Sunday, March 29, 2015

मेरे मन का साई

:-बाबा के मन्दिर के पत्थरों की दास्तान-:

कल मेरे मन के सांई मुझसे बोले कि तुम्हे मेरी शिरडी समाधि मन्दिर वाली मूर्ती कैसी लगती है मैने ज़वाब मे उत्तर दिया:-
'बाबा ये भी कोई पूछने की बात हुई।
ऐसी मनमोहक मूर्ती तो आज तक के किसी भी सांई मन्दिर की ना रही होगी।"

इस पर बाबा बोले सुनना चाहोगे मेरी इस मूर्ति के बनने की दास्तान। मै बोला बेशक बाबा बताओ ना।
इस पर बाबा ने मुझे यह कहानी सुनाई जिस पर अगर आप
सब भी गौर करे तो यह हम सब पर बखूब लागू होती है।
              जानते हो जब यह समाधि मन्दिर भूटी महाशय बनवा रहे थे तो रोज की तरह जब रात को जब महलसपति
महाराज मन्दिर का द्वार बंद करके घर चले जाते तों आधी रात को पत्थर आपस में बात किया करते थे। वह पत्थर जो फर्श पर थे, मेरी मूर्तिवाले पत्थर से अक्सर बोला करते थे, 'तुम्हारी भी क्या किस्मत है लोग हमें अपने पैरों से रौंदते हुए, जूते -चप्पलो से कुचलते हुए तुम्हारे पास आयेगें और तुम्हारे आगे श्रद्धा से हाथ जोड़ खड़े होंगे। तुमको फूल-मालाये चढ़ायेंगे।
     काश हम भी तुम्हारी जगह होते, पर हम तों यंहा फर्श पर लेटे-लेटे दर्द से कराहते रहते है। वाह!
किस्मत हो तों तुम्हारे जैसी।
      यह सुनकर मेरी मुर्तिवाला पत्थर बोला, 'भाई बात तों तुम
ठीक कह रहे हो पर याद करो वो दिन जिस दिन मुझ पर छेनी और हथौड़ों से मुझे तराशा जा रहा था, मैं उस चोट को बर्दाश्त करता रहता था, तुम सब मुझपर हँस रहे होते थे, तरस खा रहे होते थे। अगर तुमने भी वैसी चोटे अगर अपने जिंदगी में खाई होती, तों आज तुम भी यहाँ होते जहाँ मैं हूँ।
    
          अंत में बाबा ने कहा कि बच्चे ध्यान लायक बात यह है कि जिंदगी में कामयाबी बिना संघर्ष और बिना तकलीफों के किसी को नही मिलती, जो लोग इसे झेलते है सफलता उन्ही को मिलती है, किस्मत पर कुछ भी नही छोडा जा सकता।
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