Sunday, July 31, 2022

बाबा साँई के अनन्य भक्त

*बाबा साँई के अनन्य भक्त*

धन्यवाद करते हैं हम उनका
जो रचे श्री साँई सच्चरित्र ग्रन्थ
गोविन्दराव दाभोलकर जी थे वे
साँई ने नाम दिया उन्हें हेमाडपंत ।।

गणपतराव बाबा के भक्त ऐसे
साँई के मधुर कीर्तन किये जाय
वे साँई स्तवन मंजरी के रचयिता
साँई कृपा से 'दासगणु' कहलाय ।।

द्वारकामाई की सफाई करें
व करे हर पल साँई गुणगान
'राधाकृष्णमाई' की प्रेरणा से
गठित हुआ था साँई संस्थान ।।

आठ कोस से जल ला 'मेघा'
साँई जी को अभिषेक कराय
जब प्राण त्यागे भक्त मेघा ने
उन्हें याद कर साँई अश्रु बहाये ।।

'आओ साँई' कहे 'महालसापति'
साँईबाबा जब शिर्डी गाँव आये
वही से उनको 'साँई' नाम मिला
महालसा साँई संग जीवन बिताये ।।

छोटे भाई जैसे थे तात्या
साँई से असीम प्रेम वे पाये
तात्या के प्राणों की रक्षा हेतू
साँई स्वयं महासमाधि ले जाय ।।

जब साँई लेंडी बाग को जाते
संग में छाता ले 'भागोजी' जाये
एक बार साँई आग में हाथ डाले
साँई की सेवा भागोजी किये जाये ।।

तात्या कोते की माँ बायजा माई
बाबा के लिये रोटी साग लेकर आय
माँ सम ममता पाकर साँई प्रसन्न हुए
साँई रोज माँ के हाथों से भोजन खाय ।।

Tuesday, July 12, 2022

श्री साँई गुरूवर

*श्री साँई गुरूवर*

श्री सच्चिदानंद सदगुरू श्री साँई नाथ के श्री कमल चरणों मे आज गुरू पूर्णिमा पर्व पर मेरा साष्टांग प्रणाम।
गुरू पूर्णिमा का विशेष महत्त्व हैं , क्योकि आज का दिन गुरू का दिन हैं । गुरू का स्थान सर्वोपरि होता हैं । गुरू से हमे अनेकों शिक्षाये मिलती हैं, उन्हें जीवन मे अपना कर हम अनेकों ज्ञान प्राप्त करते हैं, सुख शांति से रहते हैं व गुरू की शिक्षाओं से अपना लक्ष्य हासिल करते हैं ।

श्री साँई बाबा ने गुरूवर रूप में अनेकों शिक्षाये दी हैं, जिन्हें मैं अपने जीवन मे अपनाने का पूर्ण प्रयास करता आया हूँ तथा उन शिक्षाओं को अपनाने से निश्चित रूप से जीवन मे सुख शांति, प्रसन्नता रहती हैं ।
श्री साँई बाबा की जीवनी से जुड़े महाग्रन्थ ,जिसमे बाबा की अनेक लीलाओं का समावेश हैं तथा उन लीलाओं के माध्यम से बाबा ने अनेकों उपदेश दिये हैं, उस महाग्रन्थ श्री साँई सच्चरित्र के माध्यम से श्री साँई बाबा से अनेकों शिक्षाओं की प्राप्ति हुई, उनमें से कुछ को यहां लिख रहा हूं ।
बाबा से मुझे यह शिक्षा मिली है कि हमें, सदैव लोगो की मदद करते रहना चाहिए क्योंकि नर सेवा ही नारायण सेवा हैं । हम जब किसी की मदद करे तो निस्वार्थ भाव से मदद करनी चाहिए ।
इसके अलावा बाबा से "श्रद्धा व सबूरी" की शिक्षा भी मिली हैं । यह हम सभी जानते हैं कि बाबा ने अनेकों बार ऐसा कहा है कि "श्रद्धा व सबूरी" रखनी चाहिए ।
मेरे जीवन मे श्रद्धा थी परन्तु सबूरी अर्थात धैर्य का अभाव था, कोई कार्य किया और उसमें सफलता नही मिलने पर मैं उदास हो जाता था और अब भी कई बार हो जाता हूँ तो बाबा ने यह सिखाया कि धैर्य की भी उतनी ही आवश्यकता है जितनी कि श्रद्धा की । बाबा की "श्रद्धा व सबूरी"  की शिक्षा को मैंने जीवन मे अपनाया । 
"श्रद्धा व सबूरी" के बारे में जो मैं समझ पाया हूँ कि श्रद्धा व सबूरी क्या हैं, उससे जुड़े अपने विचार लिख रहा हूँ ।
श्री साँई सच्चरित्र में अध्याय 18व19 में बाबा ने कहा हैं कि "धैर्य व निष्ठा जुड़वां बहने हैं ।" मैं यह समझ पाया हूँ कि जीवन मे जितनी आवश्यकता श्रद्धा (निष्ठा) की हैं, उतनी ही आवश्यकता हैं सबूरी (धैर्य) की । श्रद्धा व सबूरी ,दोनों का होना आवश्यक हैं ।

_श्रद्धा क्या हैं ?_, श्रद्धा हैं निष्ठा अर्थात समर्पण, सरल शब्दों में लिखूं तो लगन । जीवन मे हम अगर कोई कार्य कर रहे है व उसमें सफल होना चाहते हैं तो उस कार्य मे हमारा समर्पण ,हमारी लगन होना बहुत ही आवश्यक हैं । अगर हमारी किसी कार्य में लगन नही होगी तो वह कार्य सफल कैसे हो सकेगा ! अतः हम जीवन में जो कोई भी कार्य करे वह पूर्ण निष्ठा भाव से करें ।

_सबूरी क्या हैं ?_, किसी भी कार्य को करने के लिये उस कार्य के प्रति समर्पण होना आवश्यक हैं तो जितनी आवश्यकता समर्पण (श्रद्धा) की हैं उतनी ही आवश्यकता सबूरी (धैर्य) की होती हैं । धैर्य (धीरज) ही सबूरी हैं । हम कई बार किसी कार्य को करते समय जल्दबाजी कर जाते हैं और वह कार्य सफल नही हो पाता, फिर दोष किस्मत को देने लगते हैं । किसी कार्य के लिये हम पूर्ण लगन भाव से करते हैं परन्तु फिर भी अगर सफलता नही मिल पाती तो उदास हो जाते हैं । किसी भी कार्य की सफलता के लिये जितनी जरूरत हमे लगन की होती है उतनी ही जरूरत होती है धैर्य रखने की, संयम से काम लेने की । धीरज हमारा वह मित्र हैं ,जो हमें टूटने नही देता हैं । कहते भी है ना कि सब्र का फल मीठा होता हैं । हम जब भी कोई कार्य करे तो धीरजता के साथ वह कार्य करें । कार्य करते समय धैर्य बनाये रखे । अगर कभी हम किसी कार्य मे असफल हो भी जाये तो उस समय सबसे जरूरी होता है धीरज रखे रहना और लगातार पूर्ण लगन से कार्य करते रहना ,अगर पूर्ण निष्ठा भाव से कार्य करेंगे व धीरज रखेंगे तो सफल अवश्य होंगे, हो सकता है सफल होने में थोड़ा समय लग जाये परन्तु उस समय धैर्य बनाये रखते हुए पूर्ण लगन से कार्य करते रहना हैं । हमने चींटी को दीवार पर चढ़ते हुए कई बार देखा होगा, चींटी जब दीवार पर चढ़ती हैं तो कई बार गिरती हैं, परन्तु वह हार नही मानती और आखिर में दीवार चढ़ ही जाती हैं । इसी तरह जब एक छोटा बच्चा पहली बार उठ खड़े होकर चलना सीखता हैं तो कई बार गिरता हैं और आखिर में चलना सीख ही जाता हैं । यही तो जीवन हैं कि आप चलते रहिये । अपने साँई पर व खुद पर विश्वास रखिये, पूर्ण लगन से अपना कार्य करिये व धैर्य बनाये रखिये, आप सफल होंगे ।

"श्रद्धा व सबूरी" की शिक्षा मुझे बाबा से मिली, जिसे मैं अपने जीवन मे अपना रहा हूँ और जो मैं श्रद्धा व सबूरी का मतलब समझ पाया हूँ, वह यहाँ लिखने का प्रयास किया हैं।

साँई नाम हैं हिम्मत हमारी
साँई में श्रद्धा रख रखेंगे सबूरी
हर मुश्किल हो जाएगी आसान
साँई संग हैं, हम न होंगे परेशान ।।

Wednesday, November 4, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 24

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 24

श्री साँई हैं हमारे गुरूवर
देखे साँई चरणों की ओर
प्राप्त हो हमें सत्य स्वरूप
अगर अहंकार दे हम छोड़ ।।1।।

साँई भक्ति से होये हम
सुख शांति के अधिकारी
हमारी इच्छाएं पूर्ण होये
आध्यात्मिक और संसारी ।।2।।

साँई लीला श्रवण करे
व मनन करे अगर कोय
जीवन का ध्येय मिले उसे
परम आनन्द भी प्राप्त होय ।।3।।

प्रिय हैं सभी को हास्य
परन्तु पात्र बने न कोय
बाबा हास्य विनोद करे
वह अति शिक्षाप्रद होय ।।4।।

साँई के शिर्डी गाँव में
बाजार लगे हर इतवार
निकट गाँव के लोग आ
वे करते अपना व्यापार ।।5।।

एक इतवार की बात हैं
पंत दबा रहे साँई चरण
बूटी, दीक्षित के संग संग
वहाँ थे शामा और वामन ।।6।।

अण्णा कमीज देख लो
हँसकर शामा कहे जाय
जब शामा बाँह स्पर्श करें
वहाँ कुछ चने के दाने पाय ।।7।।

पंत कुहनी सीधी करे
कुछ चने लुढ़क जाये
जो चने नीचे गिर पड़े
भक्त लोग उन्हें उठाये ।।8।।

हास्य का विषय मिला
भक्तगण आनन्द उठाये
ये चने यहाँ आये कहाँ से
सब अपने अनुमान लगाये ।।9।।

तब बाबा कहने लगे
अण्णा एकांत में खाय
दिन हैं आज बाजार का
वहाँ से ये चने चबाते आये ।।10।।

हेमाडपंत जी कहने लगे
अकेले में वे कुछ न खाय
जब बाजार आज गये नही
फिर भला कैसे चने वे पाय ।।11।।

जब भोजन का समय हो
और निकट हो अगर कोय
पहले उसे उसका भाग दे
तब ही भोजन ग्रहण होय ।।12।।

पंत से बाबा कहने लगे
तुम सत्य बात बतलाये
किंतु कोई निकट न हो
तब क्या ही किया जाये ।।13।।

भोजन करने से पहले
क्या करते मुझे अर्पण
मुझको दूर क्यो जानते
मैं साथ तुम्हारे हर क्षण ।।14।।

पहले साँई अर्पण करो
भोजन बन जाये प्रसाद
साँई हमें यही शिक्षा देते
वे तो हैं सदा हमारे साथ ।।15।।

इन्द्रियाँ, मन व बुद्धि 
पदार्थों का लेवे स्वाद
पहले साँई स्मरण करें
पदार्थ बन जाते प्रसाद।।16।।

भोजन जब हो सामने
पहले करो साँई को याद
स्मरण,अर्पण की विधि हैं
भोज ग्रहण हो उसके बाद ।।17।।

ये अच्छे स्वभाव हैं नही
क्रोध, तृष्णा और इच्छाये
ईश्वरअर्पण का अभ्यास हो
पल में ये सभी नष्ट हो जाये ।।18।।

गुरू व ईश्वर एक ही
इनमें भिन्नता न कोय
जो गुरू की सेवा करे
उस पर प्रभु कृपा होय ।।19।।

नेत्रों से हम देखते रहे
साँई का स्वरूप सगुण
वैराग्य, मोक्ष मिले हमें
व मिल जाये भक्ति पूर्ण ।।20।।

मिट जाये क्षुधा हमारी
गर साँई ध्यान हो प्रगाढ़
संसार से मोह भी ना रहे
सुख व शांति मिले अगाध ।।21।।

चने की हास्यकथा यह
पंत जी वर्णन किये जाये
सुदामा की एक कथा का
पंत जी को स्मरण हो आये ।।22।।

कृष्ण और बलराम संग
सुदामा भी वन को जाय
कृष्ण विश्राम करने लगे
सुदामा अकेले चने खाय ।।23।।

तब कृष्ण पूछने लगे
दादा, तुम क्या खाय
कृष्ण स्वयं भगवान हैं
वे सब कुछ जान जाय ।।24।।

तब सुदामा कहने लगे
वह कुछ भी तो न खाय
यहाँ शीत से वह काँप रहे
दाँत से कड़कड़ ध्वनि आय ।।25।।

फल भोगते हुए सुदामा
गरीबी में जीवन बिताये
मुट्ठीभर चावल भेंट करे
श्री कृष्ण प्रसन्न हो जाये ।।26।।

भगवान श्रीकृष्ण उन्हें
स्वर्ण नगरी किये प्रदान
पहले प्रभु को अर्पण हो
कथा से मिलता यह ज्ञान ।।27।।

दूसरी हास्यकथा का
पंत हेमाड करे वर्णन
यह कथा बतलाये हमे
बाबा करे शांति स्थापन ।।28।।

निडर प्रकृति के भक्त एक
नाम था दामोदर घनश्याम
बाहर रूखे,भीतर से सरल
अण्णा चिंचणीकर उपनाम ।।29।।

एक समय बाबा के भक्त
बाबा के अंग अंग दबाय
साँई सेवा का अवसर पा
सभी भक्त धन्य हो जाय ।।30।।

थी वृद्ध महिला भक्त एक
लोग कहते उन्हें मौसीबाई
वेणुबाई कौजलगी नाम था
माँ कहा करते थे उन्हें साँई ।।31।।

साँई सेवा करे मौसीबाई
सभी अंगुलियाँ मिलाकर
साँई का शरीर दबाये जाये
भक्त श्रीअण्णा चिंचणीकर ।।32।।

तब मौसीबाई कहने लगी
वह करते हुए हास्यविनोद
बहुत बुरा इंसान हैं अण्णा
चुंबन करना चाहे यह प्रौढ़ ।।33।।

क्रोध में हो अण्णा कहे
तुम कह रही मुझे वृद्ध
मैं कोई बुरा व्यक्ति नही
झगड़ रही हो तुम व्यर्थ ।।34।।

मौसीबाई मजाक करे
अण्णा क्रोधित हो जाय
दोनों का यह विवाद देख
सब लोग आनंद लिये जाय ।।35।।

बाबा दोनों पर स्नेह रखे
इस विवाद को सुलझाय
हे अण्णा क्यों झगड़ रहे
प्रेमपूर्वक साँई कहे जाय ।।36।।

माँ का चुंबन करने में
दोष या हानि ना कोय
बाबा ने यह शब्द कहे
सुनकर दोनों शांत होय ।।37।।

भक्तगण जो थे वहाँ
ठहाका लगाये जाय
विनोद का विषय यह
भक्तो को आनन्द आय ।।38।।

जो भक्त जैसे सेवा करे
उसे वैसे करने दी जाय
अगर सेवा में दखल दे
साँई को पसंद ना आय ।।39।।

एक समय मौसीबाई
साँई सेवा किये जाय
थी भक्ति में लीन वह
बलपूर्वक पेट दबाय ।।40।।

कहि नाड़ी टूट ना जाये
माँ तुम धीरे दबाओ पेट
मौसीबाई से कहने लगे
भक्त वहाँ जो थे अनेक ।।41।।

साँई सुनकर यह बात
क्रोध में खड़े हो जाय
लाल आँखे लिए साँई
हाथ में सटका उठाय ।।42।।

एक छोर नाभि में लगाये
जमीन पर था दूजा छोर
सटके से धक्का देने लगे
भक्त देख रहे थे साँई ओर ।।43।।

सभी भक्त भयभीत हुए
साँई का पेट फट न जाय
किंतु कोई कुछ बोले नही
मानो हो गूंगो का समुदाय ।।44।।

भक्तो का संकेत था यह
सहज भाव से होये सेवा
इसलिए माँ को कहा था
ताकि कष्ट नही पाये देवा ।।45।।

साँई को यह पसंद नही
दे भक्ति में दखल कोय
भक्त जन यह समझ गये
साँई इसलिए क्रोधित होय ।।46।।

भाग्यशाली थे भक्तजन
शांत हुआ साँई का क्रोध
आसन पर जा बैठे साँई
और सटका दिया छोड़ ।।47।।

कार्य मे दखल हो नही
भक्तगण यह शिक्षा पाय
जो जैसे साँई की सेवा करे
उसे वैसे सेवा करने दी जाय ।।48।।

सब भक्तो की तू सुनता
साँई तू हैं कृपा का सागर
'गौरव' तुझसे अरदास करे
साँई भर देना सबकी गागर ।।49।।

यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
हमें कई शिक्षा मिल जाय
साँई का नाम लेते रहे हम
साँई नाम में आनन्द आय ।।50।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Friday, September 11, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 22

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 22

साँई चरणों में ध्यान लगा
यह अध्याय करें हम पठन
साँई जी की लीला हो जाये
सुखी हो जाये हमारा जीवन ।।1।।

श्री साँई, सर्वशक्तिमान हैं
साँई की प्रकृति हैं अगाध
वर्णन करने में असमर्थ हैं
वेद व सहस्त्रमुखी शेषनाग ।।2।।

आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।3।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।4।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।5।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।6।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।7।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।8।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।9।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।10।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।11।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।12।।

साँई बाबा के वास से ही
तीर्थ बन जाये शिर्डी गाँव
भक्तगण शिर्डी आने लगे
पाते साँई कृपा रूपी छाँव ।।13।।

साँई प्रेम,साँई ज्ञान अपार हैं
वर्णन को शब्द न मिल पाये
बड़े धन्य हैं वे बाबा के भक्त
जो यह सब अनुभव कर पाये ।।14।।

कभी ब्रह्म में मगन रह
साँई दीर्घ मौन धारण करे
कभी आनन्द की मूर्ति बन
साँई रहे अपने भक्तो से घिरे ।।15।।

साँई जी कभी दृष्टांत देते
कभी वे विनोद किये जाय
वे कभी घण्टो प्रवचन देते
तो कभी सार रूप समझाय ।।16।।

साँई का मुखमंडल देखें
व साँई लीला सुनते जाय
भक्तगण फूले नही समाते
लीला श्रवण में आनंद आय ।।17।।

जलवृष्टि कण गिन सके
वायु भी संचित की जाय
किंतु साँई की लीला ऐसी
साँई लीला का अंत न पाय ।।18।।

साँई की लीलाएं अनेकों हैं
एक लीला पठन की जाये
कि कैसे रक्षा करते हैं साँई
व भक्तों को संकट से बचाये ।।19।।

बालासाहेब मिरीकर जी
एक समय चितली जाये
मार्ग में शिर्डी गाँव पधार
वे साँई दर्शन करने आये ।।20।।

साँई कहने लगे मिरीकर से
क्या तुम जानते द्वारकामाई
मिरीकर अर्थ समझ न सकें
तब उन्हें समझाने लगे साँई ।।21।।

जहाँ तुम बैठे हुए हो
वही तो हैं द्वारकामाई
जो उसकी गोद में बैठे
दूर होते दुख व कठिनाई ।।22।।

द्वारकामाई हैं अति दयालु
करे भक्तो के सभी कष्ट दूर
जो उसकी छत्रछाया में आये
आनन्द और सुख मिले भरपूर ।।23।।

मिरीकर को बाबा उदी दे
रखे उनके सिर पर वे हाथ
मिरीकर से बाबा कहने लगे
देकर उन्हें अपना आशीर्वाद ।।24।।

बायीं मुट्ठी बंद कर साँई
वे ले गए दायीं कुहनी पास
सर्प कुछ भी न कर पायेगा
रखो द्वारकामाई पर विश्वास ।।25।।

मिरीकर को ऐसा कह साँई
शामा को अपने पास बुलाये
साँई की आज्ञा हुई शामा को
वे मिरीकर संग चितली जाये ।।26।।

वे चितली को पहुंच कर
मारुति मंदिर में ठहर जाय
मिरीकर समीप एक सर्प था
किसी का ध्यान उधर न जाय ।।27।।

सर्प आवाज कर रेंगने लगे
चपरासी दौड़ लालटेन लाये
सर्प को देख वह चिल्लाने लगे
बालासाहेब भी भयभीत हो जाये ।।28।।

सब लोगो ने लाठी ली
सर्प का प्राणांत हो जाये
साँई ने जो संकट कहा था
पल में वह संकट टल जाये ।।29।।

साँई शब्द याद करे मिरीकर
साँई में उनकी निष्ठा बढ़ जाये
साँई कैसे भक्तो की रक्षा करते
भक्तो को संकट से साँई बचाये ।।30।।

नाना डेंगले ज्योतिषी एक
बापूसाहेब बूटी को बतलाये
आज तुम्हारे जीवन को भय हैं
यह सुनकर बापूसाहेब घबराये ।।31।।

बूटी साँई दर्शन को गए
तब साँई उन्हें समझाये
नाना जो तुमसे कह रहे
मेरे होते क्यो तुम घबराये ।।32।।

नाना से कह दो तुम कि
कुछ भी नही करेगा काल
अपनी चिंता को त्यागो तुम
तुम्हारा साँई देगा संकट टाल ।।33।।

जब बूटी गये शौच गृह
एक सर्प दिखाई दे जाय
उनका नौकर सर्प को देख
मारने को एक पत्थर उठाये ।।34।।

रेंग रेंगकर वह सर्प दूर हो
आंखों से ओझल हो जाय
साँई वचन का स्मरण करके
बूटी जी का मन बड़ा हर्षाय ।।35।।

कोरले वासी अमीर शक्कर
गठिया रोग से बड़ा कष्ट पाय
काम धंधा वह सारा छोड़कर
साँई शरण में वह शिर्डी आय ।।36।।

उसे बाबा ने आज्ञा दी
चावडी में करो निवास
उसकी पीड़ा दूर हो गई
अमीर रहा वहाँ नौ मास ।।37।।

एक रात वह बतलाये बिना
चावडी छोड़ कोपरगाँव जाय
अपनी भूल का अहसास हुआ
वापस लौटकर वह चावडी आय ।।38।।

एक रात को साँई बाबा
अब्दुल को पुकारे जाय
बत्ती लाओ यहाँ अब्दुल
कोई दुष्ट बिस्तर चढ़ जाय ।।39।।

साँई संगति में रह शक्कर
शब्दो का अर्थ समझ जाये
वहाँ एक साँप था बैठा हुआ
कुंडली मारे और फन फैलाये ।।40।।

साँप के प्राणों का अंत हुआ
अमीर के प्राण बचाये साँई
साँई का सानिध्य मिला उन्हें
थे साँई शक्कर के लिये सहाई ।।41।।

एक समय की बात हैं
हो रहा रामायण पठन
श्रोताओं में शामिल हो
पंतजी भी कर रहे श्रवण ।।42।।

रामायण पाठ के श्रवण में
श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाये
बिच्छु आ बैठे पंत दायें कंधे
पंत को पता भी ना चल पाये ।।43।।

श्रोता की रक्षा करे ईश्वर
पंत की दृष्टि कंधे पर जाये
कंधे पर बैठे बिच्छु को पंत
कथा श्रवण में तल्लीन पाये ।।44।।

श्रोताओं में विघ्न डाले बिना
पंत धोती के सिरे लिये जोड़
उसमे लपेट कर वे बिच्छु को 
बगीचे में ले जाकर दिए छोड़ ।।45।।

एक समय काकाजी बैठे हुए
साँप खिड़की से भीतर आये
लोग छड़ी ले उसे मारने दौड़े
साँप छिद्र में अदृश्य हो जाय ।।46।।

अच्छा हुआ, बच गया जीव
मुक्ताराम कहने लगे यह बात
पंतजी ने उनकी अवहेलना की
हुआ इस विषय पर वाद विवाद ।।47।।

दो अलग अलग मत थे
निष्कर्ष न निकल पाये
साँई समक्ष प्रश्न आया
तब साँई उन्हें समझाये ।।48।।

समस्त विश्व ईश्वर अधीन
सबमें ईश्वर का वास होय
चाहे साँप हो या हो बिच्छु
या फिर प्राणी जीव कोय ।।49।।

सभी प्राणियों से करो
दया व स्नेह का व्यवहार
वैमनस्य का त्याग करो व
रखो सदा ही उचित विचार ।।50।।

साँई तव चरणों में रहना चाहे
बना रहे 'गौरव' आपका दास
आपका स्मरण सदा करता रहे
न ले आपकी सेवा से अवकाश ।।51।।

पूर्ण भाव से पठन हुआ
सम्पूर्ण हुआ यह अध्याय
साँई से हम आशीष मांगें
सब पर साँई कृपा हो जाय ।।52।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Monday, September 7, 2020

श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान

*श्री साँई चरण के अँगूठे का ध्यान*

बाबा के अनन्य भक्त , श्री हेमाडपंत जी ने श्री साँई सच्चरित्र महा ग्रन्थ रचा । श्री साँई सच्चरित्र के अध्याय 22 में हेमाडपंत जी , बाबा की भक्ति व ध्यान का एक अति सरल मार्ग बतलाते हैं वह यह हैं कि-
जिस प्रकार शुक्ल पक्ष के आरम्भ होने पर हम चन्द्र का दर्शन करना चाहते हैं तो हम वृक्ष की दो शाखाओं के मध्य से चन्द्र दर्शन करते हैं व चन्द्र दर्शन करके प्रसन्न होते हैं , उसी तरह हमे बाबा के स्वरूप के दर्शन करने चाहिए । जिस स्वरूप में बाबा अपना दायाँ पैर मोड़ कर बैठे हैं तथा दायाँ पैर, बाएं घुटने पर हैं व बाएं हाथ की अंगुलियाँ दाएं पैर पर फैली हुई हैं ।  बाबा की मध्यमा व तर्जनी अंगुली के मध्य से हमें बाबा के अँगूठे का ध्यान करना चाहिए । अगर हम अभिमान त्याग कर, विनम्र होकर बाबा के अंगूठे का ध्यान करेंगे तो हमें बाबा के सत्य स्वरूप के दर्शन होंगे । 


बाबा की आज्ञा व उनकी कृपा से इसी प्रसंग को काव्य रूप में लिखने का प्रयास किया हैं, जिसे बाबा ने स्वयं लिखवाया हैं, उसे यहाँ साझा कर रहा हूँ:-



आनन्द की प्राप्ति हो जाती
जब श्रीचरणों में ध्यान लगाये
हेमाडपंतजी भक्ति व ध्यान का
एक अति सरल मार्ग हमें सुझाये ।।

कृष्ण पक्ष का जब आरम्भ हो
प्रतिदिन चन्द्रकलाये घटे जाये
अमावस्या को चन्द्र विलीन हो
चारो ओर पूर्ण अंधेरा छा जाये ।।

जब शुक्ल पक्ष आरंभ हो
लोग चन्द्रदर्शन करना चाहे
दो शाखाओं के बीच से देखे
तब उन्हें चन्द्रदर्शन हो जाये ।।

ऐसे जब ध्यान से देखें
दूर चन्द्र रेखा दिख जाये
तब चन्द्रदर्शन पाये लोग
उनका मन प्रसन्न हो जाये ।।

दूर क्षितिज पर दिखाई दे
शुक्ल पक्ष की दूज का चाँद
साँई के दर्शन भी ऐसे ही करें
अपनाये हम लोग यही सिद्धांत ।।

चन्द्रदर्शन के सिद्धांत से
देखो साँई के चित्र की ओर
कितना सुंदर साँई स्वरूप हैं
बैठे हैं साँई जी अपने पैर मोड़ ।।

साँईजी अपना दायाँ पैर
बायें घुटने पर रखे जाये
व बायें हाथ की अंगुलियाँ
वे दाहिने चरण पर फैलाये ।।

तर्जनी और मध्यमा अंगुली
दायें पैर के अँगूठे पर फैलाये
दो अंगुली के बीच अंगूठा देखो
इस आकृति से साँई हमें समझाये ।।

साँई दर्शन की इच्छा हो तो
विनम्र बनो, त्यागो अभिमान
दो अंगुलियों के मध्य से करो
उनके चरण के अंगूठे का ध्यान ।।

भक्ति प्राप्त करने का
यह हैं सबसे सुगम पंथ
साँई दर्शन में सफल होंगे
समझाते हमें श्री हेमाडपंत ।।

Wednesday, September 2, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 21

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 21

श्री साँई का ध्यान कर
पठन करे यह अध्याय
साँई की शिक्षाये अपना
हम भक्त साँईमय हो जाय ।।1।।

गत जन्मों के शुभ कर्म से
संतो का सानिध्य मिल पाय
शुभ कर्मों के फलस्वरूप ही
संतो की कृपा प्राप्त हो जाय ।।2।।।

बांद्रा के न्यायाधीश रहे
अनेक वर्षों तक श्रीहेमाड
शिर्डी जा बाबा के भक्त हुये
वे ऐसी साँई कृपा पाये अगाध ।।3।।

भाग्य के बिना कैसे भला
संतसमागम प्राप्त हो पाय
सौभाग्यशाली हैं वे जिन्हें
संत दर्शन प्राप्त हो जाय ।।4।।

लोकशिक्षा का कार्य संत
अनेक समय से करते आय
वे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतू
भिन्न स्थानो पर प्रगट हो जाय ।।5।।

कार्यस्थल भले ही भिन्न हो
परन्तु सब संत हैं एक समान
ईश्वर की एक लहर में कार्य करे
उन्हें रहता कार्य का परस्पर ज्ञान ।।6।।

एक समय व्ही.एच.ठाकुर 
कार्य से बेलगाँव समीप जाय
वडगाँव नामक ग्राम में वे पहुँचे
कानडी संत अप्पा के दर्शन पाय ।।7।।

वेदान्त के विषय में हैं
विचार सागर नामक ग्रंथ
ग्रंथ का भावार्थ समझा रहे
वहाँ भक्तो को वे कानडी संत ।।8।।

श्री ठाकुर से वे कहने लगे
करो इस ग्रंथ का अध्ययन
उत्तर दिशा में जब जाओगे
पाओगे महान संत के दर्शन ।।9।।

जब स्थानांतरण जुन्नर हुआ
जाते थे वे करके नाणेघाट पार
यह घाट अधिक गहरा व कठिन
घाट पार करते भैंसे पर हो सवार ।।10।।

स्थानांतरण जब कल्याण हुआ
श्री ठाकुर हुए उच्च पद आसीन
वहाँ नानासाहेब से परिचय हुआ
जो रहते बाबा की भक्ति में लीन ।।11।।

नानासाहेब से श्री ठाकुर को
साँईबाबा के बारे में हुआ ज्ञात
साँईदर्शन की उन्हें उत्कंठा हुई
नाना कहे चलिये आप मेरे साथ ।।12।।

किसी कार्य के चलते ठाकुर
नाना संग शिर्डी ना जा पाय
अकेले ही प्रस्थान किये नाना
ठाकुर का कार्य आगे बढ़ जाय ।।13।।

तब मित्रों संग श्री ठाकुर
साँई दर्शन को शिर्डी जाय
साँई के चरणों मे गिरे ठाकुर
बह रही आंखों से अश्रुधाराएं ।।14।।

त्रिकालदर्शी बाबा कहने लगे उनसे
इस स्थान का मार्ग इतना न आसान
जितनी नाणेघाट पर भैंसे की सवारी
या फिर कानडी संत अप्पा का ज्ञान ।।15।।

आध्यात्मिक पथ अति कठिन हैं
इस हेतू घोर परिश्रम किया जाये
बाबा के ये वचन सुने जब ठाकुर
कानडी संत के वचन याद आये ।।16।।

वे दोनों हाथों को जोड़कर
बाबा के चरणों मे गिर जाय
मुझे शीतलछाया में स्थान दो
साँई से वे प्रार्थना किये जाय ।।17।।

तब बाबा कहने लगें उनसे कि
सत्य कहे थे कानडी अप्पा संत
अपने आचरण में भी तुम लाओ
जो पठन किये विचारसागर ग्रंथ ।।18।।

जो कुछ भी पठन करते हो
उसे आचरण में लाया जाये
अन्यथा पठन का लाभ क्या
साँईबाबा यह बात समझाये ।।19।।

अंनतराव पाटणकर भक्त एक
साँई दर्शन को जब शिर्डी आये
साँई दर्शन पाकर नेत्र शीतल हुए
पाटणकर जी अति प्रसन्न हुए जाये ।।20।।

दर्शन कर कहने लगें बाबा से
पढ़ें मैंने वेद उपनिषद व पुराण
फिर भी मुझे शांति मिल न सकी
आया शिर्डी सुन आपका गुणगान ।।21।।

आपके वचनों व दृष्टि मात्र से
सबके मन को शांति मिल जाय
साँईजी से आशीर्वाद वे माँग रहे
तब साँई उन्हें एक कथा सुनाय ।।22।।

एक समय एक सौदागर
जब यहाँ शिर्डी वह आय
घोड़ी की लीद के नौ गोले
सौदागर एकत्र किए जाय ।।23।।

नौ गोले पाकर सौदागर
अपने चित्त को शांति पाय
जब यह कथा सुने पाटणकर
उन्हें कुछ अर्थ समझ में न आय ।।24।।

वे दादा केलकर से प्रार्थना करें
कथा का अर्थ उन्हें समझा दो
केलकर कहे घोड़ी ईश कृपा हैं
व नवविधा भक्ति हैं वह गोले नौ ।।25।।

नौ प्रकार की भक्ति हैं जैसे
श्रवण, कीर्तन, नाम स्मरण
पाद सेवन, वन्दन, सख्यता
अर्चन, दास्य, आत्मनिवेदन ।।26।।

इन नौ प्रकार की भक्ति में से
एक को भी कार्य में लाया जाये
तब भगवान अति प्रसन्न होकर
अपने भक्त के घर प्रगट हो जाये ।।27।।

जप, तप, योगाभ्यास, वेद पठन
अगर भक्ति भाव से न किये जाये
भक्तिभाव बिना यह सभी शुष्क हैं
पूर्ण भक्ति से सार्थक हैं ये साधनाये ।।28।।

दूसरे दिन पाटणकर जब
गए बाबा को प्रणाम करने
तब बाबा उनसे पूछने लगे
क्या नौ गोले पा लिये तुमने ।।29।।

साँई आपकी कृपा बिना
कैसे गोले एकत्र हो पाये
आपकी कृपा होनी जरूरी
ऐसा पाटणकर जी बतलाये ।।30।।

सुख व शांति मिल जायेगी
दिए साँई उन्हें यह आशीर्वाद
पाटणकर यह सुन प्रसन्न हुए
मिल गयी साँई से उन्हें सौगात ।।31।।

साँईजी से कुछ नही छुपा
वे सबके मन की जान जाये
भक्तो के दोष वे दूर कर देते
और उन्हें उचित राह दिखाये ।।32।।

पंढरपुर से एक वकील
एक समय शिर्डी को आये
साँई दर्शन कर, दक्षिणा दे
कोने में वे जाकर बैठ जाय ।।33।।

कुछ लोग कितने धूर्त हैं
उनको देख ऐसा कहे साँई
यहाँ आकर वे चरणों में गिरते
और पीठ पीछे करते हैं वे बुराई ।।34।।

साँई के कहे ये शब्द
वहाँ कोई समझ न पाये
वकील साहब सब सुन रहे
शब्दों का अर्थ वे समझ जाये ।।35।।

वकीलसाहब वाड़े को लौट
काकाजी को बताने लगे बात
साँईजी ने जो कहा सब सत्य हैं
निंदा करने में दिया था मैंने साथ ।।36।।

पंढरपुर से शिर्डी आकर ठहरे
एक समय श्रीनूलकर साँई दास
बाररूम में उनकी चर्चा हो रही
उनका व साँई का किया उपहास ।।37।।

साँई ने जो भी वचन कहे
किया साँई ने मुझपे उपकार
मुझे इस बात की शिक्षा मिली
न करूँ कभी निंदा का व्यवहार ।।38।।

शिर्डी व पंढरपुर मीलों दूर
फिर भी साँई को सब ज्ञात
कोई दूर रहे या रहे वे समीप
साँई जाने सबके मन की बात ।।39।।

जैसे सागर का अंत नही
वैसे ही साँई लीला अनन्त
साँई लीलाये हमें ज्ञात होये
जब पढ़े साँई सच्चरित्र ग्रंथ ।।40।।

'गौरव' करें अरदास साँई से
करते हुए साँई नाम स्मरण
कि साँई सभी पर कृपा करें
व साँई कृपा से रहे सब प्रसन्न ।।41।।

हम भक्तो को हैं विश्वास 
कि साँई सदा हमारे साथ हैं
साँई पूरी करते सब अरदास
वो साँई हम भक्तो के नाथ हैं ।।42।।

।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।
।। श्री साँईनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।

Monday, August 17, 2020

श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार- अध्याय 20

*श्री साँई सच्चरित्र काव्य रूप सार*- अध्याय 20

श्री साँई चरणों का ध्यान कर
आरम्भ करते अब यह अध्याय
साँईजी से करते हैं हम ये प्रार्थना
साँई सभी पर अपनी कृपा बरसाय ।।1।।

हम भक्तो के आराध्य
बाबा साँई हैं निराकार
भक्तो के प्रेमवश ही
प्रगटे वे रूप साकार ।।2।।

यह विश्व नाट्यशाला
साँई ने किया अभिनय
हम साँई लीला याद कर
आइये हो जाये साँईमय ।।3।।

बाबा का ध्यान करे और
मन को शिर्डी में पहुंचाये
साँई मध्यान्ह आरती का
हम सभी स्मरण किये जाये ।।4।।

पूर्ण हुई जब मध्यान्ह आरती
द्वारकामाई से साँई बाहर आये
एक किनारे खड़े हो बाबा साँई
भक्तो को प्रेम से उदी देते जाय ।।5।।

भक्तगण साँई के श्री चरण छूते
साँई दोनो हाथ से उदी देते जाय
मस्तक पर उदी का टीका लगा
साँई उन्हें अपने घर को लौटाय ।।6।।

कितना अच्छा दृश्य था यह
जब भक्त साँई के दर्शन पाय
गर भक्तगण कल्पना करें तो
वही आनन्द अनुभव कर पाय ।।7।।

वैदिक संहिता के मंत्रों का
ईशोपनिषद में हैं समावेश
इसके श्लोकों में निहित हैं
आत्मतत्ववर्णन के संदेश ।।8।।

टीका लिखे दासगणु जी
सारतत्त्व ग्रहण न कर पाये
कई विद्वानों से परामर्श किये
परन्तु दासगणु संतोष न पाय ।।9।।

इसका अर्थ तो वही कर सके
जिसे हो चुका आत्मसाक्षात्कार
ऐसा विचार कर के दासगणु जी
जाये साँई दर्शन को साँई के द्वार ।।10।।

साँई की चरण वंदना कर
दासगणु प्रार्थना किये जाय
साँई आशीष दे दासगणु को
कठिनाइयों का हल बताय ।।11।।

बाबा कहे गणु जब तुम लौटोगे
विलेपार्ला में काका के घर जाओ
काका दीक्षित की नौकरानी हैं वहाँ
उससे अपनी शंका का निवारण पाओ ।।12।।

वहाँ भक्त यह सुन सोचने लगे
साँई केवल विनोद किये जाय
भला अशिक्षित नौकरानी कैसे
इस समस्या का हल कर पाय ।।13।।

किंतु दासगणु को था विश्वास
असत्य नही होते साँई के वचन
साँई वचन साक्षात ब्रह्मवाक्य हैं
साँई के वचनों का किये वे पालन ।।14।।

साँई वचनों में रख पूर्ण निष्ठा
दासगणु काका के यहाँ जाय
मीठी नींद का आनंद वे ले रहे
गीत के स्वर कानो में पड़ जाय ।।15।।

जरी के आँचल की लाल साड़ी
अति सुंदर उसके किनारे व छोर
जब यह मधुर गीत दासगणु सुने
उठकर देखने लगे बाहर की ओर ।।16।।

एक बालिका गीत गा रही
और माँजे जाये वह बर्तन
फटे कपड़े पहने हुए उसने
दरिद्रता में भी थी वह प्रसन्न ।।17।।

दासगणु यह सब देख रहे कि
गीत गा रही बालिका थी प्रसन्न
बालिका को उत्तम साड़ी देने का
किये एम वी प्रधान से वे निवेदन ।।18।।

साड़ी पाये जब बालिका
वह ऐसे प्रसन्न हुई जाय
जैसे क्षुधापीडित व्यक्ति
मधुर भोजन जब पाय ।।19।।

एक दिन ही साड़ी पहनकर
बालिका संदूक में रख जाय
अगले दिन पुराने कपड़े पहन
पहले के समान प्रसन्न हुई जाय ।।20।।

सुख हो या फिर हो भले दुख
दोनों में बालिका थी एक समान
सुख दुख दोनों मन पर निर्भर हैं
तब दासगणु ने ली यह बात जान ।।21।।

जो हमें ईश्वर ने दिया हैं
समझो उसे ईश्वर की इच्छा
जो हैं उसी में संतोष मनाओ
उपनिषद पाठ की यही शिक्षा ।।22।।

भक्तों को शिक्षा देने के लिये
साँईजी कई युक्ति काम में लाय
कभी किसी को वे कही भेजते
किसी को निद्रा में दर्शन दे जाय ।।23।।

दासगणु को विलेपार्ला भेज
साँई उन पर ऐसे कृपा बरसाय
वे दासगणु की समस्या का हल
काका की नौकरानी द्वारा कराय ।।24।।

काकाजी की नौकरानी द्वारा
दासगणु समस्या का हल पाय
उन्हें अमूल्य शिक्षा मिल गयी
यह लीला साँईबाबा जी रचाये ।।25।।

ईशोपनिषद की मुख्य देन हैं
नीति शास्त्र से सम्बन्धी शिक्षा
सभी वस्तु ईश्वर से ओत प्रोत हैं
जो प्राप्त हो वो ईश्वर की इच्छा ।।26।।

ईशकृपा से जो कुछ मिला
उसमे ही आनन्द मनाओ
धन तृष्णा की प्रवृति छोड़
जो हैं उसमें संतुष्टि पाओ ।।27।।

फल की कोई इच्छा किये बिना
प्रभुइच्छा मान कर्म करते जाओ
आलस्य से आत्मा का पतन होता
इसलिए आलस्य को न अपनाओ ।।28।।

शोक, मोह व दुख दूर रहते
जो करे सभी में आत्मदर्शन
जो सभी प्राणियों में प्रभु देखे
वे प्राणी रहते हैं सदा ही प्रसन्न ।।29।।

पर्वत सा दुख हो जीवन में
या फिर बाग जैसा सुख आये
दोनों स्थिति में एक समान रहो
यह बात यह अध्याय समझाये ।। 30।।

यह अध्याय सम्पूर्ण हुआ
साँई कृपा ऐसी हुई जाये
'गौरव' का हाथ पकड़ साँई
स्वयं ही काव्य रूप लिखवाये ।।31।।

साँई से करते हैं हम प्रार्थना
साँई सभी पर कृपा बरसाये
सभी के साथ साँई रहे हमेशा
सबके जीवन में खुशियाँ लाये ।।32।।

।। श्री साँईंनाथार्पणमस्तु शुभम भवतु ।।
।। ॐ साँई श्री साँई जय जय साँई ।।