वह साँई से
मुझे ब्रह्मज्ञान प्राप्ति हो जाय
राह में जो कष्ट उठाया हैं मैंने
वह सार्थक व सफल कहलाय ।।7।।

बाबा बोले- न हो तुम अधीर इतने
शीघ्र ही मिल जाएगा तुम्हे ब्रह्मज्ञान
बिरले ही यहां ब्रह्मज्ञान को हैं आते
बाकि तो आते मिले धन, पद व मान ।।8।।

ऐसा कहकर बाबा उससे
उसको अपने पास बैठाय
कुछ देर वे अपना प्रश्न भूले
साँई उन्हें अन्य चर्चा में लगाय ।।9।।

बुलाकर एक बालक को साँई जी
नन्दू के यहाँ से पाँच रूपये मंगवाये
नन्दू मारवाड़ी के घर तो ताला लगा
बालक आकर साँई को ऐसा बतलाय ।।10।।

साँई दूसरे व्यापारी के यहाँ भेजे उसे
वहाँ से असफल हो वह वापस आय
कही रूपये ना मिले उस बालक को
यह प्रयोग साँई दो-तीन बार दोहराय ।।11।।

बाबा सगुण ब्रह्म अवतार हैं
नन्दू घर पर नही,था उन्हें ज्ञात
राशि की उन्हें आवश्यकता नही
यह नाटक रचा धनाढय के परीक्षार्थ ।।12।।

ब्रह्मजिज्ञासु वह धनाढय व्यक्ति
रखे हुए थे नोटों की गड्डी अनेक
सचमुच वे ब्रह्मज्ञान आकांक्षी होते
तो शांत न बैठे रहते यह सब देख ।।13।।

धनाढय व्यक्ति दर्शक बने रहे
जब बालक यहाँ वहाँ दौड़ा जाय
भला ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति कैसे होगी
जब अल्प राशि भी उनसे ना दी जाय ।।14।।

अधीर होकर वह बाबा से बोले
कराओ मुझे शीघ्र ब्रह्मज्ञान दर्शन
बाबा कहे क्या तुम्हे समझ न आया
ब्रह्म दर्शन कराने का ही था यह प्रयत्न ।।15।।

पाँच वस्तुओं का त्याग करो
अगर करना हो ब्रह्म का दर्शन
ये हैं पाँच प्राण,पाँच इन्द्रियाँ
बुद्धि, अहंकार तथा मन ।।16।।

बाबा जी उस धनाढय व्यक्ति को
विस्तार से इस विषय पर समझाय
ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति अगर करनी हो
तो होनी आवश्यक हैं कुछ योग्यताएं ।।17।।

मुक्ति की उत्कंठा व विरक्ति भाव रखे
सत्यवादी बन उचित आचरण अपनाय
व आत्म-दर्शन कर दृष्टि अंतमुर्खी बने 
दुष्टता त्याग कर पाप से शुद्धि हो जाय ।।18।।

सारवस्तु ग्रहण करें तथा
आसक्तियो को न अपनाए
आत्मज्ञान स्वप्रयत्न से न मिले
गुरूकृपा से सहज प्राप्त हो जाय ।।19।।

उसके चित्त की हो जाये शुद्धि
जो मनुष्य करते हैं कर्म निष्काम
इन्द्रियाँ रूपी घोड़े नियंत्रण में होये
व वश में आ जाये मन रूपी लगाम ।।20।।

ईश-कृपा होने से ही
यह ज्ञान प्राप्त हो पाये
विवेक तथा वैराग्य देकर
भगवान तब मिल जाये ।।21।।

यह उपदेश जब हुआ समाप्त 
बाबा बोले अच्छा महाशय सुनिये
पाँच के पचास गुने रूपये जेब में
कृपया करके उन्हें आप निकालिये ।।22।।

गड्डी बाहर निकाल जब उसने गिने
निकले नोट वे दस-दस के पच्चीस
बाबा की सर्वज्ञता देखकर वह व्यक्ति
बाबा के चरणों में झुकाये अपना शीश ।।23।।

बाबा बोले तब उस व्यक्ति से
अपने द्रव्य को तुम लो समेट
बिना लोभ व ईर्ष्या को त्यागे
कैसे होगी ब्रह्म से तुम्हारी भेंट ।।24।।

धन, संतान तथा ऐश्वर्य में
लगा हुआ हो जिसका मन
आसक्तियों को त्यागे बिना
कैसे हो पाए ब्रह्मज्ञान दर्शन ।।25।।

जहाँ लोभ हैं वहाँ ब्रह्म नही हैं
समझ ले हम यह ज्ञान की बात
तुलसीदास जी भी हमें समझाते
रात्रि व सूर्य नही होते एक साथ ।।26।।

कण मात्र भी लोभ गर मन में रहा
समझिए व्यर्थ ही हैं सब साधनाएं
आत्मानुभूति प्राप्ति में होंगे सफल
जब फल प्राप्ति की न हो इच्छायें ।।27।।

अहंकार को बिना त्यागे
कैसे गुरू-शिक्षा मिल पाय
मन का पवित्र होना हैं जरूरी
साधनाओ का महत्त्व बढ़ जाय ।।28।।

साँई कहे-असत्य बोलता नहीं
मैं यहाँ द्वारकामाई में बैठकर
मेरा खजाना तो पूर्ण हैं परन्तु
मैं पूर्ति करता योग्यता देखकर ।।29।।

अतिथि को जब निमंत्रण मिले
परिवार भी संग में भोजन पाय
धनाढय संग अन्य भक्तो को भी
बाबा का यह ज्ञान भोज मिल जाय ।।30।।

साँई का आशीर्वाद प्राप्त कर
धनी संग सभी हर्षित हो जाय
बाबा को प्रणाम करके सभी
अपने अपने घर को लौट जाय ।।31।।

स्त्री,संतान,घर-द्वार कुछ भी नही
भिक्षा ले साँई करे नीम नीचे वास
संसार मे रह कैसे आचरण करें हम
यह साँई से शिक्षा ले बन उनके दास ।।32।।

माता पिता, कुटुंब व देश धन्य हैं
जहाँ जन्म लिये साँई शिर्डी के संत
साँईबाबा आसाधारण परम् श्रेष्ठ हैं
कहे साँई सच्चरित्र रचयिता हेमाडपंत ।।33।।

यह अध्याय इति सम्पूर्ण हुआ
कुछ भूल हुई हैं तो साँई करे क्षमा
'गौरव' करे साँई से यह अरदास कि
साँई सबका ख्याल रखे जैसे रखे माँ ।।34।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

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