Thursday, August 6, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप:- अध्याय 15

*श्री साँई सच्चरित्र अध्याय 15* (काव्य रूप)


साँई को साष्टांग प्रणाम हैं
साँई आज्ञा से यह लिख पाय
यह काव्य साँई जी को अर्पण हैं
पढ़ने वाले पर साँई कृपा हो जाय ।।

मुझे लिखने का थोड़ा भी ज्ञान नही
कुछ त्रुटि हुई तो करना साँई माफ
समझ नही कैसे काव्य कृति लिखूँ
हाथ पकड़ लिखवाओ साँई आप

लंबा अंगरखा सिर पर फेंटा पहने
बाँध साफा दासगणु कीर्तन को जाय
साँई कहे नारद मुनि जैसे कीर्तन करो
क्यों दासगणु तुम ऐसा रूप सजाय ।।1।।

हाथ में वीणा ले ज्यो नारद जी
प्रसन्न मन से हरि कीर्तन को जाय
दासगणु महाराज गले मे पहन हार
साँई कीर्तन करते हुए करताल बजाय ।।2।।

बाबा की कीर्ति चहुँ ओर पहुँचे
इसका श्रेय दासगणु को हैं जाय
क्योंकि दासगणु का कीर्तन सुनकर
भक्तो के मन मे श्रद्धा उमड़ी आय ।।3।।

एक समय दासगणु कीर्तन करें व
सुने चोलकर, कर्मचारी थे अस्थायी
मन में कहे कि गर मैं उत्तीर्ण हुआ तो
तव दर्शन कर मिश्री प्रसाद बाटूंगा साँई ।।4।।

बाबा ने चोलकर के मन की सुनी
विभागीय परीक्षा में हुए वे उत्तीर्ण
नौकरी चोलकर की स्थायी हो गयी
उस निर्धन के दुख होने लगे अब क्षीण ।।5।।

निर्धन चोलकर का था कुटुंब बड़ा
सोचे खर्च घटा मितव्ययी बन जाये
नाठे घाट,सहाद्रि पार करना आसान
गरीब उम्बर घाट को कैसे पार कर पाये ।।6।।

संकल्प को लेकर उत्सुक चोलकर
पीने लगे वो बिना शक्कर की चाय
इस तरह कुछ द्रव्य एकत्र हुआ
चोलकर प्रसन्न हो शिर्डी को जाय ।।7।।

बाबा के दर्शन कर चरणों मे गिरे
बाबा को मिश्री का प्रसाद चढाये
कहने लगे दर्शन कर हुआ मैं प्रसन्न
आपकी कृपा से पूरी हुई सब इच्छाये ।।8।।

बाबा कहने लगे बापूसाहेब जोग से
पिलाओ इन्हें ज्यादा शक्कर की चाय
यह सुन चोलकर का ह्रदय भर आया
प्रेम से बहने लगी नेत्रों से अश्रु धाराएं ।।9।।

सदैव बाबा अपने भक्तो के साथ रहेंगे
गर श्रद्धा से उनके सामने हाथ फैलाये
शरीर से शिर्डी में होकर भी साँई जी को
ज्ञात हैं सात समुद्र पार की भी घटनाएं ।।10।।

साँई सभी प्राणियों के ह्रदय में बसे
ह्रदय में बसे साँई की पूजा की जाय
साँई के सर्वव्यापी स्वरूप को जो जाने
वह सौभाग्यशाली और धन्य हो जाय।।11।।

बाबा द्वारकामाई में बैठे हुए
छिपकली चिकचिक करती जाय
एक भक्त पूछे इसका अर्थ बाबा से
तब साँई इसका अर्थ सबको समझाये ।।12।।

औरंगाबाद से इसकी बहन
मिलने इससे आज यहाँ आय
इसलिए यह चिकचिक कर रही
क्योंकि प्रसन्नता से फूली न समाय ।।13।।

एक आदमी आया साँई दर्शन को
औरंगाबाद से हो घोड़े पर सवार
भूखे घोड़े को चना खिलाने को
झोली की धूल दी उसने झटकार ।।14।।

झोली में से एक छिपकली निकले
देखते देखते वह दीवार पर चढ़ जाय
बाबा अपने भक्त से कहे ध्यान से देखो
छिपकली बहन से मिल खुश हो जाय ।।15।।

दोनों बहनें एक दूसरे से मिली
व घूम घूमकर वे लगी नाचने
बाबा साँई तो सर्वव्यापक हैं
साँई सब कुछ ही तो जाने ।।16।।

साँईकृपा से समस्त कष्ट दूर होते
जो पठन मनन करते यह अध्याय
बाबा से हम जोड़ प्रार्थना हैं करते
सभी पर साँई अपनी कृपा बरसाय ।।17।।

बाबा सब लोगो पर कृपा करें
'गौरव' की बाबा से यह अरदास
इस जग में कोई भी दुखी न रहें
करे साँई सबके मन मे निवास ।।18।।


।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

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