जय जयकार हो साँई तेरी ऐसे
कि ये धरती ये व्योम झूम उठे
तेरी जय सुन सावन भी बरसे
और तेरे चरणों से गंगा बह निकले
साँई तेरी जय जयकार करूँ मैं
अपने तन मन और पूर्ण भाव से
ताकि मेरे मन में तेरा अनहद नाद हो
और सुकून मिले मुझे तेरी मातृ छाँव से
मातृ छाँव मिले मुझे साँई तेरी
तो तन मन मेरा हो जाये शीतल
नन्हे पाँव मेरे चले नगरिया तेरी
तो खुशनुमा हो जीवन का हर पल
जीवन के हर पल में मेरे
हे साँई नाथ नाम तुम्हारा है
चाहो तो आजमा लो आप मुझे
आपको अर्पण ये जीवन सारा है
अर्पण करने को कुछ नही मेरे पास
जिंदगी भी दी हुई बाबा आपकी है
क्षण क्षण जीवन का साँई नाम में बिताऊँ
बिन साँई नाम जिन्दगी किस काम की है
जिन्दगी में गर करूँ मैं काम नेक
तो आपकी रहमत का बरसे सावन
अपने मन में ही लूँ मैं आपको देख
तो मन ही बन जाये शिर्डी धाम पावन
पावन पतित बड़ा वो शिर्डी का साँई
हर चिंता हर लेती उसकी द्वारकामाई
किसी का वो पिता तो किसी का भाई
सुख पाती जिव्हा जिसने साँई महिमा गायी
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