*राह साँई की*
ठान लिया अब मन में मैंने
कि जिंदगी गुजारनी नेकी में
साँई का वास हो हर जन में और
साँई दर्श करूँ हर साँई प्रेमी मे
साँई प्रेमी मिल जाते जहाँ
होता बस साँई तेरा गुणगान
साँई बातों से मन खिल जाता
रहता बस साँई का ही ध्यान ।
तेरा ही ध्यान रहे मुझे
और भूल बैठूं मैं ये जग
ऐसी लीला तू रच दे ना
साँई तू आराध्य तू ही रब
लीला तेरी कुछ होती ऐसी
कि पंगु भी चढ़ जाते हैं पर्वत
मुझे भी लीला तेरी दिखा साँई
तेरा नाम जपता रहता मैं हर वक्त
हर वक्त तेरा ही ध्यान रहता
साँई ऐसा क्या हैं जादू तुझमें
तेरी ही बातें होती हैं मेरी सबसे
परेशान हो भी रहता मैं सुख में
सुख में जीवन गुजर रहा हैं
क्योंकि इस जीवन में बसा तू
अब बस इस गुजारिश तुझसे
साँई आकर हो ले मुझसे रूबरू
रूबरू तू हो ले आकर साँई
ये जिंदगी मेरी जाएगी संवर
गर तू नही होता इस जीवन में
तो जीवन हो गया था जर्जर ।।
संवारता हैं साँई किस्मत उनकी
जो पीते श्रद्धा सबुरी का प्याला
साँई चरणों को शरण बना लो
No comments:
Post a Comment