Sunday, June 7, 2015

मैं इक नन्हा पँछी

इक दिन स्वप्न ऐसा आये मुझे
कि साँई चिट्ठी भेज बुलाये मुझे
मैं भी पंख लगा पँछी बन जाऊँ
साँई दर पहुँचते ही साँई गले लगाये मुझे

बिन पंखो का मेरा मन इक पँछी
उड़ जाता शिर्डी नगरी की ओर
मन में बड़े विकार दुविधा पाले था
शिर्डी पहुँच कर पाता सुकून और ठौर

मेरा मन इक नन्हा पँछी
निहारे साँई चरण की ओर
साँई चरणों के होते जब दर्शन
तो समझो जीवन में हो जाता भोर

मिले मुझ पापी को अगर अगला जन्म
तो बनना जाऊँ मैं इक नन्हा पँछी
ताकि साँई मिलन की प्यास जब जगे
तो शिर्डी उड़ जाऊं हो ऐसी किस्मत अच्छी

शिर्डी नगरी है बहुत दूर
जाने को जी है ललचाये
साँई मुझे भी पंछी बना दे
ताकि तेरे दर्शन कर पाये

साँई दर्श बिन मैं तो हूँ पागल
ज्यो बिन पर का होता पँछी
साँई दर्श पाता रहूँ मैं हर पल
अगर साँई बना दे किस्मत अच्छी

चिट्ठी लिखुँ आँखों के आंसुओ से
हे बाबा हे मेरे साँई तेरे ही नाम
पँछी बनकर तुझ तक चिट्ठी पहचाऊ
और कोयल बन गाउँ बस साँई राम

इस परिवार में भक्तजन सब ऐसे
जैसे धुन सुना रही कोयलो का समूह
मैं इन सबमे हूँ इक अदना सा पँछी
साँई गुणगान करता मेरे इस छोटे मुंह

साँई तू है मेरा हरा भरा बाग़
मैं हूँ तेरी बगिया का नन्हा पँछी
अहोभाग्य जो यहाँ जगह मिली मुझे
मुझ पापी की तूने किस्मत बनाई अच्छी
http://drgauravsai.blogspot.com/

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