साई धुन जब से मैं गाने लगा
साई का दीवाना मैं कहलाने लगा
साई सागर में गोते मैं खाने लगा
श्रद्घा सबूरी का मोती मैं पाने लगा
साई का नित नित दर्शन मैं करने लगा
तब से साई रहमत की बरखा में नहाने लगा
साई साई जब से मैं अपने काव्य में जोड़ने लगा
सम्पूर्ण जीवन मेरा साईमय साईमय होने लगा
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