*बाबा साँई के दोहे*
जाते घर घर माँगने साँई हमारे भिक्षा
बदले में दे देते वे श्रद्धा सबुरी की शिक्षा
जीर्ण शीर्ण मस्जिद को
दिया बनाय द्वारकामाई
सीढ़ी चढ़े तो दुख मिटे
ऐसा कहते हैं बाबा साँई
द्वारकामाई में धूनी जले
करे समस्त पापों का अंत
धूनी की उदी जो लगा ले
कृपा करे उस पर साँई संत
जल से दीप जल गए
पानी बन गया तेल
खारा जल मीठा हुआ
सब साँई के खेल ।।
नीम वृक्ष को पावन किया
करके साँई ने गुरू-ध्यान
कड़वे पत्ते मीठे हो गए
बिल्कुल शहद समान
साँई सच्चरित्र जो पढ़े
प्रश्नों के हल मिल जाय
साँई सच्चरित्र हैं वो ग्रँथ
जिसमें साँई के दर्शन पाय
साँई साँई जपते रहने से
साँई स्वयम ही मिल जाय
भूखों को जो भोजन दे दे
उनमें साँई जी ही को पाय
नर में नारायण जो देखे
उस पर साँई कृपा हो जाय
दुःखो में भी जो सुखी रहे
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