*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 20
श्री साँई चरणों का ध्यान कर
आरम्भ करते अब यह अध्याय
साँईजी से करते हैं हम ये प्रार्थना
साँई सभी पर अपनी कृपा बरसाय ।।1।।
हम भक्तो के आराध्य
बाबा साँई हैं निराकार
भक्तो के प्रेमवश ही
प्रगटे वे रूप साकार ।।2।।
यह विश्व नाट्यशाला
साँई ने किया अभिनय
हम साँई लीला याद कर
आइये हो जाये साँईमय ।।3।।
बाबा का ध्यान करे और
मन को शिर्डी में पहुंचाये
साँई मध्यान्ह आरती का
हम सभी स्मरण किये जाये ।।4।।
पूर्ण हुई जब मध्यान्ह आरती
द्वारकामाई से साँई बाहर आये
एक किनारे खड़े हो बाबा साँई
भक्तो को प्रेम से उदी देते जाय ।।5।।
भक्तगण साँई के श्री चरण छूते
साँई दोनो हाथ से उदी देते जाय
मस्तक पर उदी का टीका लगा
साँई उन्हें अपने घर को लौटाय ।।6।।
कितना अच्छा दृश्य था यह
जब भक्त साँई के दर्शन पाय
गर भक्तगण कल्पना करें तो
वही आनन्द अनुभव कर पाय ।।7।।
वैदिक संहिता के मंत्रों का
ईशोपनिषद में हैं समावेश
इसके श्लोकों में निहित हैं
आत्मतत्ववर्णन के संदेश ।।8।।
टीका लिखे दासगणु जी
सारतत्त्व ग्रहण न कर पाये
कई विद्वानों से परामर्श किये
परन्तु दासगणु संतोष न पाय ।।9।।
इसका अर्थ तो वही कर सके
जिसे हो चुका आत्मसाक्षात्कार
ऐसा विचार कर के दासगणु जी
जाये साँई दर्शन को साँई के द्वार ।।10।।
साँई की चरण वंदना कर
दासगणु प्रार्थना किये जाय
साँई आशीष दे दासगणु को
कठिनाइयों का हल बताय ।।11।।
बाबा कहे गणु जब तुम लौटोगे
विलेपार्ला में काका के घर जाओ
काका दीक्षित की नौकरानी हैं वहाँ
उससे अपनी शंका का निवारण पाओ ।।12।।
वहाँ भक्त यह सुन सोचने लगे
साँई केवल विनोद किये जाय
भला अशिक्षित नौकरानी कैसे
इस समस्या का हल कर पाय ।।13।।
किंतु दासगणु को था विश्वास
असत्य नही होते साँई के वचन
साँई वचन साक्षात ब्रह्मवाक्य हैं
साँई के वचनों का किये वे पालन ।।14।।
साँई वचनों में रख पूर्ण निष्ठा
दासगणु काका के यहाँ जाय
मीठी नींद का आनंद वे ले रहे
गीत के स्वर कानो में पड़ जाय ।।15।।
जरी के आँचल की लाल साड़ी
अति सुंदर उसके किनारे व छोर
जब यह मधुर गीत दासगणु सुने
उठकर देखने लगे बाहर की ओर ।।16।।
एक बालिका गीत गा रही
और माँजे जाये वह बर्तन
फटे कपड़े पहने हुए उसने
दरिद्रता में भी थी वह प्रसन्न ।।17।।
दासगणु यह सब देख रहे कि
गीत गा रही बालिका थी प्रसन्न
बालिका को उत्तम साड़ी देने का
किये एम वी प्रधान से वे निवेदन ।।18।।
साड़ी पाये जब बालिका
वह ऐसे प्रसन्न हुई जाय
जैसे क्षुधापीडित व्यक्ति
मधुर भोजन जब पाय ।।19।।
एक दिन ही साड़ी पहनकर
बालिका संदूक में रख जाय
अगले दिन पुराने कपड़े पहन
पहले के समान प्रसन्न हुई जाय ।।20।।
सुख हो या फिर हो भले दुख
दोनों में बालिका थी एक समान
सुख दुख दोनों मन पर निर्भर हैं
तब दासगणु ने ली यह बात जान ।।21।।
जो हमें ईश्वर ने दिया हैं
समझो उसे ईश्वर की इच्छा
जो हैं उसी में संतोष मनाओ
उपनिषद पाठ की यही शिक्षा ।।22।।
भक्तों को शिक्षा देने के लिये
साँईजी कई युक्ति काम में लाय
कभी किसी को वे कही भेजते
किसी को निद्रा में दर्शन दे जाय ।।23।।
दासगणु को विलेपार्ला भेज
साँई उन पर ऐसे कृपा बरसाय
वे दासगणु की समस्या का हल
काका की नौकरानी द्वारा कराय ।।24।।
काकाजी की नौकरानी द्वारा
दासगणु समस्या का हल पाय
उन्हें अमूल्य शिक्षा मिल गयी
यह लीला साँईबाबा जी रचाये ।।25।।
ईशोपनिषद की मुख्य देन हैं
नीति शास्त्र से सम्बन्धी शिक्षा
सभी वस्तु ईश्वर से ओत प्रोत हैं
जो प्राप्त हो वो ईश्वर की इच्छा ।।26।।
ईशकृपा से जो कुछ मिला
उसमे ही आनन्द मनाओ
धन तृष्णा की प्रवृति छोड़
जो हैं उसमें संतुष्टि पाओ ।।27।।
फल की कोई इच्छा किये बिना
प्रभुइच्छा मान कर्म करते जाओ
आलस्य से आत्मा का पतन होता
इसलिए आलस्य को न अपनाओ ।।28।।
शोक, मोह व दुख दूर रहते
जो करे सभी में आत्मदर्शन
जो सभी प्राणियों में प्रभु देखे
वे प्राणी रहते हैं सदा ही प्रसन्न ।।29।।
पर्वत सा दुख हो जीवन में
या फिर बाग जैसा सुख आये
दोनों स्थिति में एक समान रहो
यह बात यह अध्याय समझाये ।। 30।।
यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
साँई कृपा ऐसी हुई जाये
'गौरव' का हाथ पकड़ साँई
स्वयं ही काव्य रूप लिखवाये ।।31।।
साँई से करते हैं हम प्रार्थना
साँई सभी पर कृपा बरसाये
सभी के साथ साँई रहे हमेशा
सबके जीवन में खुशियाँ लाये ।।32।।
।। श्री साँईंनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
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