: कुछ दिनो पूर्व एक जगह ं
मैंने अजब दृश्य देखा। दो साधु एक कुत्ते को डंड़े और तालों से मार
रहे थे। कारण पूछा तो पता चला वह
कुत्ता उनकी रोटी लेकर भागा था। नित्य
धार्मिक अनुष्ठान करने वाले, प्रभु की जय-जयकार
करने वाले और जीवन में आए सुख-दुख को, 'होय
वही जो राम रच राखा' कहकर संबल देने वाले साधु
अगले ही पल
अपनी रोटी छिन जाने से व्यथित हो उठे थे।
इतने, कि हिंसक हो गए। स्वयं पर विपदा आई तो हर वस्तु और
प्राणी में भगवान को देखने का प्रवचन देने वाले साधुओं
को कुत्ते में भगवान नहीं दिखे। इस आचरण से एक
बार फिर यह सिद्ध हुआ कि कोई व्यक्ति सर्वप्रथम मन से
अर्थात हृदय से साधु-सन्यासी होता है, उसके बाद
कर्म से साधु-सन्यासी होता है और, सबसे अंत में
वचन से साधु-सन्यासी होता है, किन्तु केवल
वेशभूषा से वह कदापि साधु-
सन्यासी नहीं हो सकता।
Sunday, May 3, 2015
साधू कौन ?
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