*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 22
साँई चरणों में ध्यान लगा
यह अध्याय करें हम पठन
साँई जी की लीला हो जाये
सुखी हो जाये हमारा जीवन ।।1।।
श्री साँई, सर्वशक्तिमान हैं
साँई की प्रकृति हैं अगाध
वर्णन करने में असमर्थ हैं
वेद व सहस्त्रमुखी शेषनाग ।।2।।
आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।3।।
कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।4।।
जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।5।।
ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।6।।
दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।7।।
चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।8।।
साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।9।।
तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।10।।
साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।11।।
भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।12।।
साँई बाबा के वास से ही
तीर्थ बन जाये शिर्डी गाँव
भक्तगण शिर्डी आने लगे
पाते साँई कृपा रूपी छाँव ।।13।।
साँई प्रेम,साँई ज्ञान अपार हैं
वर्णन को शब्द न मिल पाये
बड़े धन्य हैं वे बाबा के भक्त
जो यह सब अनुभव कर पाये ।।14।।
कभी ब्रह्म में मगन रह
साँई दीर्घ मौन धारण करे
कभी आनन्द की मूर्ति बन
साँई रहे अपने भक्तो से घिरे ।।15।।
साँई जी कभी दृष्टांत देते
कभी वे विनोद किये जाय
वे कभी घण्टो प्रवचन देते
तो कभी सार रूप समझाय ।।16।।
साँई का मुखमंडल देखें
व साँई लीला सुनते जाय
भक्तगण फूले नही समाते
लीला श्रवण में आनंद आय ।।17।।
जलवृष्टि कण गिन सके
वायु भी संचित की जाय
किंतु साँई की लीला ऐसी
साँई लीला का अंत न पाय ।।18।।
साँई की लीलाएं अनेकों हैं
एक लीला पठन की जाये
कि कैसे रक्षा करते हैं साँई
व भक्तों को संकट से बचाये ।।19।।
बालासाहेब मिरीकर जी
एक समय चितली जाये
मार्ग में शिर्डी गाँव पधार
वे साँई दर्शन करने आये ।।20।।
साँई कहने लगे मिरीकर से
क्या तुम जानते द्वारकामाई
मिरीकर अर्थ समझ न सकें
तब उन्हें समझाने लगे साँई ।।21।।
जहाँ तुम बैठे हुए हो
वही तो हैं द्वारकामाई
जो उसकी गोद में बैठे
दूर होते दुख व कठिनाई ।।22।।
द्वारकामाई हैं अति दयालु
करे भक्तो के सभी कष्ट दूर
जो उसकी छत्रछाया में आये
आनन्द और सुख मिले भरपूर ।।23।।
मिरीकर को बाबा उदी दे
रखे उनके सिर पर वे हाथ
मिरीकर से बाबा कहने लगे
देकर उन्हें अपना आशीर्वाद ।।24।।
बायीं मुट्ठी बंद कर साँई
वे ले गए दायीं कुहनी पास
सर्प कुछ भी न कर पायेगा
रखो द्वारकामाई पर विश्वास ।।25।।
मिरीकर को ऐसा कह साँई
शामा को अपने पास बुलाये
साँई की आज्ञा हुई शामा को
वे मिरीकर संग चितली जाये ।।26।।
वे चितली को पहुंच कर
मारुति मंदिर में ठहर जाय
मिरीकर समीप एक सर्प था
किसी का ध्यान उधर न जाय ।।27।।
सर्प आवाज कर रेंगने लगे
चपरासी दौड़ लालटेन लाये
सर्प को देख वह चिल्लाने लगे
बालासाहेब भी भयभीत हो जाये ।।28।।
सब लोगो ने लाठी ली
सर्प का प्राणांत हो जाये
साँई ने जो संकट कहा था
पल में वह संकट टल जाये ।।29।।
साँई शब्द याद करे मिरीकर
साँई में उनकी निष्ठा बढ़ जाये
साँई कैसे भक्तो की रक्षा करते
भक्तो को संकट से साँई बचाये ।।30।।
नाना डेंगले ज्योतिषी एक
बापूसाहेब बूटी को बतलाये
आज तुम्हारे जीवन को भय हैं
यह सुनकर बापूसाहेब घबराये ।।31।।
बूटी साँई दर्शन को गए
तब साँई उन्हें समझाये
नाना जो तुमसे कह रहे
मेरे होते क्यो तुम घबराये ।।32।।
नाना से कह दो तुम कि
कुछ भी नही करेगा काल
अपनी चिंता को त्यागो तुम
तुम्हारा साँई देगा संकट टाल ।।33।।
जब बूटी गये शौच गृह
एक सर्प दिखाई दे जाय
उनका नौकर सर्प को देख
मारने को एक पत्थर उठाये ।।34।।
रेंग रेंगकर वह सर्प दूर हो
आंखों से ओझल हो जाय
साँई वचन का स्मरण करके
बूटी जी का मन बड़ा हर्षाय ।।35।।
कोरले वासी अमीर शक्कर
गठिया रोग से बड़ा कष्ट पाय
काम धंधा वह सारा छोड़कर
साँई शरण में वह शिर्डी आय ।।36।।
उसे बाबा ने आज्ञा दी
चावडी में करो निवास
उसकी पीड़ा दूर हो गई
अमीर रहा वहाँ नौ मास ।।37।।
एक रात वह बतलाये बिना
चावडी छोड़ कोपरगाँव जाय
अपनी भूल का अहसास हुआ
वापस लौटकर वह चावडी आय ।।38।।
एक रात को साँई बाबा
अब्दुल को पुकारे जाय
बत्ती लाओ यहाँ अब्दुल
कोई दुष्ट बिस्तर चढ़ जाय ।।39।।
साँई संगति में रह शक्कर
शब्दो का अर्थ समझ जाये
वहाँ एक साँप था बैठा हुआ
कुंडली मारे और फन फैलाये ।।40।।
साँप के प्राणों का अंत हुआ
अमीर के प्राण बचाये साँई
साँई का सानिध्य मिला उन्हें
थे साँई शक्कर के लिये सहाई ।।41।।
एक समय की बात हैं
हो रहा रामायण पठन
श्रोताओं में शामिल हो
पंतजी भी कर रहे श्रवण ।।42।।
रामायण पाठ के श्रवण में
श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाये
बिच्छु आ बैठे पंत दायें कंधे
पंत को पता भी ना चल पाये ।।43।।
श्रोता की रक्षा करे ईश्वर
पंत की दृष्टि कंधे पर जाये
कंधे पर बैठे बिच्छु को पंत
कथा श्रवण में तल्लीन पाये ।।44।।
श्रोताओं में विघ्न डाले बिना
पंत धोती के सिरे लिये जोड़
उसमे लपेट कर वे बिच्छु को
बगीचे में ले जाकर दिए छोड़ ।।45।।
एक समय काकाजी बैठे हुए
साँप खिड़की से भीतर आये
लोग छड़ी ले उसे मारने दौड़े
साँप छिद्र में अदृश्य हो जाय ।।46।।
अच्छा हुआ, बच गया जीव
मुक्ताराम कहने लगे यह बात
पंतजी ने उनकी अवहेलना की
हुआ इस विषय पर वाद विवाद ।।47।।
दो अलग अलग मत थे
निष्कर्ष न निकल पाये
साँई समक्ष प्रश्न आया
तब साँई उन्हें समझाये ।।48।।
समस्त विश्व ईश्वर अधीन
सबमें ईश्वर का वास होय
चाहे साँप हो या हो बिच्छु
या फिर प्राणी जीव कोय ।।49।।
सभी प्राणियों से करो
दया व स्नेह का व्यवहार
वैमनस्य का त्याग करो व
रखो सदा ही उचित विचार ।।50।।
साँई तव चरणों में रहना चाहे
बना रहे 'गौरव' आपका दास
आपका स्मरण सदा करता रहे
न ले आपकी सेवा से अवकाश ।।51।।
पूर्ण भाव से पठन हुआ
सम्पूर्ण हुआ यह अध्याय
साँई से हम आशीष मांगें
सब पर साँई कृपा हो जाय ।।52।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
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