*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 21
श्री साँई का ध्यान कर
पठन करे यह अध्याय
साँई की शिक्षाये अपना
हम भक्त साँईमय हो जाय ।।1।।
गत जन्मों के शुभ कर्म से
संतो का सानिध्य मिल पाय
शुभ कर्मों के फलस्वरूप ही
संतो की कृपा प्राप्त हो जाय ।।2।।।
बांद्रा के न्यायाधीश रहे
अनेक वर्षों तक श्रीहेमाड
शिर्डी जा बाबा के भक्त हुये
वे ऐसी साँई कृपा पाये अगाध ।।3।।
भाग्य के बिना कैसे भला
संतसमागम प्राप्त हो पाय
सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें
संत दर्शन प्राप्त हो जाय ।।4।।
लोकशिक्षा का कार्य संत
अनेक समय से करते आय
वे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतू
भिन्न स्थानो पर प्रगट हो जाय ।।5।।
कार्यस्थल भले ही भिन्न हो
परन्तु सब संत हैं एक समान
ईश्वर की एक लहर में कार्य करे
उन्हें रहता कार्य का परस्पर ज्ञान ।।6।।
एक समय व्ही.एच.ठाकुर
कार्य से बेलगाँव समीप जाय
वडगाँव नामक ग्राम में वे पहुँचे
कानडी संत अप्पा के दर्शन पाय ।।7।।
वेदान्त के विषय में हैं
विचार सागर नामक ग्रंथ
ग्रंथ का भावार्थ समझा रहे
वहाँ भक्तो को वे कानडी संत ।।8।।
श्री ठाकुर से वे कहने लगे
करो इस ग्रंथ का अध्ययन
उत्तर दिशा में जब जाओगे
पाओगे महान संत के दर्शन ।।9।।
जब स्थानांतरण जुन्नर हुआ
जाते थे वे करके नाणेघाट पार
यह घाट अधिक गहरा व कठिन
घाट पार करते भैंसे पर हो सवार ।।10।।
स्थानांतरण जब कल्याण हुआ
श्री ठाकुर हुए उच्च पद आसीन
वहाँ नानासाहेब से परिचय हुआ
जो रहते बाबा की भक्ति में लीन ।।11।।
नानासाहेब से श्री ठाकुर को
साँईबाबा के बारे में हुआ ज्ञात
साँईदर्शन की उन्हें उत्कंठा हुई
नाना कहे चलिये आप मेरे साथ ।।12।।
किसी कार्य के चलते ठाकुर
नाना संग शिर्डी ना जा पाय
अकेले ही प्रस्थान किये नाना
ठाकुर का कार्य आगे बढ़ जाय ।।13।।
तब मित्रों संग श्री ठाकुर
साँई दर्शन को शिर्डी जाय
साँई के चरणों मे गिरे ठाकुर
बह रही आंखों से अश्रुधाराएं ।।14।।
त्रिकालदर्शी बाबा कहने लगे उनसे
इस स्थान का मार्ग इतना न आसान
जितनी नाणेघाट पर भैंसे की सवारी
या फिर कानडी संत अप्पा का ज्ञान ।।15।।
आध्यात्मिक पथ अति कठिन हैं
इस हेतू घोर परिश्रम किया जाये
बाबा के ये वचन सुने जब ठाकुर
कानडी संत के वचन याद आये ।।16।।
वे दोनों हाथों को जोड़कर
बाबा के चरणों मे गिर जाय
मुझे शीतलछाया में स्थान दो
साँई से वे प्रार्थना किये जाय ।।17।।
तब बाबा कहने लगें उनसे कि
सत्य कहे थे कानडी अप्पा संत
अपने आचरण में भी तुम लाओ
जो पठन किये विचारसागर ग्रंथ ।।18।।
जो कुछ भी पठन करते हो
उसे आचरण में लाया जाये
अन्यथा पठन का लाभ क्या
साँईबाबा यह बात समझाये ।।19।।
अंनतराव पाटणकर भक्त एक
साँई दर्शन को जब शिर्डी आये
साँई दर्शन पाकर नेत्र शीतल हुए
पाटणकर जी अति प्रसन्न हुए जाये ।।20।।
दर्शन कर कहने लगें बाबा से
पढ़ें मैंने वेद उपनिषद व पुराण
फिर भी मुझे शांति मिल न सकी
आया शिर्डी सुन आपका गुणगान ।।21।।
आपके वचनों व दृष्टि मात्र से
सबके मन को शांति मिल जाय
साँईजी से आशीर्वाद वे माँग रहे
तब साँई उन्हें एक कथा सुनाय ।।22।।
एक समय एक सौदागर
जब यहाँ शिर्डी वह आय
घोड़ी की लीद के नौ गोले
सौदागर एकत्र किए जाय ।।23।।
नौ गोले पाकर सौदागर
अपने चित्त को शांति पाय
जब यह कथा सुने पाटणकर
उन्हें कुछ अर्थ समझ में न आय ।।24।।
वे दादा केलकर से प्रार्थना करें
कथा का अर्थ उन्हें समझा दो
केलकर कहे घोड़ी ईश कृपा हैं
व नवविधा भक्ति हैं वह गोले नौ ।।25।।
नौ प्रकार की भक्ति हैं जैसे
श्रवण, कीर्तन, नाम स्मरण
पाद सेवन, वन्दन, सख्यता
अर्चन, दास्य, आत्मनिवेदन ।।26।।
इन नौ प्रकार की भक्ति में से
एक को भी कार्य में लाया जाये
तब भगवान अति प्रसन्न होकर
अपने भक्त के घर प्रगट हो जाये ।।27।।
जप, तप, योगाभ्यास, वेद पठन
अगर भक्ति भाव से न किये जाये
भक्तिभाव बिना यह सभी शुष्क हैं
पूर्ण भक्ति से सार्थक हैं ये साधनाये ।।28।।
दूसरे दिन पाटणकर जब
गए बाबा को प्रणाम करने
तब बाबा उनसे पूछने लगे
क्या नौ गोले पा लिये तुमने ।।29।।
साँई आपकी कृपा बिना
कैसे गोले एकत्र हो पाये
आपकी कृपा होनी जरूरी
ऐसा पाटणकर जी बतलाये ।।30।।
सुख व शांति मिल जायेगी
दिए साँई उन्हें यह आशीर्वाद
पाटणकर यह सुन प्रसन्न हुए
मिल गयी साँई से उन्हें सौगात ।।31।।
साँईजी से कुछ नही छुपा
वे सबके मन की जान जाये
भक्तो के दोष वे दूर कर देते
और उन्हें उचित राह दिखाये ।।32।।
पंढरपुर से एक वकील
एक समय शिर्डी को आये
साँई दर्शन कर, दक्षिणा दे
कोने में वे जाकर बैठ जाय ।।33।।
कुछ लोग कितने धूर्त हैं
उनको देख ऐसा कहे साँई
यहाँ आकर वे चरणों में गिरते
और पीठ पीछे करते हैं वे बुराई ।।34।।
साँई के कहे ये शब्द
वहाँ कोई समझ न पाये
वकील साहब सब सुन रहे
शब्दों का अर्थ वे समझ जाये ।।35।।
वकीलसाहब वाड़े को लौट
काकाजी को बताने लगे बात
साँईजी ने जो कहा सब सत्य हैं
निंदा करने में दिया था मैंने साथ ।।36।।
पंढरपुर से शिर्डी आकर ठहरे
एक समय श्रीनूलकर साँई दास
बाररूम में उनकी चर्चा हो रही
उनका व साँई का किया उपहास ।।37।।
साँई ने जो भी वचन कहे
किया साँई ने मुझपे उपकार
मुझे इस बात की शिक्षा मिली
न करूँ कभी निंदा का व्यवहार ।।38।।
शिर्डी व पंढरपुर मीलों दूर
फिर भी साँई को सब ज्ञात
कोई दूर रहे या रहे वे समीप
साँई जाने सबके मन की बात ।।39।।
जैसे सागर का अंत नही
वैसे ही साँई लीला अनन्त
साँई लीलाये हमें ज्ञात होये
जब पढ़े साँई सच्चरित्र ग्रंथ ।।40।।
'गौरव' करें अरदास साँई से
करते हुए साँई नाम स्मरण
कि साँई सभी पर कृपा करें
व साँई कृपा से रहे सब प्रसन्न ।।41।।
हम भक्तो को हैं विश्वास
कि साँई सदा हमारे साथ हैं
साँई पूरी करते सब अरदास
वो साँई हम भक्तो के नाथ हैं ।।42।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।