:: ll श्री साँई अमृततुल्य सुवचन ll ::
:- कर्मचक्र-
" कर्म देह प्रारम्भ (वर्तमान भाग्य), पिछले कर्मो का फल अवश्य भोगना पड़ेगा, गुरु इन कष्टों को सहकर सहना सिखाता है, गुरु सृष्टि नहीं दृष्टि बदलता है ।"- Baba Sai.
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